बच्चे समाज का भविष्य होते हैं, और इस भविष्य को संवारने के लिए जरुरी है अच्छी शिक्षा। बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए सरकार द्वारा चलाए गए अभियानों में से एक है सर्व शिक्षा अभियान और इसी का हिस्सा है मिड डे मील। मिड डे मील एक ऐसा सरकारी प्रोग्राम है जिसमे तय किया जाता है कि सरकारी प्राइमरी स्कूलों, अपर प्राइमरी स्कूलों और सरकारी मदद से चलने वाले स्कूलों में बच्चों को दोपहर का खाना मुफ्त में उपलब्ध कराया जाए जो पोषक तत्वों से भरपूर हो। लेकिन सरकारी स्कूलों में शिक्षा के गिरते स्तर की ही तरह, मिड डे मील के खाने की क्वालिटी पर भी समय-समय पर सवालिया निशान उठते रहे हैं। प्रशासनिक भ्रष्टाचार और बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही का आलम इस कदर है कि, मिड डे मील के खाने से बच्चों के बीमार होने से लेकर उनकी मौत हो जाने तक के भी मामले सामने आए हैं। सड़े हुए चावल इस्तेमाल किए जाने से लेकर फलों के नाम पर बेहद घटिया क्वालिटी का खाना बच्चों को दिया जा रहा है। 2013 से अभी तक हर साल 9 हज़ार करोड़ रूपए से 10 हज़ार करोड़ रूपए से भी ज्यादा खर्च किए जाने के बाद भी, अगर सरकारी स्कूलों में बच्चों के खाने की गुणवत्ता का स्तर यह है तो इस स्कीम पर ही एक बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है। उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के पड़मई गाँव के सरकारी स्कूल की कुछ ऐसी ही तस्वीर सामने लेकर आता है खबर लहरिया का यह विडियो।