करीब एक हफ्ते पहले नई दिल्ली के नया बाज़ार में हुए ब्लास्ट की CCTV की फुटेज पूरे मीडिया में देखी गयी। आये दिन CCTV फुटेज से प्राप्त आपराधिक घटनाओं और सड़क दुर्घटनाओं की पुष्टि होती रहती है। मेरा एक दोस्त जो एक समाचार पत्र एक डिजिटल माध्यम में काम करता है बताता है की रोज़ सुबह उसे CCTV के भयावह वीडियो देखने को मिल जाते हैं| इस तरह के वीडियो मीडिया में कितने फैले हैं इसका एक छोटा सा अंदाजा लगाने के लिए मैंने एक छोटा सा गूगल सर्च एक नवम्बर 2016 की शाम करीब साढ़े पांच बजे किया। मैंने भारत से प्रकाशित से होने वाले पिछले एक हफ्ते के गूगल न्यूज़ आइटम में ‘CCTV CAMERA’ टाइप कर उसका रिज़ल्ट लिया।
गूगल सर्च में सबसे पहली खबर आंध्र प्रदेश के गुंटूर के अस्पताल में एक पुरुष द्वारा एक महिला पर खूंखार हमले का वीडियो CCTV कैमरे में दर्ज होना है। दूसरे खबर में बैंगलुरू में शहर के कमिश्नर CCTV की संख्या सार्वजनिक क्षेत्रों तक बढाने की बात कर रहे हैं ताकि शहर में बढ़ रहे आपराधिक घटनाओं की निगरानी तथा रोकथाम बेहतर ढंग से की जा सके। सर्च में आगे पढने से पता चला की अब भारत पाकिस्तान के LOC भी अब CCTV कैमरा से वंचित नहीं है। ANI द्वारा प्रकाशित एक CCTV वीडियो के द्वारा बताया गया कि पाकिस्तान से कैसे घुसपैठिए LOC को लांघ रहे थे।
तमिलनाडु के थेवार जयन्ति में टेक्नोलॉजी का प्रयोग नए चरम पर दिखा। पुलिस ने रामनाथपुरम जिले में मनाये जाने वाले इस त्रिदिवसीय त्यौहार में बेहतर सुरक्षा के इंतज़ाम के तहत 150 नए CCTV कैमरे लगाये और अपनी जीप में 360 डिग्री वाले PTZ (पैन-टिल्ट-जूम) वाले कैमरे लगाकर घूमते नज़र आये। यही नहीं वहां ऐसे भी हाई टेक कैमरों का इस्तेमाल हुआ जो 5 किलोमीटर तक लोगों के फोटो खिंच सकते थे। जीप तो क्या अब तो मोटरसाइकिल में भी इस तरह कैमरों लगाने की मांग की जाने लगी की है।
आगे पढ़ने के बाद पता लगा की एक हैदराबाद में मोटर कंपनी ने तो पुलिस की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक स्पेशल GPS युक्त बाइक का उद्घाटन किया जो शहर के अन्य CCTV और निगरानी केंद्र से ऑनलाइन संपर्क में रहेगा। वैसे ऑनलाइन CCTV हमारे ज़िन्दगी की कब सच्चाई बन जायेगी पता नहीं चलेगा जैसा की तायपेई शहर की LIVE झलक अब आप Youtube के माध्यम से घर बैठे देख सकते हैं।आने वाले दिनों में हमारे देश के 100 स्मार्ट सिटी की पहचान शायद इस तरीके से ही बना करेंगी। गूगल रिसर्च के एक अन्य सर्च से पता चला कि ब्रिटेन में CCTV की संख्या 60 लाख से ज्यादा है यानी औसतन हर 10 लोगों पर वहां एक CCTV कैमरा लगा हुआ है। जॉर्ज ओरवेल के उपन्यास ‘1984’ की कल्पना यहां सच साबित होती दिख रही है।
पिछले एक हफ्ते की गूगल हिस्ट्री (भारत में) में देख के कोने कोने से 50 से ज्यादा अलग-अलग ख़बरें मिलीं जहां CCTV का जिक्र था। मैं इसके अच्छे और बुरे में नहीं जा रहा हूं। मेरे एक छोटे से सर्च से इसका कोई अंदाज़ा लगाना भी बेवकूफी होगी। इनमें से कुछ ख़बरों से पता चला की CCTV कैमरों ने कैसे अपराधी को पकड़ने में मदद की और अन्य तरह से सन्दर्भों में किस तरह से पुलिस जांच के लिए CCTV फुटेज का सहारा ले रही है। सुरक्षा और निगरानी की दृष्टि के मद्देनज़र सरकार और पुलिस दोनों ही अधिक से अधिक इस संसाधन का प्रयोग बढ़ा रही है और उस पर आश्रित भी हो रही है। जैसे भोपाल जेल से SIMI एक्टिविस्ट के भागने के पहले वहाँ के तीनों CCTV कैमरे का बंद हो जाना जांच के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर पर्दा गिर जाना जैसा प्रतीत हो रहा है।
समाज में कैमरों की बढती संख्या और उसकी निगरानीयां हमारे निजी जिंदगी को भी काफी हद तक बदल रही है। यह बात सिर्फ CCTV कैमरा तक सीमित नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि आज कल लोग बहुत कुछ छुपाना भी चाहते हैं। हम कंहा जाते हैं, क्या खाते हैं; क्या करते हैं, सोशल मीडिया के द्वारा हम दुनिया को बताते रहते हैं। बढती हुई स्मार्ट फ़ोन की संख्या, उसके कैमरे, सोशल मीडिया और इन्टरनेट के प्रसार ने प्राइवेट और पब्लिक की सीमाओं को तहस-नहस किया है जिसमें सुरक्षा और निगारानियां अपने नए आयाम तलाश रही है। कैमरों की नज़रों से बचना आज कल बहुत मुश्किल है। लुक्का छुप्पी के इस खेल में फिलहाल फोटो और वीडियो हमारा प्रसार भी है और हथियार भी।आगे के समय में क्या होगा मालूम नहीं पर गूगल जर्नलिज्म के इस दौर में यह छोटा सा सर्च यह पता लगाने के लिए काफी है कि डिजिटल माध्यम हमारे जिंदगी में किस हद तक उतर गया है।