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सर्जिकल स्ट्राईक पर बात और पाकिस्तान को गाली देना आज-कल ट्रेंड में है

भास्कर झा:

“शट अप अरनब” और माइक फ़ेंक कर चली गयी थी वह। देश के सबसे बड़े इंडियन टेलीविज़न ड्रामा में एक मोड़ आया और उसके संचालक ने गुस्से में फुसफुसाते हुए इतना ही कहा, “दिस इज़ व्हाट बॉलीवुड डज़ टू यू।” एक ऐसा समय जब वाकई सब कुछ “सर्जिकल स्ट्राइक” के बाद बदल सा गया था और “अच्छा समय” सामने दिखाई देने लगा था, तभी कहीं से यशवंत को भी माइक मिल गया और हिंदी फिल्म जगत के नटसम्राट ने एक दम से सब कुछ तय सा कर दिया। उनकी आवाज़ में अलग सा तेज था जो शायद अरनब की आवाज़ में किसी आवरण की तरह लगता है और कहीं ना कहीं एक ‘अथॉरिटी’ का भी आभास कराता है।

मैं देखता हूँ कि (और यह मैं नहीं बोल रहा हूँ, यह एक आवाम है जो शायद सोचती है) कैसे अचानक हमारा ड्रामा शिफ्ट हो रहा है। कैसे अचानक से ‘व्हाट्सऐप पर’ मोदी बनाम परवेज़ हो रहा है, कैसे ‘सर्जिकल-स्ट्राइक’ वर्ड ऑफ़ फैशन हो रहा है। कैसे लोगों की गर्मी में उबाल आ रहा है और कैसे लोग अचानक से ‘उरी’ और कश्मीर के मसले पर संवेदनशील हो रहे हैं, वाह! क्या ये वही उबाल है जो बस किसी भी पल एक निश्चित परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा है?

उबाल जो अब किसी मोदी, परवेज़ या हाफ़िज़ सईद सरीखे लोगों के बयानों का इंतज़ार नहीं कर रहा है। ये उबाल अब बस फटना चाहता है और चाहता है कि उसकी गूँज सीरिया तक जाए और फिर कभी उस उबाल को ‘केस स्टडी’ के रूप में बराक ओबामा अपने किसी स्पीच में इस्तेमाल करें और मैं (अब भी मैं नहीं आवाम) सोचता हूँ कि इंसान बने रहने में भलाई है या उबाल को उबाले रखने में भलाई है या फेसबुक पर यह लिख दूँ कि कृष्णा सेड, “कर्म करते जाओ, फल की इच्छा न करो।”

मैं देखता हूँ कि अचानक एक आदमी एक झंडे को पोतने की लगातार कोशिश कर रहा है और उसके पास अलग-अलग रंग के ब्रश हैं लेकिन हर ब्रश एक ही रंग फ़ेक रहा है और धीरे–धीरे अब वह रंग बहुत गाढ़ा होता जा रहा है। वह चमचमाता हुआ लाल रंग तीनो रंगों (झंडे के कई रंग हो सकते हैं) से आगे निकल जाता है और वह आदमी थककर झंडे को एक किले पर टांग देता है। एक किला जिसका गुंबद टूटा हुआ है और उसके बगल में एक टूटा हुआ लाउडस्पीकर अल्लाह-अल्लाह बोल रहा है। एक दूसरा आदमी इसलिए भी परेशान है कि वह लाउडस्पीकर की दिशा बदलना चाहता है और चाहता है उस फटे हुए लाउडस्पीकर से अल्लाह-अल्लाह सिर्फ़ एक निश्चित लाइन तक जाए। वह उसकी रेंज को कम करने की कोशिश करता है और अचानक कोई बयान या फतवा रुख को बदला देता है।

