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BHU में महिला महाविद्यालय का नाम सुनकर मुंह से बस ‘ओह’ निकलता है

निवेदिता शांडिल्य:

जी हां, MMV (महिला महाविद्यालय) BHU के अन्दर तो है पर बी.एच.यू. जैसा नहीं है। BHU का अभिन्न अंग होते हुए भी बहुत अलग। ये जगह खूबसूरत है, बहुत ही खूबसूरत, मगर सिर्फ बाहर से। अंदर एक ऐसी दुनिया है जो बाहर की दुनिया से बहुत अलग है। सिर्फ co-education ना होने की वजह से आलोचना करना ज्यादती होगी क्योंकि बाकी कई चीज़ें हैं जो इस जगह को बाकी दुनिया से पिछड़ा बना देती हैं, उस पर ध्यान देने और बात करने की ज़रूरत है। MMV में हॉस्टल मिलना बहुत बड़ी बात है मगर हॉस्टल अलोटमेंट की प्रक्रिया को झेलना उससे भी बड़ी बात।

आज़ादी का ख्वाब लिए, घर वालों से लड़-झगड़ के हॉस्टल में आई लड़कियों को सबसे पहला निर्देश मिलता है कि- [envoke_twitter_link]’जाओ माँ-बाप को लेकर आओ वरना हॉस्टल नहीं मिलेगा'[/envoke_twitter_link]। बहुत सी लड़कियों के घर वाले ऐसे होते हैं, जो नहीं चाहते कि बेटी बाहर जाकर पढाई करे। उनकी इच्छा के विरूद्ध जाकर अपने किस्म का छोटा ही सही पर ‘विद्रोह’ कर के आयी लड़कियों के लिए ये बड़ा झटका होता है। ये प्रक्रिया हौसलों को पस्त करने वाली होती है, आगे बढाने की जगह पैर जकड़ कर पीछे खींचने वाली होती है।

बलराज साहनी ने JNU में दिए अपने एक भाषण में कहा था कि आज़ादी से पहले हर कॉलेज, विश्वविद्यालय में बच्चों से एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवाया जाता था कि “यदि हम धरना प्रदर्शन और विरोध जैसी गतिविधियों में पाए जाते हैं तो हमें कॉलेज से निकालने का प्रशासन को पूर्ण अधिकार है।”

सुनने में बड़ा अजीब लगा कि किस हद तक की गुलामी!! मगर आश्चर्य हुआ जब ऐसे ही शपथ-पत्र पर हमसे भी हस्ताक्षर करवाये गए। हम आवाज़ नहीं उठा सकते क्योंकि बोलना यहां पर गुनाह होता है। यहां [envoke_twitter_link]हमें उड़ना तो सिखाया जाता है मगर पंछी की तरह नहीं पतंग की तरह [/envoke_twitter_link]जहां हमारी डोर कहीं न कहीं दूसरे के हाथ में ही होती है। यहां आज़ादी का मतलब गेट का 8 बजे तक खुला रहना होता है, अब क्या चाहिए। आज़ादी का इतना संकुचित रूप शायद ही कहीं और मिले।

यहां जैसे ही आप आते हैं अफवाहों की ऐसी दुनिया में घुस जाते हैं जहां से निकलना बहुत मुश्किल है। पूरे BHU में MMV का नाम सुनते ही एक अजीब सा ‘ओह’ निकलता है। ‘ओह….MMV से हो??’ आप हां कहते हैं और अगले की नज़रों में ‘ये भी वैसी ही होगी’ बन जाते हैं। ये ‘ओह’ भी एक पूरा का पूरा वाक्य है, जो बताता है कि आप सम्मान के पात्र नहीं है क्योकिं आप MMV से हैं।

भारतीय समाज की ओछी मानसिकता का प्रोटोटाइप है MMV। हमारे समाज में लड़के बदतमीज़ी करते हैं और कड़ाई लड़कियों पर की जाती है। बाहर कोई भी बवाल हो, सबसे ज़्यादा असर MMV पर ही पड़ता है। सारे नियम इस ब्रह्मवाक्य के साथ थोप दिए जाते हैं कि ‘आप लड़की हैं और ये सब आपकी भलाई के लिए है।’  समझ नहीं आता कि अगर ऐसी सेफ्टी ही इन नियम-कायदों का आधार है, तो फिर लड़कों के साथ ऐसा क्यों नहीं? लड़के का भी गैंगरेप हुआ, हॉस्टलों में पेट्रोल बम मिले। क्या ये सारी बातें यह बताने के लिए काफी नहीं कि लड़के भी सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे नियम-कायदों में बांधना, प्रशासन की नाकामी का सबूत है। हद तो तब होती है जब एक हॉस्टल की लड़की दूसरे हॉस्टल तक में नहीं जा सकती।

