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#100साल50गांधी: 10 साल से पुल के नीचे फ्री स्कूल चला रहे हैं राजेश

एडिटर्स नोट- चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष के मौके पर YKA आपको मिलवा रहा है हमारे-आपके बीच के उन लोगों से जो अपने स्तर पर ला रहे हैं बदलाव। #100साल50गांधी के नाम से चल रहे इस कैंपेन के तहत अगर आपके आस-पास भी है कोई ऐसा जो है हमारे बीच का गांधी तो हम तक पहुंचाइये उनकी बात ।

फिल्म 3 इडियट्स का वो डायलॉग तो याद होगा आपको जब रैन्चो कहता है कि स्कूल जाने के लिए पैसे नहीं लगते, यूनिफॉर्म लगती है, किसी भी स्कूल का यूनिफॉर्म लो और पढ़ाई शुरू। अब ज़रा सोचिए की असल ज़िंदगी में भी कोई ऐसा नायक हो जो ये कहे कि स्कूल जाने के लिए ना तो यूनिफॉर्म लगता है, ना पैसे लगते हैं, ना स्कूल के लिए छत चाहिए, ना किताबों के लिए पैसे बस चाहिए तो जिंदगी के सिखाए हुए तय दस्तूरों को तोड़ते हुए, शिक्षा से अपने जीवन को रौशन कर देने की लगन।

मिलिए, राजेश कुमार शर्मा से जो दिल्ली के यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन के पुल के नीचे पिछले 10 सालों से बिल्कुल निस्वार्थ शिक्षा का अलख जगा रहे हैं। राजेश आर्थिक रूप से कमज़ोर और पिछड़े तबके के करीब 270 बच्चों के सपने में हर रोज़ जान भरते हैं। ना आलिशान बिल्डिंग, ना हाईटेक क्लासरूम और ना कोई तामझाम, पुल की छत, हर कुछ मिनट में मेट्रो का शोर, एक दीवार पर बना ब्लैकबोर्ड, हर मुश्किलों से लड़ जाने का गज़ब का जज्बा, एक दूसरे की प्रेरणा बने बच्चे, मुस्कुराते चेहरे और एक शख्स जो बदल देना चाहता है इनके जीवन की तस्वीर ये सब मिलकर बनता है ‘अंडर द ब्रिज स्कूल’।

राजेश शर्मा (दाहिनी ओर) अपने सहयोगी के साथ

कैसे हुई शुरुआत

पेशे से दुकानदार राजेश शर्मा साल 2006 में यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन के पास शुरू हुई खुदाई का काम देखने गए थे, जहां उन्हें मिट्टी में खेलते कुछ बच्चे दिखे। राजेश शर्मा के मन में सवाल ये नहीं था कि इन जैसे और भी बच्चों की मदद की जाए या नहीं बल्कि सवाल ये था कि कोई ऐसी मदद कैसी की जाए जो इनके साथ ताउम्र रहे और वहीं से शुरुआत हुई ‘अंडर द ब्रिज स्कूल’ की कल्पना। Youth Ki Awaaz से बात करते हुए राजेश शर्मा ने बताया कि ‘ वो बच्चे पास की दुकान से 5-10 रूपये की टॉफी लेने के लिए भी तैयार थे लेकिन मैनें सोचा कि टॉफी का असर तो बस मुंह में घुलने से पहले तक होगा, फिर मैनें सोचा कि इनको अगर कपड़े भी दी जाए तो कुछ दिनों में वही ज़रूरत फिर से सामने आ जाएगी, तभी मैनें तय किया कि इनको पढ़ाने का काम किया जाए, क्योंकि शिक्षा शायद ताउम्र इनके साथ रहेगी और फिर बाकी की सारी मदद वो खुद कर सकेंगे’
अगले दिन से एक पेड़ के नीचे 2 बच्चों से शुरू हुआ एक ऐसा प्रयास जो पूरे देश को उम्मीदों से रौशन कर देता है।

3 साल बाद आया एक ब्रेक

2 बच्चों से शुरू हुआ ये प्रयास 3 साल में 160 बच्चों तक पहुंच चुका था, लेकिन तभी राजेश शर्मा के सामने पहली सबसे बड़ी मुश्किल आई। जिस जगह बच्चों को पढ़ाया जाता था उसे विकास कार्यों के लिए तोड़ दिया गया। और राजेश शर्मा को 2009 में इस अभियान को रोकना पड़ा।

2010 में बना ‘अंडर द ब्रिज स्कूल’

2010 में राजेश फिर से लौटे और इसबार उनके साथ लोगों का भरोसा था। साल 2010 में राजेश ने फिर से 2 बच्चों के साथ अपने अभियान की शुरुआत की और इसबार यमुना बैंक मेट्रो के पुल के नीचे। इसबार राजेश तक आस-पास के बच्चों की आने की संख्या और रफ्तार दोनों ही पहले से बहुत ज्यादा थी। धीरे-धीरे राजेश के प्रयास की चर्चा आम लोगों में होने लगी, वहीं से राजेश के प्रयास को नाम मिला ‘अंडर द ब्रिज स्कूल’ जिसका स्वागत राजेश ने भी किया।

जुड़ते गए लोग, मज़बूत होता गया स्कूल

इस स्कूल के बारे में जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया, और भी लोग यहां बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने आने लगें, हालांकि राजेश ने कभी किसी से कोई आर्थिक मदद नहीं ली, और जबभी कोई हाथ मदद के लिए आगे आया राजेश ने हमेशा बस बच्चों के बातें सामने रखी चाहे बच्चों को स्वास्थ्य सेवाएं दिलाने की बात हो या फिर बच्चों को पढ़ाने की।

यहां पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य

राजेश यहां आने वाले बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा देते हैं, राजेश उनके माता-पिता को शिक्षा के प्रति जागरूक करते हैं। प्रारंभिक शिक्षा देने और शिक्षा के प्रति ललक जगाने के बाद राजेश बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में करवाते हैं ताकी बच्चों को मानक डिग्री भी मिल जाए और बच्चे अपने भविष्य को मनचाही दिशा दे सकें। इस काम के लिए राजेश सारी काग़ज़ी कार्रवाई खुद पूरी करते हैं।

मुश्किलें भी आती हैं

हम से बात चीत में राजेश ने बताया कि कभी-कभी काफी मुश्किलें आती हैं। कई बार पुलिस द्वारा जगह खाली करवा देना तो कई बार खुद की आर्थिक ज़रूरते पूरी ना हो पाना। राजेश बताते हैं कि कभी ऐसा भी ख्याल आता है कि ये सब छोड़ कर अपने जीवन पर ध्यान देना चाहिए लेकिन हर सुबह जब हर निराशा से लड़ते हुए इन बच्चों का उम्मीदों भरा चेहरा सामने आता है तो सारा संदेह जाता रहता है।

इस दौर में जब हमारे देश में कई तरफ से निराश करने वाली तस्वीरें सामने आती है, राजेश शर्मा का ये प्रयास ना सिर्फ सलाम करने लायक है, बल्कि उस इंसानियत पर भी पुरज़ोर भरोसा जगाता है जिसकी कल्पना शायद हम आप एक बेहतर समाज के तौर पर करते हैं। आइए दुआ नज़र करे शिक्षा का अलख जगाने वाले ऐसे असाधारण व्यक्तित्व को और हो सके तो एक दिन हो आइए अंडर द ब्रिज स्कूल से, बहुत सहजता से पता चलेगा कि क्रांति तामझाम नहीं ढूंढ़ती।

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