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जब वॉर्डन ने मुझसे कहा, “शहर में पढ़ने आई हो तो ढंग के कपड़े पहना करो”

मैडम जी की स्पीच उस दिन कमाल की थी। उसका सार यही था कि आज़ाद होने का मतलब उच्चश्रृंखल होना नहीं होता है। आज़ाद होने का मतलब होता है, छात्रावास के नियमों का पालन करना। आज़ाद होने का मतलब ये नहीं होता कि आप किसी भी तरह के कपड़े पहन लें। आज़ाद होने का मतलब ये नहीं होता कि आप किसी के भी साथ घूमें। मुझे ये सब सुनते हुए अपनी उन रिश्तेदार महिलाओं की याद आने लगी जो बिना कुछ किये एहतियात के तौर पर अक्सर ये बातें सुनाया करती। हालांकि वो ज़्यादातर महिलाएं अशिक्षित थी और यहां मेरे सामने एक पी.एच.डी. धारी केन्द्रीय विश्वविद्यालय की शिक्षिका खड़ी थी, पर आश्चर्यजनक रूप से दोनों के बोल एक समान थे।

फिर मुझे धीरे-धीरे ये समझ आने लगा कि शिक्षा हो सकता है, आपके पैसे कमाने की क्षमता में निखार लाये पर इससे आपके दिमाग में भी निखार आ पाए ये ज़रूरी नहीं है। ये अधिक्षिकाएं (वॉर्डन) आमतौर पर साल में दो-तीन बार ही छात्राओं से मुखातिब होती थी। रात में गेट बंद होने के बाद, टी.वी. हॉल में जैसे ही इनके आने के फ़रमान का घंटा बजता सारी लड़कियां दौड़ पड़ती। हालांकि उन्हें ये पता रहता था कि हर बार की तरह उस हॉल में इस बार भी किस तरह का संवाद होगा। पर उदासीन होकर ही सही डर से आती थी। मसला अक्सर वही रहता कि मेस में खाना अच्छानहीं मिलता है, वॉटर कूलर खराब है, वॉटर प्यूरीफायर खराब है, कर्मचारी समय से नहीं आते हैं, आते हैं तो काम नहीं करते, यहां का बल्ब खराब है, वहां का पंखा खराब है आदि-आदि।

कुछ लड़कियां जो नई-नई आई थी और ये समझती थी कि सारी चीज़ें इसलिए सही नहीं हो रही हैं क्यूंकि कोई शिकायत नहीं करता। इसलिए वो अपना कर्तव्य निभाते हुए शिकायत कर आती। प्रायः ये मेरी जैसी लड़कियां ही होती, जो मैडम के प्रथम दर्शन में उनके वस्त्र विन्यास और बोलते समय उनके मुख के चहुओर भ्रमण से प्रभावित हुई रहती। मैडम तमतमाते हुए हॉल में प्रवेश करती। हॉल में मुर्दा शांति छा जाती। थोड़ी देर बाद वो सन्नाटे को तोड़ते हुए अपने दिनभर की व्यस्त दिनचर्या का ब्यौरा देती और फिर ये जताती कि इतने व्यस्त होने के बाद भी वो हमारे इतने ‘छोटे-छोटे’ कामों के लिए आती हैं।

मुझे ये नहीं पता है कि किसी छात्रावास की वॉर्डन बनने से किस तरह के आर्थिक फायदे होते हैं (अन्य फायदे तो ऐसे ही दिख जाते हैं) और कौन सी योग्यता पर वॉर्डन बनाया जाता है। पर वो ऐसा एहसास करा देती कि उन्हें जो लाभ मिलते हैं उस से ज़्यादा वो छात्रावास के लिए मेहनत करती हैं। हालांकि उनके पीठ पीछे लड़कियां कभी भी इस बात से सहमत नहीं रहती थी। खैर अपने एहसान का बोझ लादने के बाद बड़ी ही कड़ी आवाज़ में वो पूछती, कौन लड़की गयी थी शिकायत करने, खड़ी हो जाए।” ये सुनकर लगता कि किसी से अपनी मौत चुनने के लिए कहा गया हो। पूरे हॉल में सन्नाटा छा जाता। सामने से थोड़ी देर तक कोई आवाज़ नही आती। उन्होंने फिर दहाड़ा, “मुझे अच्छी तरह से पता है कौन लड़की गयी थी शिकायत करने। मुझे सब कुछ पता रहता है कि कौन क्या करता है, कौन किसके साथ घूमता है, आई नो एवरीथिंग। इसलिए जो भी गया था अपने आप खड़ा हो जाए।”

डरते-डरते एक लड़की खड़ी हो गयी। “बाहर निकल के आओ” मैम ने लगभग चिल्लाते हुए कहा। लड़की धीरे-धीरे चलते हुए बाहर आई और उनके सामने सर झुका कर खड़ी हो गयी। मैडम ने उसे घूरना शुरू किया ऊपर से नीचे तक। लड़की सलवार कमीज पहने थी।

“कहां की हो” मैडम ने उसे घूरते हुए कहा

“आज़मगढ़” सहमी सी आवाज़ निकली

“गांव से हो?”

“जी मैम”

“ठीक से खड़ी हो पहले। खड़े होने की तमीज़ ही नहीं है।”

मैडम की आवाज़ सुनते ही वो खुद को हर तरह से सही करने की कोशिश करने लगती है पर उसे समझ नहीं आ रहा कि वो कहां से शुरू करे। क्या सही करे। वो और सहम कर अपने में सिकुड़ते हुए खड़ी हो गयी।

“ये किस तरह के कपड़े पहने हैं तुमने। शहर में पढ़ने आई हो तो ढंग से रहा करो। पढ़ाई करने के साथ-साथ रहने सहने की तमीज़ भी सीखनी चाहिए।”

“जी मैम”

“ठीक है, जाओ बैठ जाओ।”

थोड़ी देर शांति छाये रहने के बाद पुनः उनका घूमता हुआ मुंह और जलती हुई आंख दोनों एक साथ बोले, “और किसी को कुछ कहना है, और किसी को कुछ समस्या है। वॉटर कूलर के लिए एप्लीकेशन गया है, चीज़ें प्रोसेस में है, समय लगता है। आप लोगों की बहुत शिकायत मिल रही आज कल। कपड़े तो कुछ लड़कियां ऐसे पहनती हैं जैसे शरीर पर रख कर सिला गया हो। आज़ादी का उपयोग करें पर उसे उच्चश्रृंखलता में न बदलें। अच्छा-अच्छा अब मै चलती हूं बहुत रात हो गयी। गुड नाईट।”

“गुड नाईट मैम” सारी लड़कियों ने लगभग होड़ लगाते हुए कहना शुरू किया और फिर वो उसी वेग से हॉल से बाहर निकल गयी। सैंडल की आवाज़ कुछ देर तक सुनाई देती रही।

नयी लड़कियां दुःख और डर साथ लिए हॉल से बाहर निकली और पुरानी लड़कियां उबासी लेते हुए। हर बार वही कहानी रहती। अगर वो लड़की अपना घर शहर में बताती तो उसके कपड़ो पर उसे डांटती और कहती कि उच्चश्रृंखल हो गयी हो और अगर वो अपने घर का पता गांव बताती तो उसे गंवार कह के बैठा देती। अगर एक लड़की को डांट रही होती और बीच में कोई और लड़की उसके सपोर्ट में कुछ बोलने को उठती तो कहती कि नेतागिरी मत करो और चुपचाप बैठ जाओ। वो लड़की भी अपना सा मुंह लेकर बैठ जाती।

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