दिल्ली जैसी सिटी में रहते हुए भी अगर कोई लड़की आपसे ये पूछे कि ‘रेप क्या होता है’ तो यकीन मानिये उसी वक़्त ज़मीन में धंस जाने का मन करता है।
निर्भया कांड के बाद (और पहले भी) जैसे हर दिन ही अख़बार और टीवी चैनल बलात्कार की घटनाओं से भरे रहते हैं। हम भी इन खबरों को मौसम के हाल-चाल की तरह सुनते हैं और भूल जाते हैं। दरअसल, भारत में बलात्कार को विरोध प्रदर्शनों के अलावा कभी गंभीरता से लिया ही नहीं गया। यह बात कहते हुए मैं कितने कष्ट में हूं इसका अंदाज़ा शायद आप पढ़ते हुए न लगा सकें लेकिन जरा सोचिए कि आपकी ही बेटी, बहन, पत्नी या दोस्त यदि इन हालातों से गुज़रे तब उन्हें क्या जवाब देंगे?
मैं जब अपने आस-पास रहने वाली बच्चियों और लड़कियों को कभी किसी ऐसे व्यक्ति के साथ देखती हूं जिसके साथ वह सहज नही दिखती हैं तो झट से वहां पहुँच कर या आवाज़ दे कर खुद को संतुष्ट करती हूं कि वहां सब ठीक है, वो लड़की सेफ है। मैं उस दिन को याद करती हूं जब मेरे अंकल की बेटी को गोद में बैठा कर एक अधेड़ आदमी ने उसे रुला दिया था।
ऐसे एक नहीं कई वाकये हैं जो मुझे अक्सर झकझोर कर रख देते हैं। सात साल की जुड़वा बहनें गली में एक खड़े एक आदमी को देख कर घर भाग आती हैं, क्यों? इसका कारण उन बच्चियों की माँ ने आज तक जानने की कोशिश नहीं की। गलती उनकी भी नहीं है। जिस तरह से हम लड़कियों की परवरिश होती है, वहां हर बात एक उम्र के बाद बताई जाती है। यहां तक कि जिस दिन लड़की को पीरियड होते हैं उसी दिन उसे पता चलता है कि यह होता ही है लेकिन क्यों होता है, यह शायद उसे सहेलियों से या किताबों से पता चलता है।
मुझे याद है उस दिन उसने टीवी पर ही 3 साल की बच्ची के साथ रेप होने की खबर सुनी और उस वहशियत को सुन रोने लगी। उसे यह समझ आया कि वो बच्ची छोटी थी और वो मर चुकी थी लेकिन यह समझ नहीं आया कि उसके साथ असल में ऐसा क्या हुआ जो वो मर गयी।
उस पूरे दिन वो इस सवाल को मन में लिए उदास रही और शाम को जब मुझसे उसने यह पूछा तो मैं धक से रह गयी। सोचिए, वो लड़की जिसके लिए लड़का देखा जा रहा है उसे यह तक नहीं पता कि रेप क्या होता है! मैं उसके सवाल से डर गयी। इसलिए नहीं कि मुझे जवाब देने में संकोच था बल्कि इसलिए कि मैं उसकी जैसी कई लड़कियों के बारे में सोच गयी थी। उसे समझाने में मुझे कई दिन लगे क्योंकि बात यहां सिर्फ रेप की नहीं थी, रेप से पहले और बाद में आये कई और सवालों की भी थी। उसे तो समझा दिया लेकिन अब मैं उन बाकी लड़कियों के बारे में सोचती हूं जो उसी के जैसी हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स ने हाल ही में लेट्स टॉक अबाउट रेप को लेकर जो सीरिज़ शुरू की है उसे सराहना चाहिये। ऐसे वक़्त में जब लड़कियां कहीं भी, किसी के साथ भी सुरक्षित नहीं हैं वहां इस तरह की पहल का होना महत्वपूर्ण है। हालांकि यहां कुछ चर्चित चेहरे ही हैं जो अपने बच्चों को खुले खत के द्वारा रेप/बलात्कार और महिलाओं के प्रति सम्मान, सुरक्षा और मदद के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं लेकिन यह शुरुआत यहां से लेकर हर घर तक पहुंच पाए तभी यह सीरीज़ रंग लाएगी।
मुझे उस समाज से कुछ नही कहना जो बलात्कार के बाद लड़कियों/महिलाओं को अपमानित करता है और मजबूर करता है कि वह जीना छोड़ दें लेकिन मुझे इस समाज में रहने वाली उन करोड़ों माओं से यह कहना है कि जो आपने सहा, देखा, सुना, महसूस किया क्या वही अनुभव आप अपनी बेटियों को देना चाहेंगी? सरकार सेक्स एजुकेशन कोर्स में नही दे सकती पर आप तो इसे अपनी पाठशाला में शामिल कर सकती हैं! शुरुआत करिए, क्योंकि यही समय आपकी बेटियों के लिए सबसे सही है।
लेट्स टॉक अबाउट रेप…