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रवीश के सवाल चुभते क्यों हैं?

अनूप कुमार सिंह:

हाल ही में एनडीटीवी अपने ऊपर लगे एक दिन के बैन को लेकर काफी चर्चा में है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने पठानकोट हमले पर चैनल द्वारा की गयी रिपोर्टिंग को आपत्तिजनक बताया है और सजा के तौर पर एनडीटीवी के हिंदी चैनल को एक दिन के लिए ऑफ एयर करने का फैसला किया गया है। सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सच में एनडीटीवी ने ऐसी कोई गलत रिपोर्टिंग की थी या फिर सिर्फ सरकार विरोधी ख़बरें चलाने के कारण चैनल की आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है।

यह जगजाहिर है कि यह चैनल शुरुवात से ही सरकार विरोधी रहा है चाहे फिर वो किसी की भी सरकार हो। अपनी संतुलित और संयमित ख़बरों के कारण इस चैनल की अपनी एक अलग पहचान है। टीआरपी की रेस में दसवें नंबर पर रहने वाले इस चैनल में कभी भी चिल्लाते हुए एंकर या बुलेट स्पीड से दौड़ती ख़बरें नहीं नजर आती है। फिर आखिर क्या वजह है कि इस चैनल को ऐसे बैन करने की कोशिश की जा रही है। सोशल मीडिया पर इसको लेकर बहुत बवाल हो रहा है और अधिकतर लोग इसे अघोषित आपातकाल मान रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि है कि पठानकोट हमले को लेकर इस चैनल की रिपोर्टिंग बाकी चैनलों की तुलना में तो और ज्यादा संतुलित थी। अगर सच में ऐसा कुछ है तो प्रसारण मंत्रालय को इस चैनल के और बाकी सारे प्रमुख चैनलों द्वारा पठानकोट हमले को लेकर की गयी रिपोर्टिंग की वीडियो ज़रूर शेयर करनी चाहिए।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि मौजूदा सरकार अपने खिलाफ़ आवाज उठाने वाले या सवाल करने वाले को दबाने की हर संभव कोशिश करती नजर आ रही है। पिछले कुछ दिनों से लोगों को देशभक्त और देशद्रोही के खेमे में बांटा जाना सचमुच निराशाजनक है। ऐसा नहीं है कि सरकार या उसके समर्थकों द्वारा यह विरोध सिर्फ एक ख़ास समुदाय या जाति के लोगों के लिए है बल्कि अगर आप बारीकी से देखें तो हर वो इंसान जिसने थोड़ी अलग आवाज या विरोध करने की कोशिश की उसे बंद कर दिया गया। दाभोलकर या पनसरे जैसे लोगों की हत्या सिर्फ उनके द्वारा विरोध में आवाज उठाने के कारण ही की गयी। जेएनयू में देशभक्तीऔर देशद्रोह को लेकर 15 दिन चला नाटक भी सिर्फ आवाज दबाने की कोशिश थी, बाद में किसी भी अदालत में कोई भी सबूत नहीं मिला। जबकि सरकार खुद अपने ही मंत्रियों द्वारा किये व्यापम जैसे गंभीर घोटाले और वरुण गांधी के सुरक्षा संबंधी दस्तावेज लीक करने जैसी ख़बरों या अफवाहों को दबाने के लिए कैसे कैसे हथकंडे अपनाती है यह किसी से छिपा नहीं है।

ऐसे में अब माना जा रहा है कि एनडीटीवी चैनल पर रात 9 बजे प्रसारित किये जाने वाले शो प्राइम टाइम की आवाज भी दबाने की कोशिश की जा रही है। यह शो अपने सब्जेक्ट और लोकप्रिय पत्रकार रवीश कुमार को लेकर हमेशा चर्चा में बना रहता है। इनकी इमेज आज के समय में हिंदी के सबसे लोकप्रिय और निष्पक्ष पत्रकार के रूप में है। मामला चाहे व्यापम घोटाले का हो या गुजरात के ऊना में हुए दलित आंदोलन की हो जेएनयू मसले का हो, कश्मीर विवाद का हो, सर्जिकल स्ट्राइक का हो  या फिर हाल ही में भोपाल जेल से भागे सिमी कार्यकर्ताओं के एनकाउंटर का हो। हर बार इस शो ने सरकार से जवाबदेही मांगी है और विषयों को जबरदस्त तरीके से उठाने की कोशिश की है जिससे कई बार सरकार बैकफुट पर खड़ी नज़र आती है।

जेएनयू मसले पर अपने शो में स्क्रीन काली कर देने और ख़राब पत्रकारिता को आईना दिखाने वाले एपिसोड के बाद इनकी लोकप्रियता और विरोध दोनों ही तेजी से बढ़ा है। उस एपिसोड के बाद कल के प्राइम टाइम में सरकार के बैन का विरोध दिखाने के लिए रवीश ने जो कलात्मक अंदाज़ चुना वो वाकई काबिले तारीफ़ है। माइम आर्ट के ज़रिये उन्होंने यह दिखाने की कोशिश कि अगर हम आवाज ही नहीं उठायेंगें, सवाल ही नहीं करेंगें तो किसी चीज का विरोध कैसे करेंगे या अपनी मांग कैसे रखेंगें।

सोशल मीडिया पर कुछ लोगों का यहां तक कहना है कि सरकार, मीडिया के सबसे सॉफ्ट टारगेट चैनल पर बैन लगाकर यह चेक कर लेना चाहती है कि उसे किस स्तर का विरोध झेलना पड़ सकता है। सरकार का अगला कदम धीरे धीरे उन सभी मीडिया हाउस पर नकेल कसने का होगा जो उल्टी दिशा में बहने की कोशिश करते हैं। अगर सचमुच में कुछ ऐसा है तो यह शर्मनाक है और हम सबको और सारे छोटे-बड़े मीडिया हाउस को इस बैन के खिलाफ़ एकजुट होकर इसका विरोध करना होगा।

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