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सबसे जवान देश की कमज़ोर होती युवाशक्ति

रामकुमार विद्यार्थी

जब तक देश में लाखों युवा नशे और निराशा की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं, तब तक युवाओं के सुनहरे वर्तमान का स्वप्न नहीं देखा जा सकता। इन कमज़ोरियों से घिरे रहते हुए कोई युवा नहीं रह सकता। क्या आज के युवा गहरी नींद में अपनी सफलता के सपने बुन रहे हैं? देश को उनसे बड़ी अपेक्षाएं हैं, उन पर परिवार का भरोसा भी है। लेकिन इस भरोसे पर खरा उतरने के लिए ज़रूरी है कि युवा खुली आंखों से अपने विकास का स्वप्न देखें। इस समय हमारे सामने  महत्वपूर्ण अवसर है जब हम युवा होने की कसौटी पर खुद को खरा साबित करें।

2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 10-24 साल की उम्र के करीब 36 करोड़, 46 लाख, 60 हजार युवा हैं जो देश की आबादी का 30.11% से भी अधिक है। वह दिन दूर नहीं जब भारत की आधी आबादी युवा होगी। लेकिन क्या तब भी भारत वास्तव में स्वस्थ समर्थ युवाओं का देश होगा? देश के युवाओं की पहली बड़ी कमजोरी है नशा।

उड़ता पंजाब फिल्म से निकली बात और कई रिपोर्ट बताती हैं कि पंजाब के 73.5% युवा ड्रग्स के आदी हैं। लेकिन सिर्फ पंजाब ही नहीं नशाखोरी के कुचक्र में भारत का हर राज्य जकड़ा नजर आता है। बाल अधिकार संगठनों के अनुसार देश भर में नशाखोरी से ग्रस्त करीब 64% वे लोग हैं, जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम है। देश के कई बड़े रेलवे प्लैटफार्म व सड़कों पर हजारों कामकाजी बच्चों और किशोरों को व्हाइटनर, सॉल्यूशन, बूट पॉलिश, पैट्रोल, डीजल, कफसिरप, नींद की गोलियां और टरपेंटाइन का नशे के रूप में इस्तेमाल करते हुए देखा जा सकता है। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में ड्रग्स की खपत भले ही कम हो लेकिन अफीम, गांजा, भांग और शराब के उपयोग में यहां के युवा पीछे नहीं हैं। भोपाल के स्कूली छात्रों के बीच किये गए हालिया अध्ययन में पाया गया कि यहां 12 से 15 साल के 18% विद्यार्थी तम्बाकू या गुटखा का सेवन करते हैं। इनमे 80.7% किशोर एवं 19.3 % किशोरियां हैं। देश का भविष्य कहलाने वाले इन युवा विद्यार्थियों को अपनी कमज़ोरियों से बाहर आना होगा।

युवाओं के बीच बढ़ती निराशा और हताशा में उनके द्वारा उठाया गया आत्महत्या का कदम युवा देश के लिए दूसरी बड़ी कमज़ोरी है। मध्यप्रदेश स्टेट क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2015 में 178 छात्रों ने सिर्फ पढाई के दबाव में आत्महत्या की। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर घंटे कम से कम 15 लोगों ने आत्महत्या की है, जिनमे 41 % युवा थे जिनकी उम्र 14 से 30 के बीच थी। इनमे भी 6% छात्र थे जो पढ़ लिखकर कुछ बनने के सपने संजोये थे। युवाओं के आत्महत्या को लेकर पोद्दार इंस्टिट्यूट ऑफ़ एजुकेशन मुंबई द्वारा 14 से 24 साल के युवाओं पर किया गया अध्ययन भी चौंकाने वाला है। मुंबई ,बैंगलोर ,चेन्नई के 1,900 युवाओं पर किये गए इस अध्ययन में 65 % युवाओं ने परिवार, पढ़ाई और रोजगार के दबाव में बने क्षोभ और निराशा को युवाओं के बढ़ते आत्महत्या के लिए जिम्मेदार बताया है। देश में बढ़ते पारिवारिक और शैक्षणिक तनाव से जूझ रहे इन सभी युवाओं को क्षोभ और निराशा भरे वातावरण से बाहर लाने की चुनौती हमारे सामने है।

ऐसे में जरा याद करें कि अपने युवाकाल में महात्मा गांधी भी नशे के शिकार हुए थे और वकालत न कर पाने के कारण वे घोर निराशा से घिरे थे (जैसा कहा जाता है)। किन्तु इसके बावजूद उन्होंने अपनी कमज़ोरियों पर जीत हासिल करते हुए भारत को आज़ादी दिलाने के स्वप्न को साकार किया । यह उनका युवा संकल्प ही था जिसके बलबूते वे देश के लाखों युवाओं को एक कर सके। आज युवाओं का समय है इसलिए सोचना भी युवाओं को ही होगा, खुद के बदलाव के लिए यह संकल्प का अवसर है।

 

 

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