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‘अब गिटार आउट ऑफ फैशन है ये क्रांति का ज़माना है वो भी फेसबुक पर’

क्रांति, चाहे वो कैसी भी हो, खुद से शुरू होती है। जब तक हम खुद को नहीं बदल सकते, हम किसी और को नहीं बदल सकते। अगर सभी लोग खुद को बदल लें तो किसी और को बदलने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

ये दिगर बात है कि कभी-कभी क्रांति लाने के लिए लोगों को समाज, राज्य सबके खिलाफ जाना पड़ता है। पर कोई भी क्रांतिकारी आवारा और ज़िद्दी लोगों के साथ अपनी लड़ाई नहीं लड़ना चाहता। दुनिया के सारे क्रांतिकारियों ने लोगों से पहले खुद को बदलने का आह्वान किया है, क्रांति तभी आएगी, समाज और देश अंततः तभी बदलेगा।

लेकिन अभी के दौर में क्रांति की बात करना ज़रूरत से ज़्यादा फैशन बन गया है। एक दौर था जब गिटार बजाना फैशन था, अब दौर है क्रांति करना और क्रांति की बातें करना। मौजूदा हालात में क्रांतिकारी होने की पहली शर्त है हर बात में और सभी बातों में राज्य और सरकार के खिलाफ बोलना। सरकार अगर सब्सिडी देती है तो, हम धरने करेंगे बड़े-बड़े पोस्टरों के साथ, सरकार करप्ट है, सब्सिडी का ज़्यादा फायदा तो सरकारी लोग और धनी लोग उठा रहे हैं। सरकार अगर सब्सिडी हटा देगी तो सरकार गरीब विरोधी है, ऐसी फासीवादी सरकार तो बिल्कुल ही अलोकतांत्रिक है।

अरे, पर ये सरकार तो आपने ही चुनी है। नहीं, नहीं…. हमने कहाँ…. हम तो वोट ही नहीं दे पाये थे, काॅलेज ट्रिप पर थे गोवा उस वक्त।

दूसरा, प्रोफाइल पिक बदलना अपने सोशल मीडिया के सभी एकाउन्ट्स में। ‘दिल्ली की सड़कों पर आवारा कुत्तों के बढ़ते आतंक से सरकार ने चलाया इम्यूनाइज़ेशन अभियान’, अगले दिन सभी क्रांतिकारियों की प्रोफाइल पिक विदेशी क्यूट वाले पपी हो जाते हैं। ‘इन साॅलिडेरिटी विद देल्ही स्ट्रीट डाॅग्स’। भारत और नामीबिया के बीच क्रिकेट मैच में मेरा एक मित्र नामीबिया को सपोर्ट कर रहा था, वज़ह पूछने पर बताया, ‘आइ आलवेज़ सपोर्ट अंडरडाॅग्स’।

क्रांतिकारी होना अब सिर्फ फैशन है, सिर्फ दिखाना है। किसे? वो भी मालूम नहीं। कुछ तो बदल ही देना है, क्या बदल देना है, पता नहीं। अच्छी बातें सभी को अच्छी लगती हैं। भूखमरी, बेरोज़गारी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार किसे पसंद है? हमें उसके खिलाफ आवाज़ उठाना चाहिए, बिल्कुल उठाना चाहिए, पर सभी चीजों के लिए हम सरकार को दोषी नहीं ठहरा सकते। सरकार गलत काम करती है, उसके खिलाफ आवाज़ उठाना हमारा कर्तव्य है। पर, कुछ कमियां हमारे अन्दर भी है जिन्हें दूर करना सबसे पहले ज़रूरी है।

हम हिप्पोक्रेट नहीं हो सकते। सरकारी नौकरी में इनकम टैक्स ऑफिस अपना प्रायॉरिटी डालना, पैसे देकर लाइसेंस बनाना, सिग्नल पर पकड़ाने के बाद सौ पचास थमा देने की बात करना और फिर आकर फेसबुक पर और जंतर मंतर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ धरने देना कभी क्रांति नहीं ला सकता।

क्रांति आएगी, ज़रूर आएगी, पर उस क्रांति की वज़ह हमें मालूम होनी चाहिए, खुद को बदलने का पहले संकल्प और हिम्मत चाहिए, फिर देश तो क्या पूरे विश्व को हम बदल सकते हैं, वरना फिर फैज़ के गीतों के साथ हम फेसबुक पर ही क्रांति करते रह जाएँगे।

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