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स्वाति सिंह यूपी में भाजपा की गले की फांस न बन जाए

केपी सिंह:

‘बेटियों के सम्मान में भाजपा मैदान में’ नारे को पहले भाजपाइयों ने दयाशंकर सिंह मामले में बसपा के आक्रमण से बचाव की ओट के रूप में अपनाया फिर यह नारा उसके लिए बसपा पर जवाबी हमले का हथियार बन गया। यह नारा दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह के निजी बचाव के पैंतरे के कारण राजनीतिक ज़मीन पर आसमानी नेमत की तरह उतरा इसलिए यह अनजान चेहरा रातो रात भाजपा के लिए किसी फरिश्ते के चेहरे जैसा बन गया। और इसी  के बदौलत स्वाति सिंह को राजनीति में अपरिचित और अनुभवहीन होते हुए भी भाजपा ने पार्टी के महिला मोर्चे की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नवाज़ डाला। लेकिन स्वाति सिंह महिलाओं को तो संवेदित नहीं कर पा रहीं अलबत्ता वो भाजपा का मज़बूत क्षत्रिय कार्ड ज़रूर साबित हो रही हैं। यह बात दूसरी है कि उनकी उपस्थिति क्षत्रिय समाज को जितना झकझोर और ललकार देती है उतना ही जोखिम दलितों के बीच पैठ बढ़ाने के लिए पार्टी द्वारा की गई मशक्कत के लिए भी पैदा कर रही है।

भाजपा एक संस्कृतिवादी और सनातनवादी पार्टी है लेकिन वक्त की डिमांड है कि बौद्धिक और सामाजिक जड़ता का कारण बन चुके संस्कारों से उबर कर अपने को अपडेट किया जाए। भाजपा भी अपने सांस्कृतिक विलाप के बावजूद अस्तिवबोध के प्रति उतनी ही सचेत है जितनी दूसरी पार्टियां और लोग। इसलिए वह बदलते समय के अनुरूप सर्वाइबल के लिए अपने को फिटेस्ट बनाने का मौका भी नहीं छोड़ना चाहती। इससे जनित [envoke_twitter_link]विरोधाभास और दुविधा भाजपा के लिए कई बार विचित्र स्थिति पैदा करने का कारण बन जाता है।[/envoke_twitter_link]

महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद स्वाति सिंह इस संगठन के लिए तो अभी बहुत कुछ नहीं कर पाई हैं, लेकिन विभिन्न स्थानों पर आयोजित दशहरा मिलन समारोहों में उन्होंने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेकर अपनी सक्रियता का प्रमाण ज़रूर दिया है। इन आयोजनों में यह ज़ाहिर हो गया है कि उन्हें बड़ी पार्टी की महिला विंग के अध्यक्ष के बतौर सलाहियत अपने में पैदा करने के लिए अभी बहुत कुछ जानने और सीखने की जरूरत है। उन्होंने शायद महिलाओं के समग्र मुद्दों का शायद ककहरा तक नहीं पढ़ा है इसलिए इस दिशा में वे अपनी भूमिका के साथ न्याय करने में सफल नहीं हो पा रहीं।

वे मुख्य रूप से क्षत्रिय समाज भर को संबोधित करने पर केंद्रित हो गई हैं। अपने अभी तक के आयोजनों में उन्होंने सिर्फ क्षत्रिय समाज से कहा है कि वह बसपा को किसी भी कीमत पर मत और समर्थन न दे। उन्होंने बसपा के विरोध को क्षत्रिय समाज की प्रतिष्ठा से जोड़ने का प्रभावी प्रयास किया है लेकिन उनके इस उपक्रम ने उनसे जुड़े पूरे घटनाक्रम को जाने-अनजाने में दलित बनाम क्षत्रिय के शक्ति परीक्षण की शक्ल दे डाली है। एक ओर वह भाजपा के पक्ष में क्षत्रिय ध्रुवीकरण का केंद्र बन गई हैं तो दूसरी ओर न केवल चर्मकार समाज बल्कि इसकी प्रतिक्रिया में दलित समाज की हर जाति उतनी ही प्रखरता से भाजपा के खिलाफ लामबंद होने के लिए तत्पर होने लगी है।

[envoke_twitter_link]भाजपा ने हाल के महीनों में दलितों का दिल जीतने की मेहनत बड़े पैमाने पर की है।[/envoke_twitter_link] बाबा साहब अम्बेडकर को इस क्रम में उसने अपनी आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बनाने का आडम्बर भी जमकर रचाया है। लेकिन खांटी भाजपाइयों के संस्कार कूटनीतिक तकाजे की खातिर भी दलितों के दिमाग को बढ़ाना गंवारा नहीं कर पा रहे। गुजरात व अन्य राज्यों में गौ भक्ति की आड़ में इसी प्रवृत्ति के चलते भाजपा समर्थकों द्वारा दलितों को उनके जामे में लाने का जो पराक्रम दिखाया गया उससे पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अभी तक बहुत परेशान है। शीर्ष नेतृत्व ने डैमेज कंट्रोल के बहुत प्रयास किए हैं लेकिन मानसिकता न बदल पाने की वजह से भाजपा के समर्थक वही सब कुछ करने को मजबूर हैं जिससे बात बिगड़ जाए।

