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भाजपा के गढ़ में ‘आम आदमी’ हो सकता है कोई विकल्प?

सागर विश्नोई

गुजरात का राजनीतिक इतिहास उठाकर देखा जाये तो उसमें एकछत्र राज सा दिखता है। 1960 में गुजरात राज्य के गठन के बाद कांग्रेस ने 35 साल राज किया, लेकिन उसके बाद 1995 में बीजेपी ने बहुत बड़ी रैली की, सूरत में। बीजेपी ने 1995 में गुजरात में अपनी सरकार बनाई और 21 साल तक एकछत्र राज कर रही है। लेकिन एक दिन पहले सूरत में हुई आम आदमी पार्टी की बड़ी रैली ने राजनीतिक पंडितों को सकते में दाल दिया है।

केजरीवाल ने जहाँ सूरत नें हुई अपनी रैली में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर जमकर निशाना साधा वहीं उन्होंने बीजेपी के प्रति पाटीदारों का गुस्सा भांपते हुए अमित शाह को “ जनरल डायर “तक कह डाला। ज्ञात हो की पिछले साल अगस्त महीने में, पाटीदार आंदोलन के दौरान 14 युवकों की गोली लगने से मौत हो गयी थी। केजरीवाल ने सूरत रैली के दौरान पटेल परिवारों को न्याय दिलाने की बात कही और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को सबसे बड़ा देशभक्त भी बताया।

चुनाव के लिहाज से देखा जाए तो गुजरात में 22 वर्षों से सत्ता के बाहर रहने के कारण कांग्रेस

सूरत में रैली को संबोधित करते हुए अरविंद केजरीवाल।

कार्यकर्ता बिखर चुका है। पाटीदार आंदोलन और ऊना कस्बे के एक गाँव में दलितों पर अत्याचार हुए थे। उसके बाद जुलाई में गुजरात में महा-दलित रैली का आयोजन हुआ था और तभी दलित आंदोलन ने गुजरात सरकार को भी हिला दिया था। आनंदीबेन का हटना और विजय रूपानी की ताजपोशी इसकी गवाही थी ।

गुजरात को अस्थिर कर रहे इन संघर्षों के बीच ही केजरीवाल ने स्थिति को भांप कर कुमार विश्वास संग गुजरात के सोमनाथ मंदिर गए और एक छोटी रैली भी संबोधित की। जल्दी ही उन्होंने गुजरात में संगठन खड़ा करने आशुतोष को भेजा और पार्टी ने मन बनाया की आम आदमी पार्टी गुजरात का अगला चुनाव लड़ेगी।
अब हार्दिक पटेल ने केजरीवाल को पत्र लिखकर गुजरात में पूरा समर्थन देने का वादा किया है, और माना जा रहा है की पटेल समुदाय गुजरात चुनाव में केजरीवाल की पार्टी की तरफ जा सकता है, लेकिन क्या केजरीवाल को दलित आंदोलन की तरफ से कोई समर्थन मिल पायेगा या दलित आंदोलन के चेहरे जिग्नेश मेवानी केजरीवाल का वैसा ही स्वागत करेंगे जैसा हार्दिक ने किया?

बीजेपी ने भी केजरीवाल का स्वागत किया और सूरत में उनकी फोटो हाफ़िज़ सईद, ओसामा बिन लादेन और बुरहान वानी जैसे आतंकवादियों के साथ लगाकर हर चौराहे और महत्वपूर्ण स्थानों पर चस्पा किया।

केजरीवाल की रैली में हज़ारों की उमड़ी भीड़ और उनका मोदी के बजाय बीजेपी के चाणक्य अमित शाह पर निशाना साधना एक अलग रणनीति की ओर भी इशारा है। कहा जा रहा है कि 22 साल बाद सूरत में ऐसी राजनीतिक रैली हुई है जिसे भाजपा के अलावा किसी और पार्टी को इतना जन-समर्थन मिला है।

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