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बेरोज़गारी के साईड इफेक्ट्स

रितेश आनंद:

हां…हां…हम बेरोज़गार हैं…
ये कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है, अभी मुझे बेरोज़गार हुए दिन ही कितने हुए हैं। Appraisal तक सब कुछ सही तो था, एकदम चकाचक। अचानक से सिस्टम में एक सिंघम आ गया, एकदम भौकाली मतलब लगा कि एक ही दिन में साल भर का काम निपटा लेगा। एक और आए थे, इनसे थोड़े ही दिन पहले पत्रकार पोपट लाल टाइप दुनिया हिला कर रख देने का माद्दा रखते हैं जनाब। वाकई…इनके आने से कितनों की कुर्सी हिल गई, खुद आता कुछ नहीं है सिवाय जी हुजूरी के। हां एक चीज और आती है, सनी देओल की तरह चिल्लाना… अब पेशे से मजबूर जो ठहरे जनाब, इसलिए सिर्फ सुनी सुनाई बातों पर यकीन करते हैं…इनका खुद का दिमाग एकदम सील्ड पैक है।

हमारे ही कुछ साथियों, जिनमे से एक तो अपनी blackmailing के लिए खासी बदनाम है लेकिन फिर भी उनकी पहुंच बहुत ऊपर तक है। साल भर हमारी सुनी भी उन्होंने पर अचानक से उनका मिजाज बदल गया और हमारे खिलाफ ही रच डाली एकता कपूर के सीरियल से भी ज्यादा खतरनाक साजिश। उन्ही की सुन कर पोपट लाल हमसे पूछ डालिस कि का बे इहां हो का रहा है मोहिनी थियेटर बना डाले हो का भईया। का किए पूरे साल भर, हमने भी कह दिया चचा, आपकी नींद टूटने का इंतजार। उसके बाद तो सिंघम और पोपट ने ऐसी-ऐसी बातें बोली हमसे कि एहसास हो गया कि गुरू, यहां तो एक से बढ़ कर एक बड़े नेता मौजूद हैं। इनके आगे चचा-भतीजा की पॉलिटिक्स भी फेल है तो हमारी क्या औकात!

तो यहीं से हमारे खालिस बेरोज़गारपन की पारी की शुरुआत हो गई। पहली बार अपने 8 साल के करियर में बेरोजगार हुए थे, इसलिए पहले तो समझ में ही नहीं आया कि हम बेरोज़गार हो गए हैं। सोचते थे कि अरे इतने साल काम किए हैं, नामी गिरामी ब्रांड के साथ तो क्या दिक्कत है, मिल जाएगी दूसरी नौकरी। लेकिन भईया हमको का पता था कि आगे चलकर कहानी में इतना सारा ड्रामा और इमोशन भी देखने को मिलेगा। यकीन नहीं मानेंगे कि आजकल हमारे साथ क्या-क्या हो रहा है। बहुते ट्रैजेडी है भाई लाइफे बदल गई है एकदम से। कल तक जो लेग मेरे पास आ रहे थे नौकरी मांगने, उनमे से कुछ हमदर्द टाइप के लोग भी निकले जो आज मेरे लिए नौकरी ढूंढ़ रहे हैं (भगवान इनका भला करे)। वहीं कुछ लोग ऐसे भी मिले जिनसे नौकरी पाने की पूरी उम्मीद थी लेकिन ऊ लोग तो एकदमे से किनारा कर लिए हमसे (भगवान इनका भी भला कर ही रहे हैं बिना बोले ही)।

नौकरी के लिए हम ठीक वैसे ही हर कंपनी का दरवाजा खटखटा रहे हैं जैसे मनमोहन देसाई की पिक्चर में निरूपा राय जैसी माएं औलाद पाने के लिए मंदिर मंदिर भटकती थी। अच्छा नौकरी छूट जाने के बाद जब आप नई जगह नौकरी मांगने जाते हैं तो आपसे बड़े अजीब अजीब से सवाल पूछे जाते हैं। “नौकरी छोड़े हो या निकाले गए हो? तुम्हे लगता है कि तुम अब भी सैलेरी negotiate करने की हालत में हो”। सोचिए जरा मेरी हालत के बारे में कि कहां A to Z channel में काम करने वाला इंसान A-Z  मतलब Aajtak to Zee में काम करने वाले इंसान के सामने छोटे-छोटे लोकल टाइप चैनल भी Al-Jazeera और CNN टाइप का भाव खाए पड़े हैं। दूसरे रेडियो वाले, जिनका गाना हमने कभी नहीं सुना वो लोग आज हमारा रोना नहीं सुन रहे हैं। अब तो सही में ये लग रहा है कि हम बहुत आगे जाएंगे, क्योंकि हम जहां भी जाते हैं सब हमसे यही बोल देते हैं- ‘’आगे जाओ’’।

