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‘मैं आदिवासी हूं इसलिए मेरा अपमान किया गया, हर कोशिश की गई कि मैं विदेश जाकर ना पढ़ूं’

केरल के बीनेश बालन इतना तो जानते थे कि आदिवासी समाज से आने के कारण हक की लड़ाई लंबी, मुश्किल और कभी-कभी हताश कर देने वाली होगी, लेकिन इससे रूबरू होना इतना परेशान कर देने वाला होगा कि सूसाईड जैसे ख्याल मन में घर कर जाएंगे ये शायद कल्पना के परे था। बीनेश अपनी शिक्षा को हथियार बना कर तकदीर बदलना चाहते थे अपनी और चाह ये थी कि आदिवासी समाज को पहचान दिलवाने के संघर्ष में अपनी ओर से सार्थक योगदान दिया जाए। लेकिन बीनेश ने शायद ही कल्पना की होगी की अपने पसंद के सबजेक्ट और अपने पसंद की यूनिवर्सिटी  में दाखिला पाने की हर काबिलियत होने पर भी 2.5 साल तक घर पर बैठे रहना होगा जिसकी वजह बनेगी ब्यूरोक्रेट्स की उदासीनता और इसकी वजह शायद उनका आदिवासी होना।

विदेश में पढ़ने के लिए बीनेश को अपने हक के पैसे कभी समय पर नहीं मिले जिसके कारण  बीनेश यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स में अपना एडमिशन गंवा बैठे, दुबारा मौका मिला है, लंडन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में पढ़ने का इस बार भी वक्त पर सरकार से मदद नहीं मिली, एक मौका और दिया है एल.एस.ई ने एडमिशन का, अब बस उम्मीद है कि स्कॉलरशिप के पैसे जो वो पास कर चुके हैं वो समय पर मिल जाए। Youth Ki Awaaz ने बीनेश से बात की उनको परेशान कर देने वाले पूरे मामले पर और उनके कभी हार ना मानने वाले एटिट्यूड पर।

प्रशांत झाबीनेश पहले आपको बधाई कि आप अपने ट्राईब के पहले स्टूडेंट हैं केरला से जिनको नैशनल ओवरसीज़ स्कॉलरशिप और लंडन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में एडमिशन मिला।

बीनेस बालनबहुत शुक्रिया, हां मैं ऐसा पहला स्टूडेंट हूं अपने ट्राईब से केरला से और शायद पूरे साउथ इंडिया से।

प्रशांतपहली बार बहुत इंडिविजुअल लेवल पर आपको कब लगा कि आदिवासी होने की वजह से आपके साथ भेदभाव हो रहा है?

बीनेश– जब आप किसी ट्राईब से आते हैं तो इसका एहसास कि आप थोड़े अलग हैं बाकी लोगों से बहुत जल्दी हो जाता है, लगभग बचपन से। मुझे लगा कि कॉलेज में ऐसा नहीं होगा और वहां सभी स्टूडेंट्स पर बराबर ध्यान दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं था,  मैं इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (केरल यूनिवर्सिटी) से एम.बी.ए कर रहा था, वहां पर भी टीचर्स का रवैय्या भेदभाव भरा था। हालांकि किसी टीचर ने कभी सामने से कुछ नहीं कहा लेकिन मुझे कभी मदद नहीं करते थे वो। कभी किसी टीचर ने इनकरेज नहीं किया, ना अपने पसंद का रिसर्च पेपर चुनने दिया गया मुझे। इसकी बड़ी वजह कास्ट थी, ज़्यादातर टीचर्स उंची कास्ट के थे। आप मुझे ये ज़रूर कह सकते हैं कि जब सामने से कुछ नहीं कहा तो भेदभाव कैसा? लेकिन इस बात को महसूस किया जा सकता था।

प्रशांतक्या यही रवैय्या सपोर्ट स्टाफ का भी था कॉलेज में और स्टूडेंट्स का?

बीनेश– स्टूडेंट्स का रवैय्या अच्छा था, लेकिन सपोर्ट स्टाफ तो यहां तक कहते थे कि तुम लोगों को इतना पैसा मिलता है फ्री में स्कॉलरशिप से, क्या करते हो उसका? ये बार बार कहना उनकी सोच तो दिखाता ही है।

प्रशांततो यहीं  से आपने आगे  अलग सबजेक्ट पढ़ने का सोचा?

