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सुभाष चंद्र बोस ने क्यों छोड़ा भारत- पढ़िए उनका सिंगापुर वाला भाषण

पूरे स्वतंत्रता संग्राम में अगर सबसे अलग और खतरों से भरी भागीदारी की बात करें तो शायद सुभाष चंद्र बोस अव्वल नज़र आते हैं। 1941 में भारत छोड़ना हो, 9 महीने बाद अप्रत्याशित तौर पर जर्मनी में सार्वजनिक होना हो, दुश्मन के पानी से होते हुए 90 दिन की समुद्री यात्रा हो, इंडियन नेशनल आर्मी का गठन हो, सुप्रीम कंमाडर का यूनिफॉर्म पहनकर ब्रिटिश आर्मी से लड़ना हो, ऐसी ना जाने कितनी कहानियां/तथ्य सुभाष चंद्र बोस की बहादुरी और उनके जीवन पर लिखी और सुनाई जाती हैं।

हालांकि ये आज भी एक बहुत बड़ा राज़ बना हुआ है कि अचानक ऐसी कौन सी नौबत आ गई कि सुभाष चंद्र बोस को अचानक विवादित समुद्र के रास्ते से भारत छोड़कर जाना पड़ा।

एक थ्योरी के हिसाब से सुभाष चंद्र बोस की भारत छोड़ने की एक बड़ी वजह 1939 में गांधी से उनकी अनबन और कॉंग्रेस पार्टी से निकाला जाना भी था।

सिंगापुर में दिए गए अपने इस भाषण में सुभाष चंद्र बोस ने अपने भारत छोड़ने के कारणों को स्पष्ट किया है। ये भाषण बोस ने इंडियन नेशनल आर्मी और इंडिया इंडिपेंडेंस लीग का कार्यभार संभालने के एक हफ्ते बाद दिया था।
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सिंगापुर, 9 जुलाई, 1943

भाईयों और बहनों मैं आज आप सबको मेरी अपनी मातृभूमी छोड़ने की वजह बेझिझक और बड़े साफ तौर पर बताना चाहता हूं। आप सभी जानते हैं कि 1921 में यूनिवर्सिटी छोड़ने के बाद मैंने लगातार स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। मैं पिछले दो दशकों में सभी सविनय अवज्ञा आंदोलनों (civil disobedience campaigns) का हिस्सा रहा हूं। साथ ही मुझे किसी खुफिया क्रांतिकारी संगठन से जुड़े होने के शक में कई बार बिना ट्रायल के जेल भी जाना पड़ा।

मैं बिना किसी झिझक या अतिश्योक्ति के साथ कह सकता हूं कि भारत में ऐसा कोई राष्ट्रीय नेता नहीं है जिसे मुझ जितना अनुभव मिला हो। इन तमाम अनुभवों के आधार पर मैं जिस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं वो ये है कि भारत में रहकर हम जितनी भी कोशिशें कर लें उनसे अंग्रेज़ी हूकूमत को भगाने में कामयाब नहीं होंगे। अगर भारत में रहकर ही आज़ादी पाई जा सकती तो मैं इतना मूर्ख नहीं कि इतनी परेशानी और इतने खतरे मोल लेता।

बहुत सीधे तरीके से कहूं तो भारत छोड़ने का मेरा मकसद वहां आज़ादी के लिए चल रही लड़ाई को बाहर से भी मज़बूत करने का था। बिना बाहरी मदद के किसी के लिए भी भारत को आज़ाद करवाना नामुमकिन है। हालांकि अभी ये बाहरी मदद बहुत ही छोटे स्तर पर है। इसकी एक वजह ये है कि शायद ऐक्सिस पावर्स ने जिस तरह अंग्रेजों को हराया उससे हमारे काम को बहुत आसान समझा जाने लगा है।

हमारे देशवासियों को दोहरी मदद की ज़रूरत है, पहला मॉरल और दूसरा मैटिरियल। पहले वैचारिक स्तर पर उन्हें ये विश्वास दिलाना होगा कि आज़ादी मिलकर रहेगी और फिर उन्हें बाहर से सैन्य मदद भी भेजनी होगी। पहले काम के लिए अंतरराष्ट्रीय युद्द परिस्थितियों को बेहतर ढंग से समझना होगा और ये अंदाज़ा लगाना होगा कि युद्ध का नतीजा क्या हो सकता है। और दूसरे मदद के लिए ये तय करना होगा कि भारत से बाहर रह रहे भारतीय अपने देश के लिए क्या मदद कर सकते हैं और अगर ज़रूरत हुई तो क्या अंग्रेजी साम्राज्य के दूसरे दुश्मनों से भी कोई मदद मिल सकती है?

मैं आज इस स्थिति में हूं कि आपलोगों से यह कह सकूं कि ये दोनों लक्ष्य हासिल कर लिए गए हैं। विदेश जाकर मैंने खुद युद्धरत शक्तियों की परिस्थिती देखी और तभी मैंने ये अंदाज़ा लगा लिया कि एंग्लो अमेरिकन साम्राज्यवाद की हार निश्चित है और यही संदेश मैंने देशवासियों को भी दिया। इसके बाद मुझे ये देखकर बहुत खुशी हुई कि पूरे विश्व में फैले मेरे देशवासी स्वतंत्रता संग्राम में हर संभव मदद करने को तैयार हैं। मैं ये देखकर भी काफी उत्साहित हुआ कि ऐक्सिस पावर और जापान भारत को आज़ाद देखना चाहते हैं और अपनी ओर से हर मुमकिन मदद करने के लिए तैयार थे।

इन सब बातों से ज़्यादा मैं आपसे आपका विश्वास मांगना चाहता हूं। मेरे दुश्मन भी ये कहने कि हिम्मत नहीं कर सकते कि मैं अपने देश के खिलाफ कुछ कर सकता हूं। और अगर अंग्रेज़ी हुकूमत मेरी हिम्मत नहीं तोड़ पाई, मुझे ललचा नहीं पाई तो दुनिया की कोई भी ताकत ऐसा नहीं कर सकती है। इसलिए मेरा भरोसा करिए कि अगर ज़रूरत हुई तो ऐक्सिस पावर आज़ादी की लड़ाई में हमारी मदद ज़रूर करेगा। लेकिन आपको मदद चाहिए या नहीं ये आप तय करिए और ये बात तय है कि अगर बिना किसी की मदद से भारत को आज़ादी मिलती है तो इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता।

मैं आपको ये भी कहना चाहता हूं कि इतनी शक्तिशाली होने के बाद अगर ब्रिटिश हुकूमत पूरी दुनिया से मदद मांग सकती है तो हमारा मदद लेना भी जायज़ है।

वक्त आ गया है कि मैं खुलकर अपने दुश्मनों को भी बता दूं कि भारत को आज़ाद करवाना हमने कैसे तय किया है। हिंदुस्तान के बाहर रहने वाले हिंदुस्तानी खासकर इस्ट एशिया में रहने वाले हिंदुस्तानी अंग्रेज़ी ताकत से लड़ने के लिए एक फोर्स तैयार करने वाले हैं जो अंग्रेज़ो पर हमला कर उसे हराएगी। जब हम ऐसा करेंगे तो एक क्रांति का जन्म होगा ना सिर्फ भारत के लोगों में बल्कि भारतीय सेना में भी जो इस वक्त विदेशी झंडे को सलाम करती है। और इस तरह जब ब्रिटिश सरकार पर घर के बाहर और अंदर दोनो तरफ से हमला होगा तो वो टूट जाएगी और भारत को खोयी हुई आज़ादी दुबारा मिल जाएगी।

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