मुझे समझ नहीं आता कि ये कैसी सुरक्षा हमें मिल रही है? [envoke_twitter_link]हमें सुरक्षा दी जा रही है या उसके नाम पर अपंग बनाया जा रहा है[/envoke_twitter_link]। हम बाकी BHU से बहुत पिछड़े हुए हैं। बाकी BHU के हास्टल्स में अगर वाई-फाई नहीं तो LAN कनेक्शन की सुविधा है, मगर MMV में तो केबल कनेक्शन तक नहीं मिलता। जब हम न्यूज़ देखने की बात करते हैं, तो जवाब मिलता है कि ‘हमें पता है कि कितना न्यूज़ देखती हो तुम लोग।’ इनकी तो बात ही छोड़िये, मेस वाले भी अपना सारा रौब लड़कियों पर ही दिखाते हैं। भले ही आप पूरे महीने ना खाएं मगर पैसे आपको पूरे देने होंगे।

ये जगह भी लोकतांत्रिक है जैसे हमारा देश है। एकदम अपंग सा। [envoke_twitter_link]यहां केवल लोकतंत्र और आज़ादी की बातें होती हैं, मगर धरातल पर कहीं नहीं दिखता[/envoke_twitter_link]। अगर आप  MMV की हैं तो माफ करिएगा, आप लड़की नहीं बस एक आइटम हैं। ये बाकी BHU का परसेप्शन है हमारे लिए। जी हां ‘MMV की लड़की है तो एक कॉफ़ी से पिघल जाएगी।’ हम आइसक्रीम हैं जो पिघल जाएंगे और किसी चाकलेट से पट जाएंगे? मगर ऐसी नज़रें आपका हर जगह पीछा करती हैं। आप बाहर कहीं ये बताने में हिचकिचाते हैं कि आप MMV से हैं। हमें हर जगह मिलता है भेदभाव, पक्षपात और चुभती नज़रें।

मुझे समझ नहीं आता कि अब भी अलग-अलग शिक्षा का क्या मतलब है। MMV की स्थापना किसी वक्त की ज़रूरत हो सकती है, मगर आज वक्त कह रहा है कि इसकी कोई जरूरत नहीं। चीज़ें पहले से बहुत बदली हैं और जरूरत है हमें वक्त के साथ बदलने की। [envoke_twitter_link]ये जगह अब सिर्फ कुन्ठाओं, अफवाहों और पक्षपात का गढ बन चुकी है।[/envoke_twitter_link] सिर्फ पुराने रीतियों व परंपराओं के नाम पर इन चीज़ों को बढावा दिया जा रहा है। पुराना मतलब हमेशा अच्छा नहीं होता।[envoke_twitter_link] पुरानी दीवार अपने आप अचानक गिरे इससे अच्छा है कि हम सब मिलकर इसे गिराएं [/envoke_twitter_link]और वहीं से एक नई शुरूआत करें।

हमें कहा जाता है कि गर्व से कहो ‘हम MMVian हैं’,जैसे गर्व से कहो कि हम दलित हैं, गर्व से कहो कि ‘हम औरत हैं।’ मगर हमें पता है कि कहने की ज़रूरत हमें बार-बार इसलिए पड़ती है क्योंकि सुनने वाले अभी भी नहीं मानते कि औरत, दलित या MMVian होना गर्व की बात है। मगर यकीन मानिए हम सिर्फ कहना नहीं बल्कि असल में गर्व करना चाहते हैं। हम आज़ादी चाहते हैं। उड़ना चाहते हैं, मगर पतंग बनकर नहीं पंछी बनकर। चलना चाहते हैं मगर खुद से, किसी के सहारे नहीं। हमने मेहनत की यहां आने के लिए, मगर अब सब मेहनत कर रहें हैं यहां से निकलने के लिए।[envoke_twitter_link] क्योंकि बेड़ियां सोने की ही क्यों न हों……अच्छी नहीं लगती[/envoke_twitter_link]।

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