स्वाति सिंह को उत्तर प्रदेश में भाजपा द्वारा स्टार प्रचारक के रूप में अपनाने की चेष्टा ने भी इस समस्या को बढ़ाने का कार्य किया है। स्वाति सिंह के भाषण बसपा को बलात्कारियों की पार्टी साबित करने पर तुले हुए हैं लेकिन बसपा का रिकार्ड उनके आरोपों की विश्वसनीयता के लिए मजबूत प्रतिवाद के रूप में सामने आ रहा है। उस पार्टी को आम महिलाएं कैसे बलात्कार को प्रोत्साहन देने वाली पार्टी मान सकती हैं जिसमें शीलू दुष्कर्म कांड की वजह से अपनी ही पार्टी के विधायक को जेल भिजवाया गया हो। बसपा की सत्ता में दोबारा वापसी न हो पाने के पीछे यह कार्रवाई भी एक बड़ा कारक साबित हुई। हालांकि इसका अंदेशा पहले से ही था। मायावती को तत्कालीन विधायक पुरुषोत्तम नारायण द्विवेदी को जेल में रखने पर चुनाव में भारी घाटे के अंदेशे के प्रति चेताया गया था लेकिन मायावती ने इसके बावजूद कोई समझौता नहीं किया। महिलाओं की इज्जत-आबरू से खिलवाड़ के मामले में बसपा के कठोर रुख पर स्वाति सिंह के भाषणों की वजह से कोई प्रश्नचिन्ह लग पाना आसान नहीं है। हालांकि स्वाति सिंह के प्रति बसपा नेताओं ने सार्वजनिक रूप से अपनी सभा में जो उद्गार व्यक्त किए थे वे निंदनीय हैं लेकिन यह समझना होगा कि उनके अनुचित उद्गार आवेशपूर्ण प्रतिक्रिया का परिणाम थे। दयाशंकर सिंह ने मायावती के लिए जो कहा था उससे बसपा समर्थकों का बुरी तरह भड़क जाना स्वाभाविक था।

[envoke_twitter_link]दलितों के लिए मायावती केवल राजनीतिक व्यक्तित्व नहीं बल्कि इससे ज़्यादा पूजनीय हैं।[/envoke_twitter_link] दयाशंकर सिंह को यह तो समझना चाहिए था कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी नेता की उनके सामने हिमालयी हैसियत है और वे उन पर आरोप लगाते समय कौन सी उपमा इस्तेमाल करें इसमें पर्याप्त सावधानी बरतते। इसलिए उन्होंने जो अक्षम्य ओछापन किया उससे भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी कठघरे में खड़ा नज़र आया। आखिर भाजपा जैसी बड़ी पार्टी में किसी को प्रदेश स्तरीय अहम पद देने के पहले उनकी योग्यता और समझ की पर्याप्त परख का कोई तरीका तो होना चाहिए। दयाशंकर सिंह ने जो चूक की उसके पीछे उनका वही संस्कारी माइंडसेट रहा है जिसके कारण समाज के दबे-कुचले वर्ग के प्रति घृणापूर्ण उद्गार सहज ही जुबान पर आ जाते हैं। इस मनोवृत्ति का प्रभाव स्वाति सिंह पर भी है इसलिए वे महिला मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष पद का सार्थक उपयोग कर पाने की बजाय उसी दिशा में अपने कदम बढ़ा रही हैं जिसमें सुधार के लिए उन्हें अपने पति दयाशंकर सिंह आये संकट के बाद सोचने की जरूरत थी।

दयाशंकर सिंह को भाजपा ने उनके बयान के तत्काल बाद हड़बड़ाहट में पार्टी से छह वर्ष के लिए निष्कासित किया था लेकिन लगता है कि इसके बाद पार्टी का नेतृत्व अपने किए पर पछतावे पर आ गया इसलिए स्वाति सिंह को महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्षी की आड़ में उसने दयाशंकर सिंह के लिए पुनर्वासन प्लान लागू कर डाला है। स्वाति सिंह के साथ दयाशंकर सिंह इसी कारण भाजपा समर्थकों के बीच मंच सुशोभित करने का अवसर पा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा के नये चुनाव के पहले सत्ता का आम खुद ही टूटकर अपनी झोली में गिरने जैसे आभास की वजह से भाजपा अपनी रणनीति के झोल नहीं देख पा रही है। स्वाति सिंह के मामले में यह बहुत स्पष्ट है। अगर स्वाति सिंह क्षत्रिय समाज में भाजपा के लिए अतिरिक्त जोश भरने का काम कर रही हैं तो इससे भाजपा को प्लस क्या होगा। क्षत्रिय समाज का तो स्वाभाविक रुझान अपने आप भाजपा के प्रति है लेकिन स्वाति सिंह भाजपा की सम्भावनाओं में साइड इफेक्ट के कारण दलितों को बिदकाने की वजह बनकर कर रही हैं। जिसका संज्ञान भाजपा नेतृत्व को देर-सबेर जरूर ही लेना पड़ेगा।

(फोटो आभार- स्वाति सिंह फेसबुक प्रोफाइल)

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