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गौतम गंभीर का टीम में वापस आना नए जेनेरेशन का ऑप्टिमिज़्म है

 अभिषेक चौधरी:

2014 से लेकर अब तक बहुत कुछ बदला है, बदलते रहना भी चाहिए। और हम कितना भी quote oriented हो जाएं, सच्चाई ये है कि बदलाव हमेशा अच्छे नहीं होते। अब जिन्हें प्रधानमंत्री साहब से दिक्कत है उनका समर्थन तो मिल गया मुझे इस लाइन से खैर मुझे आम आदमी (पार्टी) की तरह मुद्दे से भटकने की आदत है। क्षमाप्रार्थी हूँ (ऐसा आप सोच सकते हैं) वैसे भी don’t say sorry if you don’t mean it सुने मुझे दो साल से ऊपर हो गए।

अब जब इन दो सालों का ज़िक्र हुआ है तो बात कर लेते हैं गंभीर साहब की। साहब लगाने की वजह है यहाँ पर, (पत्रकारिता मे हमें पढ़ाया गया था किसी भी हस्ती के बारे में कुछ भी लिखते वक़्त किसी भी तरीके का टाइटल देने से बचें। पर पत्रकारिता में पढ़ी हर चीज़ सीखी होती तो फेसबुक पे war war थोड़ी चिल्लाते)। गंभीर साहब ने वो कर दिखाया है जो बस आपको आईआईएम की क्लासेज़ में – यानि की कमबैक्स के केस स्टडी में देखने को मिलता है। अब देखिये न जिस दौर में कैप्टन्स के ऊपर बायोग्राफी (hagiography भी कह रहे लोग, पर उस पे चर्चा बाद में) बन रही है, गंभीर ने 35 साल की उम्र में दिखाया है कैसे क्रिकेट उनकी ज़ोहरा जबीं हैं और वो जवान।

[envoke_twitter_link]गंभीर माने न माने, एक बायोग्राफी तो उनके हिस्से भी बनती है।[/envoke_twitter_link] क्योंकि जिन्होंने भारतीय क्रिकेट को फॉलो किया है वो मानेंगे कि गंभीर शरीफों के प्रवीण कुमार रहे हैं। (मैं आपको प्रवीण कुमार के किस्से नहीं बता रहा, क्योंकि मेरे पास वक़्त नहीं है और दूसरा मुझे लगता है के आपको मेरे लेख पढ़ने से पहले रिसर्च करके बैठना चाहिए) हाँ तो बात हो रही थी गंभीर की, एक बात बता दूँ के जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पे मौके नहीं मिल रहे थे तो अफरीदी की साथ आँख में आँख डाल सर्जिकल स्ट्राइक करने का सवाल नहीं था। ऐसे में उन्होंने आईपीएल में मौजूदा कप्तान कोहली को चैलेंज किया था एक दूसरे तरीके के खेल में, दिल्ली का होमग्रोन खेल। हां वही जहां आप ईसा पूर्व (ये तो समझ गए होंगे आप) वाली बातें करते हैं।

पहली इनिंग में भले उन्होंने सिर्फ 29 रन बनाये हो पर कुछ साल पहले वो मनोज तिवारी को ग्राउंड के बहार देख लेने की बात कर रहे थे। सो कॉमन यू सी। अब गंभीर का यही I don’t give a damn attitude उन्हें फिर से टीम में लाई है। तकनीकि खामियां अब भी हैं, शायद इंदौर में पिच उतनी टेस्टिंग नहीं थी तो पकड़ में नहीं आई पर एक बाल बच्चेदार 35 साल के इंसान का शनिवार सुबह उठना ही ग्रेटनेस का एक लेवल है। शार्ट बॉल्स पे पुल अच्छे लगाए एक आध। और सुरेश रैना वाले  ज़माने में शार्ट बॉल पे खेला गया पुल रेगिस्तान में ओएसिस मिलने जैसा है। और आज रिटायर्ड हर्ट होने के बाद गंभीर-गंभीर का चैंट तो सुना ही होगा आपने। अच्छे करियर की एक कमाई ये भी होती है कि हर बार जब आप पिच से लौट रहे हों तो ऑडियंस आपको ड्रेसिंग रूम तक छोड़ कर आए। सुनने में ये भी आया है के गम्भीर ऑस्ट्रेलिया गए थे जस्टिन लैंगर के साथ मिलकर बैटिंग पॉलिश करने। सफल कितने हुए इसका अंदाज़ा तो लगाना मुश्किल है पर जज़्बा दिखा। वैसे भी दिल्ली से विदेश जाने वाले हर इंसान की सक्सेस का प्रूफ मांगने का जमाना नहीं है ये।

दरअसल हम खुश हैं, खासतौर पर अपनी बात करूँ तो बेहद [envoke_twitter_link]ख़ुशी है गंभीर ने हमें उम्मीद दी है।[/envoke_twitter_link] अब इस उम्मीद को अलग अलग लोग अलग अलग नज़रिये से देखते हैं। मेरी उम्मीद ये है कि वो और खेलेंगे और BCCI इस सीरीज को उनके फेयरवेल सीरीज़ की तरह नहीं मानेगा। इस बात के चान्सेज़ हैं और हो जाये तो सरप्राइज़ मत होइएगा। ये इंडियन क्रिकेट है यहाँ एक सन्यास की घोषणा करने वाला खिलाडी प्रेस कांफ्रेंस से पहले कप्तान को फ़ोन करने की कोशिश करता है तो कोई जवाब नहीं आता। यहाँ किसी ऐसे खिलाड़ी को, जिसने वर्ल्ड कप के फाइनल में विंनिंग इनिंग खेली हो, अगर रिटायरमेंट के बहाने फुसलाने को टीम में जगह दी जाये तो सरप्राइज़ मत होइएगा। वैसे अगर आप भी ऑप्टिमिसम के शिकार हैं (जैसे सलमान रुश्दी ने मिडनाइट’स चिल्ड्रन में लिखा है) तो मान लीजिये कि इंडियन टेस्ट सीजन के [envoke_twitter_link]बाकि बचे 10 टेस्ट मैचेज़ में आपको फिर से गंभीर दिखेंगे।[/envoke_twitter_link] मैं आपको सही करने की कोशिश नहीं कर रहा। ऑपटिमिस्ट इंडियंस से बहस करना आजकल देशद्रोह माना जाता है। हाँ ये व्यंग्य नहीं है,मैं गंभीर हूँ। जियो गौतम!

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