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इसी तरह जनसंख्या बढ़ी तो हम सबसे भूखे देश बन जाएंगे

शुभम कमल:

भारत लगभग 125 करोड़ (जनगणना,2011) की जनसंख्या के साथ कुल विश्व की आबादी का 17.5% के बराबर है,यह सम्पूर्ण विश्व में 134.1 करोड़(2010) की जनसंख्या वाले देश चीन के बाद मात्र दूसरा देश है। दूसरे शब्दों में भारत की जनसंख्या अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, पाकिस्तान,बांग्लादेश तथा जापान की कुल जनसंख्या के लगभग बराबर है, जिस पैमाने पर भारत की जनसख्या बढ़ रही है वह सहज रूप से चौंकाने वाला है। जहाँ सन 1941 में हमारे देश की कुल जनसंख्या लगभग 31.86 करोड़ थी,वही 2011 में यह बढ़कर 121 करोड़ हो गई।

[envoke_twitter_link]वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व के प्रत्येक 6 व्यक्ति में से 1 भारतीय है[/envoke_twitter_link],भारत के पास विश्व के 13.579 करोड़ वर्ग km सतही क्षेत्र का मामूली 2.4% भाग उपलब्ध है,जबकि यह विश्व की 17.5% चुनौतीपूर्ण जनसंख्या को सहयोग एवं पालन-पोषण प्रदान करता है,जहाँ चीन विगत कुछ वर्षों के दौरान अपनी जनसंख्या में निरंतर कम वृद्धि होने का प्रदर्शन कर रहा है,वहीं यह अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी पर सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन जाने के लिए सन 2030 तक भारत के चीन से आगे निकल जाने की पूरी सम्भावना है।

कारण-

परिणाम-

जनसंख्या वृद्धि का लोगों के जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है यही कारण है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कृषि एवं उद्योग के क्षेत्रों में हमारी अभूतपूर्व प्रगति के वाबजूद भी हमारी प्रति व्यक्ति आय प्रशंसनीय रूप से नहीं बढ़ सकी है। जनसंख्या वृद्धि ने भारत को किस प्रकार प्रभावित किया है ज़रा देखिए।

ऐसा अनुमान लगाया गया है कि लगभग 20 लाख लोग बेघर हैं, 9.70 करोड़ लोगों के पास सुरक्षित पेयजल की सुविधा नहीं है,27.20 करोड़ लोग निरक्षर हैं,पांच वर्ष से कम आयु वाले 43% बच्चे कुपोषित हैं,लगभग 1.6 करोड़ लोग बेरोजगार है,लगभग 1 करोड़ रोजाना भूखे सोते है(सभी स्रोत जनगणना 2011 से)

हमारे नगरों की विस्मित कर देने वाली भीड़-भाड़ ने परिवहन,बिजली तथा अन्य सेवावों को वस्त्तुत: ध्वस्त कर दिया है। यदि जनसंख्या में इसी तरह बढ़ोतरी जारी रही तो अब कुछ वर्षों के बाद हमारे पास बेरोज़गार,भूखे,निराश लोगों की एक फ़ौज खड़ी हो जाएगी जो देश की सामाजिक आर्थिक तथा राजनितिक प्रणालियों और संस्थाओं की जड़ों को हिला कर रख देगी। यहाँ तक की आज की 121 करोड़ की जनसंख्या में सबके लिए रोज़गार अथवा आवास,स्वास्थ्य के संबंध में सोचा जाना ही निरर्थक है,विशेष तौर पर जब प्रति वर्ष इसमें 2 करोड़ लोग और जुड़ जायेंगे और उन्हें भी समायोजित करना पड़ेगा।

शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों की अपेक्षा हमारे देश में स्कूल बहुत कम है जबकि सरकार सबसे ज़्यादा व्यय रक्षा क्षेत्र के बाद शिक्षा पर करती है और अधिक स्कूलों और शिक्षकों को बढ़ाए जाने पर सरकार को काफी व्यय करना पड सकता है जिससे अर्थव्यस्था पर चोट पहुंचेगी और इसी प्रकार जनसंख्या की अपेक्षा अस्पतालों की भरी कमी है।

इसके आलावा स्वास्थ्य पर किया जाने वाला खर्च देश की GDP का मात्र 1.2% है जो BRITAIN, AUS, BRAZIL जैसे देशों के 4% से ऊपर की तुलना में काफी कम है।

उपाय-

हमारी सरकार को ऐसी जनसंख्या नीति तैयार करने की आवश्यकता है जो न केवल व्यक्तियों की संख्या की अनियंत्रित वृधि पर अंकुश लगाये बल्कि जनसंख्या के अनियंत्रित आवागावन पर रोक लगाये। परिवार नियोजन को उस दलदल से बाहर निकालने की आवश्यकता है जिसमें यह फस चुका है इसके लिए कार्यक्रम को अन्दर से देखा जाना होगा तथा इसे स्वंय को अपने अधिकार के अंतर्गत विकास का एक निवेश मानना होगा,परिवार नियोजन को पुनः उसके पैरो पर खड़ा किये जाने के लिए उपायों को लागू करना होगा,ज़बरदस्ती से काम नहीं चलेगा,मात्र समझाने-बुझाने से ही सफलता अर्जित की जा सकती है,कानूनी उपाय सहायक हो सकते हैं किन्तु जिस बात की तात्कालिक आवश्यकता है वह है उत्तरदायित्वपूर्ण विकल्प उत्पन्न किये जाने में सामाजिक जागरूकता एवं सलिंप्तता।

 

 

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