देश अब देखता है कि उसके पास फैक्ट्स हैं, अरनब है, एम.एन.एस. है और उसके पास क्या हैं हाँ? (अमित जी के हएं सा हाँ) वह एक टुट-पुन्जिये से चैनल में एक बयान देता है यहाँ पूरा देश हर वक्त बयान देता है। डिबेट के नाम पर यहाँ हर कोई आज स्टेटमेंट देने की औकाद रखता है पर दुःख की बात यह है कि जवाब भी और यहाँ तक की रिएक्शन भी और उबाल भी ‘कंट्रोल्ड’ सा लगता है। यानी किसी ख़ास मुहीम से कंट्रोल्ड… हम जानते हैं… हमारा स्टेक कुछ ख़ास नहीं है सिवाय वोट देने के पर क्या वाकई हम वोट दे रहे हैं? या फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सअप्प ज्ञान को ही सर्वोपरी मान रहे हैं…

ओह! मैं भावुक क्यों हो रहा हूँ.. मैं भी उस उबाल का ही हिस्सा हूँ पर क्या करूं मैं रंगों के आवरण में भावुक हो जाता हूँ और हर दिन एक चींटी को मार बैठता हूँ। क्योंकि मेरा उबाल कोई रास्ता नहीं ढून्ढ पा रहा है। मैं चाय की दुकान पर (खान टी कार्नर पर) फ़वाद खान के नाम के साथ माँ के आगे लगने वाली संज्ञाएं जोड़ कर उस धारा में बहकर अचानक ‘पेट्रियोटिक’ फील करने लगता हूँ। मैं अक्सर ‘आर्ट्स फॉर आर्ट सेक’ के लेक्चर को याद करने लगता हूँ।

मुझे सपने में कोई गधा आदमी जिसका मुंह साफ़ नहीं दिखता जीने के सही मायने बता देता है। मुझे यह समझा देता है कि मैं देशभक्त तो हूँ पर मेरी देशभक्ति में कोई फवाद खान सेंध लगा सकता है, क्योंकि वह मेरे देश में रहकर रियेक्ट नहीं कर रहा है। तभी एक दोस्त कहता है, ” यार! इण्डिया में टैलेंट की कमी है क्या, जो बाहर से मंगाना पड़ता है?” अगर यही बात है तो रोटी, कपड़ा और मकान से जुड़ी सारी बुनियादी चीज़ें हमारे देश में मिलती हैं, फिर भी हम निर्यात तो करते हैं जी!! किसी ने फिर टोका, “तुम जज़्बात को हल्के में ले रहे हो…” तब तक खान अंकल की चाय उबल चुकी थी।

खान अंकल कहाँ समझ पाते हैं फकर का मतलब वह भी चाय के उबाल के साथ इतना कह देते हैं, “बस बना रहे हैं, कोई स्ट्राइक नहीं हुई।” मैं बहस करने लगता हूँ क्योंकि मेरे मामा का लड़का भीतर घुसकर वापिस आ गया था और वहां के उग्रवादियों को मारकर हमको फेसबुक लाइव पर दिखाया भी था और तब खान अंकल इतना ही कहते हैं, “भाई चाय कैसी लगी यह बताओ… यह चाय वहां नहीं मिलेगी… पाकिस्तान में रह क्या गया है… जब से भुट्टो मरी है सब चेहरे बेमानी लगते हैं।” मेरा दोस्त तभी बेनज़ीर को याद करने लगता है और तभी नवाज़ की बेटी का बयान और उसकी तस्वीर अचानक व्हाट्सअप्प पर वायरल होनी लगती है। उबाल कम होता है और दिशा बदल लेता है और फिर उँगलियों के खेल में देशभक्ति हिचकोले खाने लगती है।

समय बदल रहा है, परिवेश भी बदल रहा, इंसान को भी बदलना चाहिए। इंतज़ार रहेगा, उबाल की अगली करवट का। हाँ समय बलवान होता है और बदल भी रहा है, एक गाना याद आ गया कुछ पंक्तियाँ साझा कर रहा हूँ। बॉब डिलन का गाना है, शायद अच्छा लग जाये।

Come senators, congressmen
Please heed the call
Don’t stand in the doorway
Don’t block up the hall
For he that gets hurt
Will be he who has stalled
There’s a battle outside
And it is ragin’
It’ll soon shake your windows
And rattle your walls
For the times they are a-changin’.

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