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हर रोज़ दबाया जाता है ‘अनचाहे टच’ के विरोध में कहा गया ‘No’

इति:

एक दोस्त ने अपना अनुभव शेयर करते हुए लिखा था

“एक और डरा देने वाला अनुभव, आज ‘दस्तक’ कार्यक्रम के तहत जिस स्कूल में गई वहां एक लड़की ने बताया कि वो रात भर सो नहीं पाती है। उसका सगा भाई इंतज़ार करता है उसके सोने का। फिर अपनी बहन के साथ ही अपने शरीर की वासना की आग बुझाने में लग जाता है। लड़की माँ से शिकायत करती है, मगर माँ कहती है खबरदार मेरे बेटे पर शक मत कर । लड़की हर दिन स्कूल से घर जाने के नाम से डरने लगती है।”

वो डरती है अपने भाई के स्पर्श से। उसके मुंह से हर बार निकलता है ‘ना’। वहीं ना जिसे तर्क, स्पष्टीकरण, या व्याख्या की ज़रूरत नहीं होती, ‘ना’ मतलब सिर्फ ‘ना’ होता है।

फिल्म ‘पिंक’ में नायिका कोर्ट रूम में बोलती है ‘सर बहुत गंदी फिलिंग होती है, जब कोई इस तरीके से छूता है, किसको अच्छा लगता है सर, कोई इस तरह से छूए, ज़बरदस्ती।’ हम लड़कियों के जीवन में कई बार एक अनचाहे स्पर्श का समाना होता है। वो स्पर्श किसी अनजान व्यक्ति का होता तो कभी किसी अपने का। एक अनजान स्पर्श ही हमें झकझोरने के लिए काफी होता है। ये बच्ची तो हर रोज़ अपने घर में ही अपने सगे के अनचाहे स्पर्श का सामना कर रही है।

फिल्म में अमिताभ बच्चन का संवाद भी इस लड़की के मामले में बिलकुल सही बैठता है।
“आज हम सब एक गलत डाइरेक्शन में एफर्ट कर रहे हैं, वी शुड सेव आवर बॉयज नॉट आवर गर्ल्स। बिकज़ इफ वी सेव आवर बॉयज़ देन गर्ल्स विल बी सेफ।”

कोई भी कहानी जब आपसे जुड़ी बातें करती हो तो वो अपनी सी लगती है। ‘पिंक’ के साथ कुछ ऐसा ही है, जिसे कई लड़कियां खुद के करीब देख रही हैं, खासकर आज की स्वतंत्र महिलाएं। तभी तो हर लड़की को फिल्म में कही गई ‘ना’ वाली बात अपनी लग रही है और वो भी खुलेआम कह रही हैं ‘ना का मतलब ना’।

कई लोग इस फिल्म को महिला विरोधी बता रहे हैं। मगर मैं इस फिल्म को सिर्फ एक सामान्य लड़की की तरह देखती हूं और इस फिल्म में मुझे अपनी कहानी भी नज़र आती है।

एक मित्र का कहना है कि फिल्म में बोल्ड लड़कियां अचानक कमज़ोर पड़ जाती हैं। जब मेरे साथ एक यौन उत्पीड़न की घटना घटी थी उस वक़्त मुझे कई लोगों ने कहा, तुम रोती क्यों हो, तुम एक एक्टिविस्ट हो, तुम्हें आँसू नहीं बहाने चाहिए।

दरअसल, हम ये मानने को तैयार नहीं होते कि एक बोल्ड लड़की भी जीवन के किसी ना किसी मोड़ पर कमज़ोर पड़ सकती है। वो भी एक सामान्य लड़की ही है। जिन घटनाक्रमों से फिल्म की नायिकाएँ गुज़रती हैं, उनका कमज़ोर पड़ना कोई आश्चर्य की बात नहीं।

हांलाकी, मुझे फिल्म की नायिकाएँ किसी भी रूप में कमज़ोर नहीं दिखी। गज़ब का साहस दिखा उनके अंदर। वो हर मोड़ पर लड़ती रहीं। अगर वो कमज़ोर होतीं, तो माफी मांग कर समझौता कर सकती थीं, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। बल्कि ‘फलक अली’ फोन पर उस लड़के को कहती है ‘मीनल को तो तुम्हारी दोनों आँखें फोड़ देनी चाहिए थी।’ कोर्ट रूम में ‘मीनल’ कहती है ‘अगर दोबारा करेगा ना सर, तो दोबारा खींच कर इसके सर पर मारूंगी मैं।’

