अभी भी भारत में 50% से भी ज़्यादा लोग खेती पर ही निर्भर करते हैं। भारत में सिंचाई के लिए अनिश्चित मानसून और खाद लिए यूरिया और अन्य केमिकल खादों पर निर्भरता एक चिंता का विषय है। पानी एक सीमित संसाधन है, जिसके सावधानी से खर्च किए जाने के साथ-साथ, केमिकल खाद और कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग पर भी ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है। यह जाँची-परखी बात है कि केमिकल खादों के बढ़ते प्रयोग ने मिट्टी की क्वालिटी को तो प्रभावित किया ही है साथ ही यह साफ पानी के खुले श्रोतों और ज़मीन के अन्दर के पानी को भी दूषित कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में इनके सही विकल्पों की तलाश ज़रूरी हो जाती है। कम्पोस्ट खाद इसका ही एक अच्छा उदाहरण है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न संगठन, सरकार के साथ मिलकर इसी दिशा में काम कर रहे हैं। आइये देखते हैं खबर लहरिया का एक ऐसा ही विडियो जिसमें झांसी के खजराहा बुजुर्ग की महिलाएं कम्पोस्ट खाद बनाकर, खेती में उन्नति के साथ पर्यावरण के लिए भी काम रही हैं।