सिद्धार्थ भट्ट:
उत्तर प्रदेश के जौनपुर में एक नसबंदी कैंप में डॉक्टर की लापरवाही का गंभीर मामला सामने आया है। मंगलवार 30 अगस्त को जौनपुर उत्तर प्रदेश के एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (कम्युनिटी हेल्थ सेंटर) में एक डॉक्टर 17 महिलाओं को एनेस्थीसिया यानी बेहोशी की दवा देने के बाद, कथित रूप से उपकरण खराब होने की बात कह कर चला गया। अंग्रेज़ी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 30 महिलाएं नसबंदी के एक कैंप के लिए क्षेत्र की आशा (अक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट) कर्मियों के साथ यहाँ आई थी।
ये सभी महिलाऐं सुबह 9 बजे से 10 बजे के बीच कैंप पहुंची, लेकिन नसबंदी का ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर प्रवीण कुमार स्वास्थ्य केंद्र शाम 5 बजे पहुंचे और इस दौरान सभी महिलाओं को ऑपरेशन के मद्देनज़र कुछ भी ना खाने की सलाह दी गई। फत्तूपुर गांव की आशा कर्मी छाया सिंह ने बताया कि, “फोन करने के बाद डॉक्टर लगभग शाम 5 बजे पहुंचे। कैंप में 10 बेड होने की वजह से बाकी महिलाओं को ज़मीन पर ही लेटाया गया।” छाया आगे बताती हैं कि, “17 महिलाओं को एनेस्थीसिया देने के बाद उपकरण खराब होने की बात कहकर डॉक्टर वहां से चले गए।”
एक अन्य आशा कर्मी फूल कुमारी ने बताया कि, “डॉक्टर को फिर कॉल किए जाने के बाद वो करीब 9 बजे स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे, लेकिन तब तक वो 17 महिलाऐं जा चुकीं थी।”
वहीं चीफ मेडिकल ऑफिसर रविन्द्र कुमार ने कहा कि, “ऑपरेशन शुरू करने से पूर्व डॉक्टर को पता चला कि लेप्रोस्कोप उपकरण में खराबी है। इसलिए उन्होंने ऑपरेशन को रोक दिया और वो खुद ही नया उपकरण लेने चले गए।”
अब इन सबके बीच सवाल यह है कि, अगर उपकरण में खराबी थी तो एनेस्थीसिया देने से पहले उसकी जांच क्यूं नहीं की गई। भारत में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सवाल उठना कोई नयी बात नहीं है, खासकर ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में। महिलाओं की नसबंदी के ऑपरेशन का एक निजी अस्पताल में खर्च करीब 10 से 15 हज़ार के बीच आता है, जो बड़े अस्पतालों में इससे भी ज़्यादा हो सकता है। इसलिए आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके की महिलाओं के लिए इस प्रकार के कैंप लगाए जाते हैं।
ज़ाहिर है कि ये घटना,अस्पताल प्रशासन की लापरवाही का ही नतीजा है, जहां 5 से 6 घंटे इंतज़ार करने के बाद डॉक्टर पहुंचता तो है, लेकिन उपकरण खराब होने की बात कह कर बड़ा ही गैरज़िम्मेदाराना रवैय्या अपनाते हुए वहां से चला जाता है।
इससे पहले नवम्बर 2014 में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में इसी तरह के नसबंदी कैंप में शामिल 83 महिलाओं में से 15 महिलाओं की मौत हो गयी थी। इसका कारण डॉक्टर की लापरवाही और नियमों की अनदेखी करना बताया गया था। साथ ही केवल पांच घंटों में एक ही डॉक्टर द्वारा 83 महिलाओं की नसबंदी, एक ही उपकरण से किए जाने की बात सामने आयी थी।
वहीं नियमों के अनुसार एक दिन में, एक मेडिकल टीम 3 उपकरणों का इस्तेमाल 30 महिलाओं की नसबंदी करने के लिए ही कर सकती है। जिसका अर्थ है कि एक उपकरण को 10 बार इस्तेमाल में लाए जाने के बाद उसे स्टेरलाइज्ड यानी कि कीटाणुरहित किया जाना ज़रुरी है।
ओडिशा में दाना मांझी को मृत पत्नी का शव ना ले जाने के लिए एम्बुलेंस ना मिलना हो या कानपुर में जानकारी ना मिलने के कारण एक बच्चे की मौत हो जाना हो। ये सभी घटनाएं स्वास्थ्य के क्षेत्र के लिए चिंता का विषय हैं। इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट, भारत में 500000 डॉक्टरों की कमी की बात कहती है। बहरहाल सवाल यही है कि सस्ती स्वास्थ्य सेवा मुहैया करवाने के नाम पर लोगों की जान से खिलवाड़ का ये क्रूर मज़ाक कब बंद होगा?