26 नवंबर 1949, इसी तारीख को 67 साल पहले भारत के संविधान को अपनाया गया था। आज जब भारत के बुनियादी मूल्यों पर खतरा है, भारत के विचार के सामने चुनौतियां खड़ी हैं, हमें भारतीय संविधान, संवैधानिक संस्थाएं और संवैधानिक तौर-तरीकों को पुन: समझने की ज़रूरत है। इसे समझने के लिए 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर के अंतिम भाषण को फिर से पढ़ने-सुनने की ज़रूरत है। तब डॉ. अम्बेडकर ने भारतीय लोकतंत्र के लिए तीन खतरे बताए थे।
पहली चेतावनी, जब संवैधानिक उपाय खुले हों तो हमें सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति में संविधान प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए। इसका मतलब है, हमें खूनी क्रांतियों का तरीका छोड़ना होगा, अवज्ञा का रास्ता छोड़ना होगा, असहयोग और सत्याग्रह का रास्ता छोड़ना होगा।
दूसरी चेतावनी, भारतीय राजनीति में भक्ति या नायक-पूजा को लेकर है। धर्म के क्षेत्र में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है, परंतु राजनीति में भक्ति या नायक पूजा पतन और अंतत: तानाशाही का सीधा रास्ता है।
तीसरी चेतावनी, हमें सिर्फ राजनीतिक लोकतंत्र पर संतोष नहीं करना है। हमें हमारे राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र भी बनाना होगा। जब तक उसे सामाजिक लोकतंत्र का आधार ना मिले, राजनीतिक लोकतंत्र चल नहीं सकता।
आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि हम कितना आगे आये ? आये भी या नहीं । सिर्फ बातें ही किये जा रहें। ये जो अंध-भक्ति का नया माध्यम है ना क्या बोलते हैं इसे ? अरे “साइबर पैरानॉइड – साइबर विजीलैंट”! ज़रा पुनर्विचार तो करिये साहब! आप फैन बनिए , समर्थक बनिए या प्रगाढ़ भक्त ही बने परंतु कब तक? तब तक जब एक मतदाता के तौर पर आपको चुनाव करना हो। अब ज़रा जनता भी बन जाइये और करने दीजिये इनको बड़े फैसले और गवर्नेंस। कम-से-कम सही और निरपेक्ष आकलन तो करें।
किस बात का गुस्सा है जो हर तथ्य और लॉजिक को आप राष्ट्रभक्ति से ही जोड़ रहे हैं? आप बहके तो नही हैं फिर क्यों बन रहे इतने अतिवादी? क्यों खुद को ही कैद कर लिया है इन ऊंघती हुई साइकोफैंसी भरी बर्बर पिंजड़ों में? इंसान हो यार थोड़ा आज़ाद तो रहो। अब तो दुनिया प्राणिमात्र को कैद नहीं रख रही तो आप कैसे खुद को या किसी विचार को कैद रख सकते हो?