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“पितृपक्ष श्राद्ध और पुनर्जन्म के नाम पर होने वाले कर्मकांड, धर्म के नाम पर बस धंधा है”

संजय जोठे:

धर्म के “धंधे” का सबसे हास्यास्पद और विकृत रूप देखना है तो पितृपक्ष श्राद्ध और इसके कर्मकांडों को देखिये। इससे बढ़िया केस स्टडी दुनिया के किसी कोने में आपको नहीं मिलेगी।

ऐसी भयानक रूप से मूर्खतापूर्ण और विरोधाभासी चीज़ सिर्फ विश्वगुरु के पास ही मिल सकती है। एक तरफ तो ये माना जाता है कि पुनर्जन्म होता है, मतलब कि घर के बुज़ुर्ग मरने के बाद अगले जन्म में कहीं पैदा हो गए होंगे। दूसरी तरफ ये भी मानेंगे कि वे अंतरिक्ष में लटक रहे हैं और खीर पूड़ी के लिए तड़प रहे हैं।

अब सोचिये पुनर्जन्म अगर होता है तो अंतरिक्ष में लटकने के लिए वे उपलब्ध ही नहीं हैं। किसी स्कूल में नर्सरी में पढ़ रहे होंगे। अगर अन्तरिक्ष में लटकना सत्य है तो पुनर्जन्म गलत हुआ। लेकिन हमारे पोंगा पंडित दोनों हाथ में लड्डू चाहते हैं, इसलिए मरने के पहले अगले जन्म को सुधारने के नाम पर भी उस व्यक्ति से कर्मकांड करवाएंगे और मरने के बाद उसके बच्चों को पितरों का डर दिखाकर उनसे भी खीर-पूड़ी का इंतज़ाम ज़ारी रखेंगे।

अब मज़े की बात ये कि कोई कहने-पूछने वाला भी नहीं कि महाराज इन दोनों बातों में कोई एक ही सत्य हो सकती है। उस पर दावा ये कि ऐसा करने से सुख समृद्धि आयेगी। लेकिन इतिहास गवाह है कि ये सब हज़ारों साल तक करने के बावजूद यह देश गरीब और गुलाम बना रहा है। बावजूद इसके हर घर में हर परिवार में जिनमे खुद को शिक्षित कहने वाले परिवार भी शामिल हैं, श्राद्ध का ढोंग बहुत गंभीरता से निभाया जाता है। ये सच में एक चमत्कार ही है।

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