Site icon Youth Ki Awaaz

महिला को इंसान समझिये, महिला हिंसा खुदबखुद रुक जाएगी

Representational image.

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता” महिला मुद्दों पर जितने सेमिनारों का हिस्सा रहा हूं, अधिकांश सेमिनारों में यह लाइन ज़रूर कही जाती है। शुरुआत मैं भी इसी से कर रहा हूं, हां आगे इस लाइन के साथ क्या होगा इस की ज़िम्मेदारी मेरी नहीं है। भारत का संविधान किसी भी भारतीय बच्चे के जन्म के समय से ही उसे 7 मौलिक अधिकार देता है उनमें से एक है, ‘समानता का अधिकार’ और यही वह पहला अधिकार है जिसका लिंग के आधार पर सब से पहले हनन होता है और यही महिला हिंसा की पहली कड़ी है।

2010 में देहरादून की शांत वादियों में एक घटना घटी जिससे अचानक देहरादून सुर्ख़ियों में आ गया। एक इंजीनियर ने अपनी पत्नी को 72 टुकड़ों में काट दिया और यह नृशंश हत्याकांड उस साल का सबसे निर्दयता से किया हुआ हत्याकांड था। लड़का दिल्ली विश्वविध्यालय का प्रखर छात्र था और लड़की भी विदेश के किसी विश्वविद्यालय से पढ़ी हुई थी। दोनों के बड़े-बड़े सपने आसमान छूने के, इन्हीं सपनों के साथ दोनों ने शादी की और शादी के कुछ वक़्त बाद ही लड़के ने लड़की पर नौकरी छोड़ने का दबाव बनाना शुरू किया। घर-परिवार को अपनी पहली ज़िम्मेदारी मानकर लड़की ने भी नौकरी छोड़ दी।

पर बात यहां पर ख़त्म नहीं हुई, लड़के की नौकरी और निजी ज़िन्दगी की परेशानियां कुंठा में बदलने लगी और वह अपनी पत्नी संग मारपीट करने लगा। कभी-कभी की मारपीट अब लड़की की रोज़ाना की ज़िन्दगी का हिस्सा हो गयी। इसी बीच दोनों के दो बच्चे भी हुए पर मारपीट का सिलसिला नहीं रुका। जब पानी सर के ऊपर हो गया तो महिला ने एक छुप कर महिला संरक्षण अधिकारी के सामने अपनी आपबीती कही और इस पर अधिकारी ने तुरंत कार्यवाही करते हुए उसके पति को बुलाया और सख्त हिदायतें दी।

इसी दौरान हुई काउंसिलिंग में महिला अधिकारी ने पाया कि, वह पुरुष मानसिक रूप से ठीक नहीं है। उन्होंने उस महिला को उसके पति के साथ न रहने को कहा। पर लोकलाज के डर से वह महिला दोबारा उसी के साथ रहने लगी। इसके कुछ दिनों बाद उस आदमी ने घर में मारपीट के बाद 72 टुकड़ों में अपनी पत्नी को काट दिया।

जब इस हत्याकांड के बाद उस पुरुष की जेल में काउंसिलिंग हुई तो उसने कहा कि उसके पिता उसकी माँ को बचपन में उसी के सामने बहुत मारते थे। यह केस “अनुपमा गुलाटी हत्याकांड” नाम से प्रसिद्द हुआ था और इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी राजेश गुलाटी आज भी देहरादून की जेल में बंद है और अपनी सज़ा काट रहा है। इस केस ने लोगों की उस धारणा को कठघरे में खड़ा कर दिया जिस के हिसाब से ‘महिला हिंसा’ केवल अशिक्षित लोगों में होती है।

अब सवाल यह है कि महिला हिंसा की शुरुआत कैसे होती है? इसका जवाब यह है, ‘महिला हिंसा’ आखिरी उत्पाद है और इसके उत्पादन की शुरुआत हमारे पैदा होने से ही हो जाती है। एक बच्चे के पैदा होते ही समाज उसे लड़का या लड़की में बाँट देता है। कुछ नियम लड़कों के लिए बना दिए और लड़कियों के लिए बंदिशों की एक पोथी लिख दी जाती है। मार-पीट और गाली-गलौच करना जैसी घटनाएं समाज की एक आम घटना है जिसमें याद रखने लायक कुछ भी नहीं है। इन्हीं सब के बीच पले-बढे बच्चे को कभी यह पता ही नहीं चल पाता यह सब गलत है। पितृसत्ता की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि इसका फल “महिला हिंसा” के रूप में सामने आता रहता है। कुछ आंकड़े हैं जो हमें आईना दिखाने के लिए काफी है,

1- 2103 के ग्लोबल रिव्यू डाटा के हिसाब से दुनिया भर में 35% महिलाएं अलग-अलग तरह से महिला हिंसा का शिकार हुई हैं।

2- महिला हिंसा की शुरुआत घर से होती है, 2012 में महिला हिंसा के दौरान मारी गयी कुल महिलाओं में से 50% से ज़्यादा की हत्या परिवार के किसी सदस्य द्वारा की गयी।

3- नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हिसाब से हर 3 मिनट में कोई न कोई महिला हिंसा का शिकार होती है।

निर्भया केस के बाद भारत में आने वाली महिला पर्यटकों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है। यहां से घूमकर लौटी महिला पर्यटक जो अपने ब्लॉग लिख रही हैं, उससे हमारी साख दिन-प्रतिदिन गिर रही है। विदेशों में भारत की छवि रेप कंट्री की तरह बन रही है। अभी कुछ दिन पहले जर्मनी की एक यूनिवर्सिटी ने भारत के एक छात्र को इसलिए इंटर्नशिप पर लेने से मना कर दिया क्यूंकि उसे डर था कि भारत बलात्कारियों का देश है।

महिला हिंसा के जो मुख्य तरीके सामने आ रहे हैं उनमें बलात्कार, भ्रूण हत्या, एसिड अटैक, घरेलू हिंसा, दहेज हत्या, हॉनर किलिंग और मानव तस्करी आदि मुख्य हैं। अब सवाल उठता है कि समस्या इतनी गंभीर है तो हल क्या है तो मेरा पहला हल है कि महिलाओं को भगवान मानना छोड़ के पहले उन्हें इंसान की नज़र से देखना शुरू कीजिये। मैं बड़े स्तर पर अपने नज़रिए में इसके तीन स्तर पर समाधान देखता हूं, पहला ‘व्यक्तिगत’ दूसरा ‘सामाजिक’ और तीसरा ‘व्यवस्थागत’। इस विषय पर कानून से ज़्यादा अपनी सोच पर बदलाव लाने पर ज़्यादा बल देता हूं। महिला को इंसान समझिए और आप संवेदनशील रहिए, ’महिला हिंसा’ खुद-ब-खुद रुक जाएगी।

Exit mobile version