बीनेश– हां मुझे लगा कि मैनेजमेंट पढ़ के और शायद नौकरी कर के मैं खुद तो स्टेबल हो जाउंगा, लेकिन शायद इस बिहेवियर को पढ़ना और कुछ करना ज़्यादा ज़रूरी है और तभी मैंने तय किया कि मैं एंथ्रोपॉलोजि पढ़ूंगा।

प्रशांतऔर इसके बाद ही शुरु हुई आपकी सिस्टम से पहली लड़ाई? डीटेल में बताइये क्या हुआ?

बीनेश– 2014 में एम.बी.ए की पढ़ाई ख़त्म करने के बाद मैंने M.A इन एंथ्रोपॉलोजि के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स में अप्लाई किया। 2014 में ही मुझे सितंबर 2015 में शुरु होने वाले कोर्स का एडमिशन लेटर मिला। मैंने स्टेट गॉवर्मेंट से आर्थिक मदद के लिए अपील की और उन्हें एप्लिकेशन भी लिखा। इसके लिए मैंने सेक्रेटेरियट में प्रिंसिपल सेक्रेटरी को अप्रोच किया, लेकिन उन्होंने मिलने से भी मना कर दिया। मैं ज्वाइंट सेक्रेटरी के पास गया उन्होंने भी एडवांस फंड रीलिज़ करने से मना कर दिया। मैंने एक दूसरे स्टूडेंट का ज़िक्र किया कि फ्रांस जाने के लिए उसे 20 लाख मिल चुके थे, तो मुझे जवाब मिला की उनकी सरकारी पहुंच थी और अगर मुझे फंड दे दिया गया तो मेरे जैसे कितने ही ट्राईबल स्टूडेंट्स को फंड देना होगा।

प्रशांततो आपको अपने ही हक के पैसों के लिए लगातार ब्यूरोक्रेट्स के चक्कर लगाने पड़े?

बीनेश– चक्कर लगाने के बाद भी अगर वक्त पर फंड दे दिया जाता तो कोई बात नहीं थी। मुझसे सेक्रेटेरियट में सवाल पूछे जाते थे, बार-बार मेरा अपमान किया गया। मेरा इंटरव्यू तक लिया गया। मुझसे पूछा जाता कि डेवलपमेंट से क्या समझते हो? केरला की स्थिती के बारे में बताओ, रिज़र्वेशन पर तुम्हारा क्या कहना है? और जब भी मैं जवाब देने लगता तो मुझसे कहा जाता कि ये गलत है और तुम विदेश जाकर पढ़ने लायक नहीं हो। तुम्हें जब ये चीज़ें नहीं पता हैं तो विदेश जाकर क्या पढ़ाई करोगे?

प्रशांतलेकिन इंटरव्यू लेने वाले या सवाल पूछने वाले वो कौन हैं?

बीनेश– वो बस मुझे परेशान कर रहे थे, और मुझ पर किसी तरह प्रेशर डाल रहे थे कि मैं ससेक्स में पढ़ने का आईडिया छोड़ दूं। इस दौरान मैं कम से कम मैं 25 से 30 बार सेक्रेटेरियट गया मदद मांगने, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। और सितंबर 2015 का एडमिशन डेट निकल गया। और अक्टूबर 2015 में मेरे नाम से स्कॉलरशिप मंज़ूर की गई ये लिखते हुए कि मैं सितंबर 2015 में एडमिशन के लिए इस फंड का इस्तमाल कर सकता हूं और इस फंड की कॉपी मुझ तक नवंबर में पहुंची।

प्रशांतये पूरा प्रकरण बहुत निराश कर देने वाला है।

बीनेश– हां, हालांकि मैंने इसके बाद भी यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स से रिक्वेस्ट किया और यूनिवर्सिटी मुझे जनवरी 2016 में पोस्पोन्ड एडमिशन देने के लिए तैयार हो गया।

प्रशांतइसके बाद बात बनी?