किस कमज़ोर लड़की में इस तरह बेबाकी से कहने का साहस होगा? हाँ वो ज़रूर डरती हैं, चीज़ें छुपाना चाहती हैं । इसका कारण ये नहीं कि वो डर गई थीं, वे जानती हैं वो स्वतंत्र महिलाएं हैं। जिनके लिए हर दिन एक संघर्ष है, हर दिन एक लड़ाई है। उनका स्वतंत्र और बेबाक होना ही समाज के कई लोगों की नज़रों में खटकने जैसा है। वो इसलिए अपनी बातों को छुपाने के लिए मजबूर हैं। वो जानती हैं हमारा समाज उनके पक्ष में नहीं आएगा, बल्कि सबसे पहले वो उनके चरित्र का प्रमाण पत्र देना शुरू कर देगा और उन जैसी कई स्वतंत्र लड़कियों पर सवाल उठाये जाएगें।

लड़कियों का शराब पीना, लड़कों के साथ घूमना, उनके साथ हंसी मज़ाक करना, आज भी समाज इसे पचा नहीं पाता। याद है मुझे, मेरे मुहल्ले की एक घटना। एक लड़की के चरित्र पर सिर्फ इसलिए सवाल उठाया गया था क्योंकि वह अपने पुरुष मित्र के घर पर रुकी थी। खैर, इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं लिखुंगी, ‘पिंक’ फिल्म के बाद इस बारे में कई बातें कहीं जा चुकी हैं।

मैं उसी दौर की लड़की हूं, जहां लड़कियां स्वतंत्र होकर जीने लगी हैं। मगर इस स्वतंत्रता के लिए बहुत लड़ाइयां लड़ी गई हैं। आज जब लड़कियां इस मुकाम पर पहुंची हैं तो उनके चरित्र का प्रमाण देने के लिए दर्जनों लोग खड़े रहते हैं। इस फिल्म को मैं इसलिए खुद के करीब पाती हूं क्योंकि ये फिल्म हम जैसी ढेरों स्वतंत्र लड़कियों की कहानी कहता है।

फिल्म के एक दृश्य में ‘फलक अली’ कोर्ट रूम मे बोलती है ‘हाँ लिए हैं हमने पैसे, हमने पैसे मांगे भी और लिए भी। लेकिन उसके बाद भी मीनल ने मना किया। मीनल बार-बार ना कहती रही मगर वह नहीं माना।’ वह जज से सवाल करती है ‘आप बताइये, बाई लॉ वो सही था या मीनल’।

तीनों लड़कियों ने पैसे नहीं लिए, मगर फ़लक का विस्फोटित होकर यह बात कहना बहुत कुछ कह गया। उसका यह सवाल भी बहुत मायने रखता है ‘बाई लॉ वो सही था या मीनल।’ समाज में यह धारणा है कि देह व्यपार में लगी औरतों को ना कहने का कोई हक नहीं जबकि उन्हें भी ना कहने का कानूनी हक प्राप्त है। कानूनी रूप से महिलाओं को यो अधिकार है कि वो किसी को भी मना कर सकती हैं।

मैं ना ही इस फिल्म की पब्लिसिटी कर रही और ना ही फिल्म की तारीफों के पुल बांध रही। बेशक फिल्म में ढ़ेरों कमियां हैं, कोर्ट रूम के कई दृश्यों से लेकर अन्य कई पहलुओं पर। लेकिन फिल्म में कुछ बातें हमारे इतनी करीब हैं, जिसके आगे इन कमियों पर ध्यान ही नहीं जाता।

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि अमिताभ बच्चन का अपनी नातिन को लिखा खत फिल्म के प्रमोशन का हिस्सा था। बेशक, मैं भी यहीं मानती हूँ। मगर यो भी देखिये उनके उस खत के बाद कितनी ही लड़कियों ने भी उस मसले पर अपनी बात रखी। अगर कोई प्रोमोशन स्टंट समाज पर कुछ सकरात्मक प्रभाव छोड़ने का काम करता है, तो उस प्रोमोशन को मैं गलत नहीं मानती।
मुझे नहीं पता एक पुरुष के कितने करीब है ये फिल्म लेकिन हाँ मेरे और मेरे जैसी कई लड़कियों के करीब है यह फिल्म। हम जैसी कई लड़कियों की कहानी कहता है ये फिल्म।

 

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