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मनसे के मन से हो रही ‘राज’नीति के आगे ‘ऐ लोकतंत्र है मुश्किल’

अमोल रंजन:

देश के नाम पर देश की प्रक्रियाएं कितनी लोकतांत्रिक हो जाती है वो हमारी भारतमाता को भी नहीं पता चलता होगा। विगत शनिवार शाम को महाराष्ट्र नव निर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस और मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के निर्माता करण जौहर और मुकेश भट्ट के एक मीटिंग के बाद मीडिया को बताया गया की फिल्म ऐ दिल है मुश्किल अब बिना तोड़फाड़ और हिंसा के कम से कम मुंबई में आगामी शुक्रवार को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो जाएगी। आमतौर पर किसी फिल्म के रिलीज़ के पहले ऐसी मीटिंग नहीं होती पर यह देश की ‘सुरक्षा’ से संबंधित है तो ज़ाहिर सी बात है कि यह मीटिंग अत्यंत आवश्यक थी।

मीटिंग के बाद यह तय हुआ की फिल्म इंडस्ट्री अब के बाद कभी भी पाकिस्तान के कलाकारों के साथ काम नहीं करेगी, फिल्म के शुरू होने से पहले उरी और पठानकोट में मारे गए सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करेगी और उसके साथ आर्मी वेलफेयर फण्ड को 5 करोड़ की राशि भी देगी। हालांकि भारतीय सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि भारतीय सेना को ज़ोर ज़बरदस्ती से लिए गए पैसे नहीं चाहिए पर निर्माताओं ने इसको अभी तक स्वीकार नहीं किया है की उनके साथ किसी भी प्रकार की ज़ोर ज़बरदस्ती हुई है। ऐसा माना जाना चाहिए कि ये फैसला पूरी सहमति से लिया गया है। ऐसा अब यह भी मान लेना चाहिए कि अब कोई भी फिल्म सेंटर बोर्ड ऑफ़ फिल्म सर्टिफिकेशन, देश के गृहमंत्री, राज्य के मुख्यमंत्री की हरी झंडी और आश्वाशन के बाद भी रुक सकती है और देश की सुरक्षा का विषय सिर्फ सेना और सरकार तय नहीं करेगी बल्कि मनसे(महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) जैसी सुरक्षा चिंतित राजनितिक पार्टियां भी करा करेंगी।

हालांकि करण जौहर पहले ही कह चुके थे कि वो भविष्य में किसी पाकिस्तानी कलाकार के साथ काम नहीं करेंगे। अब बात भी सही है कि निर्माता की हैसियत से कौन ही अब पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम करना चाहेगा जब उसको इसके बदले आर्मी वेलफेयर फण्ड में 5 करोड़ जमा कराने पड़े। हालांकि देश के चार राज्यों ( महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा और कर्नाटक) के कुछ सिंगल स्क्रीन थिएटर के एक एसोसिएशन ने अभी तक ये नहीं कहा है की वो फिल्म ऐ दिल है मुश्किल रिलीज़ करेंगे। शायद उनके साथ राष्ट्र हित के खातिर किया गया समझौता इस बात पर निर्भर करेगा की फिल्म निर्माताओं को उनके कारण कितना नुक्सान सहना पड़ रहा है। वंहा कुछ भी हो, कम से कम यह तो तय हो गया है कि मुंबई में कौन सी फिल्म रिलीज़ होगी और रिलीज़ होगी तो किन शर्तों पर होगी उसका फैसला अब मनसे ही किया करेगा। उन्हें अब सेंसर बोर्ड चलाने का अधिकार दे दें तो प्रक्रिया में शायद ही कोई ज्यादा फर्क पड़ेगा।

इससे पहले भी मनसे द्वारा राष्ट्रहित में जारी किये गए फरमानों और प्रदर्शनों के कारण भारत और पकिस्तान के क्रिकेट मैच मुंबई में होने बंद हुए और आईपीएल में पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ियों को लेना बंद किया गया अब सुनने में आया है कि वो चाहते हैं कि यहां के व्यापारी पाकिस्तान के साथ अपना बिज़नेस भी बंद कर दें। कुछ भी कहिये इस देश के लोकतंत्र  की सराहना करनी चाहिए क्योंकि मनसे जैसे पार्टी जिसकी 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कुल 228 सीटों में केवल 1 सीट आई और मुंबई क्षेत्र में एक भी नहीं आई वो इस तरह के लोकतांत्रिक बदलावों को लाने में कितनी सफल हुई है। इससे अब यह भी साबित होता है कि सिर्फ वोट लाने से राजनीति तय नहीं होती है; भारत माता की जय बोलना उससे बड़ा लोकतांत्रिक गुण होता है।

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