अच्छा बेरोज़गारपन में घर-परिवार और दोस्तों का क्या रवैया रहता है, वो भी सुन लीजिए- नौकरी के लिए अब तक ना जाने कितने लोगों को फोन घुमा चुके हैं। हालत ये हो गई है कि ट्रूकॉलर पर मेरे मोबाइल नंबर के सामने लिखा आता है: 2000 people reported this number as SPAM, बताइए का से का हो गया है। अच्छा पहले कुछ शादी के रिश्ते आ रहे थे, लग रहा था कि कल ही आकर शादी कर लेते हमसे। वैसे लोग मेरी नौकरी का सुनकर अंडरग्राउंड हो गए। बताइए क्या टाइम आ गया है, अपने घर भी नहीं जा सकते, गए थे एक बार तो पड़ोस का एक बच्चा पूछ दीहिस हमसे- “अंकल आप अपने घर क्यों नहीं जाते?” सवाल तो बड़ा मासूमियत भरा था लेकिन पूछिए मत कहां-कहां और कितनी लग गई वो बात। फौरन टिकट करवाए और निकल लिए गुमनामी बाबा टाइप की जिंदगी जीने।

अच्छा पहले जब दोस्त के घर जाते थे तो वो बकायदा रिसीव करने आता था, अब तो सीधे बोल देता है कि इतनी बार आ चुके हो घर नहीं याद है? एक बार एक दोस्त ने पूछ लिया कि अरे नई कार खरीदे थे, उसका क्या हुआ? इंस्टालमेंट दे रहे हो या नहीं? हमने जवाब दिया कि बैंक वालों ने तरस खाकर लोन माफ कर दिया है और ऊपर से बेरोजगारी भत्ता भी दे रहे हैं। किसी ने पूछा कि अरे घर का खर्चा कैसे चल रहा है? हमने कहा- पहले दस दिन गणपति आए थे उनके भंडारे में पेट भर लिया, बीच-बीच में बुढ़वा मंगल पड़ जाता है और अब दस दिन माता रानी की कृपा रहेगी। किसी ने सलाह दी कि क्यों नहीं अपना बिजनेस शुरू करते हो। कुछ लोगों ने इसी मौके पर अपनी भड़ास भी निकाल ली कि- अरे उसको आता ही क्या था, नौकरी उससे नहीं होगी। बिना मतलब की अकड़  है उसमे, जाकर उसको डोसा बेचना चाहिए।

सही बताएं तो  startup India का सुन कर एक बार के लिए मन भी किया कि कुछ अपना ही शुरू कर लें। लेकिन तभी टीवी पर एक ऐड देखा जिसमें एक लड़की बोलती है कि Start up के लिए दो चीजें चाहिए। एक तो किस्मत और दूसरा नेटवर्क, हमने कहा कि ना तो मेरे साथ मेरी किस्मत है और नेटवर्क का तो पूछिए मत। jio वाले तक चैन से नहीं जी पा रहे Airtel, Voda सब ड्राप हो रहा है, इसलिए हम भी बिजनेस का आईडिया ड्रॉप कर दिए।

किसी ने पूछ दिया कि अबे घर पर अकेले पड़े-पड़े करते क्या हो बे? हम जवाब दिए कि क्या बताए आजकल टीवी पर साउथ की जो डब्बड फिल्में आती हैं उनको वापस तमिल, तेलेगु में ट्रांसलेट करते हैं। अफगानिस्तान में अमिताभ बच्चन के फैंस के लिए सूर्यवंशम को अफगानी भाषा में लिख रहे हैं। इतने पर दोस्त ने पूछ लिया कि अबे तो कानपुर में काहे रुके हो? कर का रहे हो? हमने कह दिया struggle कर रहे हैं। तो भाईसाहब ने जो जवाब दिया वो भी बड़ा वाजिब लगा कि अबे struggle तो लोग दिल्ली और मुंबई में जाकर करते हैं, तुम कौन सा स्पेशल टाइप का struggle कर रहे हो कानपुर में रह कर।

तो भईया अब हम कहां जाएं और का करे अब तो ऐसा लग रहा है कि जब कभी नौकरी लगेगी तो सैलेरी वाला मैसेज की खुशी हमसे संभाले नहीं संभलेगी और हम कहीं ”इतनी खुशी…इतनी खुशी” बोलते बोलते निकल ना लें।

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