बीनेश– नहीं, मैं ये बात लेकर फिर सेक्रेटेरियट गया और विज़ा के लिए अप्लाई करने के लिए उनसे स्कॉलरशिप लेटर देने की मांग की, उन्होंने यहां भी मुझे परेशान करने का तरीका ढूंंढ लिया और स्कॉलरशिप लेटर मलयाली भाषा में दिया, मैंने रिक्वेस्ट किया की इंग्लिश में लेटर दें तो उन्होंने कहा कि यहां कि भाषा मलयाली है और मलयाली में ही लेटर दिया जाएगा। और फाईनली मेरी वीज़ा रिक्वेस्ट कैंसिल कर दी गई। और इसी के साथ यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स में पढ़ने का रास्ता भी बंद हो गया।

प्रशांतये तो जैसे प्लान करके आपको निशाना बनाया जा रहा हो, ऐसा लगता है।

बीनेश– पता नहीं ऐसा क्यों हुआ लेकिन बहुत बुरा था ये। मैंने इसके बाद 2016 में नैशनल ओवरसीज़ स्कॉलरशिप के लिए अप्लाई किया और मुझे इसकी वजह से लंडन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स में M.A इन एंथ्रोपॉलोजी कोर्स के लिए एडमिशन लेटर मिला जो की सितंबर में ही शुरू होने वाला था। इसबार पैसों की दिक्कत नहीं थी क्योंकि सारा खर्च इसबार केंद्र सरकार उठाने वाली थी। लेकिन विज़ा इश्यू होने के बाद ही केंद्र सरकार स्कॉलरशिप की पहली किश्त रीलिज़ करती इसलिए मैंने राज्य सरकार से अपील की कि शुरुआती खर्च के लिए मुझे 1.50 लाख की मदद करें। शेड्यूल्ड कास्ट/ट्राईब डेवेलपमेंंट मीनिस्टर ए.के बालन ने निर्देश भी दिया कि जल्दी से फंड रीलिज़ किया जाए।

प्रशांततो इस बार मंत्री के हस्तक्षेप से कोई मदद मिली?

बीनेश– हौसला तो बढ़ा लेकिन फंड रीलिज़ करने को लेकर कागज़ फिर उन्हीं अफसरों के पास पहुंची और वो मुझे पहले से ही जानते थे। इसबार भी उन्होंने वही किया और पूरे प्रॉसेस को 1 महीने लेट कर दिया, जिससे सितंबर में शुरु होने वाला कोर्स मैं ज्वाइन नहीं कर पाया।

प्रशांततो आप लंडन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स में भी नहीं पढ़ पाएंगे?

बीनेश– एक चांस और है जनवरी में और इसबार मैं काफी होपफुल हूं कि मदद मिलेगी और मैं लंडन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स में पढ़ पाउंगा।

प्रशांतये पूरा फेज़ बहुत चैलेंजिंग और मुश्किल था, कभी फ्रसट्रेशन हुई बहुत?

बीनेश– ये बात तो शायद बिना कहे ही समझने वाली है कि कितना परेशान रहा हूंगा मैं, हर बार यही कोशिश होती रही कि मैं आगे पढ़ने बाहर ना जा सकूं हर बार मुझ पर प्रेशर डाला गया। बिना वजह 2.5 साल बर्बाद होने पर कई बार मुझे आत्महत्या का ख़्याल आया, लेकिन रोहित वेमुला की दुखद मौत मेरे लिए शहादत की तरह थी और मैंने तभी सोचा की शायद लड़ के इस फेज़ से बाहर निकला जा सकता है और जीत भी इसी मे है।

प्रशांतबीनेश आप बहुत से ऐसे स्टूडेंट्स के लिए एक प्रेरणा हैं जिनके साथ उनके किसी खास जगह या समाज से होने के कारण भेदभाव होता है।

बीनेश– ये तो पता नहीं प्रशांत लेकिन ये जो भी हो रहा है जहां भी हो रहा है, नहीं होना चाहिए, अपने देश में होगा तो इंसान कहां जाए।

प्रशांतबीनेश आपको बहुत शुभकामनाएं, आपकी आगे की पढ़ाई के लिए।

बीनेश– थैंक यू प्रशांत, आपको भी शुभकामनाएं।

 

 

 

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