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हवाई उड़ान पर सब्सिडी और राष्ट्रभक्ति की राजनीति

मुकेश त्यागी:

जिस देश में लगभग 80% जनसँख्या 2500 रुपये प्रति व्यक्ति महीना से कम पर गुज़ारा करती हो, सरकार उनके लिए न्यूनतम मज़दूरी की रोज़गार योजना, स्कूली शिक्षा या प्राथमिक चिकित्सा के इंतज़ाम पर खर्च को ‘बेकार’ बताती हो, बहुमत आबादी कुपोषण, एनीमिया, जिस्म-दिमाग की कुंद बढ़वार का शिकार हो और हुकूमत खाद्य सब्सिडी को पैसा बरबादी कहती हो, महिला-बाल कल्याण पर नाममात्र बजट में भी कटौती करने में जुटी हो, रेल किरायों में यात्रियों को सब्सिडी का रोना-पीटना मचाती हो, अगर वही शासक तंजीम 2500 रुपये में एक घंटे की हवाई यात्रा कराने के लिए सब्सिडी की योजना लेकर आये तो इसको सिर्फ कुशासन पर व्यंग्य कर मत टालिए, बल्कि और थोड़ा गहराई से समझिये।

अधिकांश मेहनतकश जनता पर लूट का शिकंजा कस पूंजीपति वर्ग के मुनाफों की हिफाज़त करने वाली हुकूमत अपने लिए एक वर्गीय सामाजिक आधार बनाये बगैर नहीं चल सकती। यह कदम उसी परियोजना का हिस्सा है और यह बड़ा साफ है कि इस सबसिडी का फायदा ठीक उसी तबके – सरमायेदार का दुमछल्ला मध्य वर्ग – को ही मिलने वाला है, जो पहले से विकास/अच्छे दिन के नाम पर और अब ‘राष्ट्रवाद’ की चीख-पुकार से अपनी अंधभक्ति में ‘अ’भक्त लोगों को पाकिस्तान भेजने से शुरू होकर मार-पीट से होते हुए अब हत्या-बलात्कार आदि हर जुल्म की हिमायत में लामबंद हो रहा है और जिस पर सच्चाई-तथ्यों, तर्कों का मुश्किल से ही कोई असर होता है क्योंकि यह आत्मकेंद्रित तबका इस में अपना फायदा देख पा रहा है और अपने वर्गहित की हिफाज़त में फासीवादी ताकतों के पीछे एकजुट हो रहा है।

इसका मुकाबला-प्रतिरोध अगर करना है तो ठीक उस तबके के बीच जाकर काम करना होगा जो वर्तमान व्यवस्था का शिकार है, वही अपने वर्गहित की बात को समझेगा, प्रतिरोध करेगा, अगर उसके – शहरी/ग्रामीण मजदूर, गरीब किसान, निम्न मध्य वर्ग – बीच जाकर उसे सचेत-संगठित किया जाये तो। जो भी फासीवादी राजनीति का विरोध करने की बात करते हैं उन्हें इन तबकों में, उनकी बस्तियों में जाने का जरुरी वक्त निकालना ही होगा।

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