दाना मांझी का ‘वॉक ऑफ शेम’ याद है कि भूल गए? छोड़िए ना कौन याद करे भूली बिसरी बातें, एकदम ब्रेकिंग न्यूज़ टाइप का ज़माना है, और वैसे भी खबर और मुद्दे तो अपने शुरू होते ही बासी होने लगते हैं। इस देश को विचलित कर देने वाली एक और तस्वीर बिल्कुल उसी तर्ज पर फिर सामने आई है।
ओडिशा के मलकानगिरी ज़िले में एक 7 साल की बच्ची बर्षा की हॉस्पिटल जाते हुए एंबुलेंस में मौत हो गई जिसके बाद एंबुलेंस ड्राईवर ने उन्हें जबरन बीच रास्ते में उतार कर अपने हालत पर छोड़ दिया। इसके बाद बर्षा के पिता मुकुंद खेमेदु असहाय, अपनी बच्ची का शव उठाकर 6 किलोमीटर तक पैदल चलते रहे।
बर्षा का इलाज मथिली के कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर में हो रहा था लेकिन तबियत बिगड़ने पर डॉक्टर्स ने मलाकनगिरी जिला अस्पताल जाने की सलाहा दी। मुकुंद अपनी बीमार बच्ची को लेकर 108 नं. एंबुलेंस से जिला अस्पताल के लिए निकले, लेकिन इस बीच पंदिरिपानी पहुंचते-पहुंचते तबियत बिगड़ने से बर्षा की मौत हो गई। इसके बाद एंबुलेंस ड्राईवर ने मथिली और पंदिरिपानी के बीच उन्हें नाईकगुडा गांव में उतार दिया, जिसके बाद की तस्वीरें शायद एक राष्ट्र के महाशक्ति बनने के तमाम दावों का सरेआम कत्ल करती है। हालांकि आसपास के लोगों की मदद से 3 घंटे के बाद एक एंबुलेंस फिर से भेजी गई और मलकानगिरी के कलेक्टर के. सुदर्शन चक्रवर्ती ने 108 एंबुलेंस ड्राईवर पर आपराधिक कार्रवाई का भी भरोसा दिलाया।
लेकिन क्या गलती सिर्फ एंबुलेंस ड्राईवर की है? फर्ज़ करिए की अगर किसी मरीज़ की मौत एंबुलेंस में हो जाती है, और ड्राईवर को किसी बहुत ही गंभीर मरीज़ को तुरंत अस्पताल ले जाने के लिए कहा जाता है, फिर क्या करे वो ड्राईवर? इसका रोना रोए कि एंबुलेंस की कमी है, व्यवस्था पर सवाल उठाए, संवेदनाओं में उलझे या उसकी जान बचाने की कोशिश करे जिसकी जान उसकी रफ्तार पर निर्भर है?
वो पीड़ा अकल्पनीय है जब एक बाप अपने बच्चे का मृत शरीर लेकर सड़क पर तमाशा बनकर चल रहा हो। हां साहब तमाशा भर ही तो है, हम-आप, व्यवस्था, सरकार, समाज सब दोषमुक्त हैं, दोष है तो उन लोगों का जो बीच सड़क मर जाते हैं और फिर पीछे छोड़ जाते हैं तमाशबीनों की फौज।दोष है बीच सड़क पर मरने वालों के परिवार वालों का जो इतनी संपदा नहीं जुटा पातें की शव को सम्मान के साथ घर तक ले जा सकें वरना अब ये देश तो महीनों फ्री डेटा देने तक पहुंच चुका है और सरकार ‘जियो’-‘जियो’ के नारे लगा रही है।