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सुशीला और विमला पुराने नोट लेकर कहां जाएं?

सौरभ राज:

गांव के बाज़ार की रौनक गायब सी हो चुकी थी। चाय के चौपाल पर सन्नाटा था, भूरा के दुकान पर भी बैठकी नहीं लगी थी। हुक्का पीने वाले और ताश खेलने वाले जगह पर बकरियाँ आराम फरमा रही थी। इन सबके बीच बाज़ार के चौराहे पर सब्जियों की रेड़ी लगाने वाली सुशीला आज खाली बैठी थी।[envoke_twitter_link] नोटबंदी के फैसले का असर पूरे बाज़ार पर दिख रहा था।[/envoke_twitter_link]

राजस्थान के चुरू ज़िले के एक गांव के बाज़ार में सुशीला और उसका पति पिछले 10 वर्षों से सब्ज़ी की रेड़ी लगा रहे हैं। इसी रेड़ी से उनके परिवार का गुज़ारा होता है। आम दिनों में सुशीला की रेड़ी से ही अधिकांश घरों के लिए तरकारी जाती है। लेकिन [envoke_twitter_link]नोटबंदी के कारण उसकी सब्ज़ी और चेहरे दोनों से हरियाली गायब हो चुकी है।[/envoke_twitter_link] उसने अपने पति से छिपाकर बेटियों की शादी के लिए घर के पुराने संदूक में पिछले 10 वर्षों में पाइ-पाइ जोड़कर लगभग साढ़े चार लाख रुपये जमा किये थे। अब वह भयभीत है, काफी परेशान है क्योंकि वह इस देश के उस तबके से है जो आज भी बैंक से जुड़े नहीं हैं।

वजह पूछने पर सुशीला अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए दर्दाकुल आवाज़ में बताती है कि मायके से उसे एक संदूक मिला था। वह अपना हर निजी सामान उसी में छिपाकर रखती थी। वह संदूक ही उसका बैंक था, इसलिए वह कभी बैंक गयी ही नहीं। लेकिन नोटबंदी के फैसले के बाद सुशीला के ममता की छांव में अपनी मेहनत से जमा किये गए वो साढ़े चार लाख रुपयों का क्या होगा उसे पता नहीं। लाख दुहाई के बाद भी कोई भी उसकी मदद को तैयार नहीं है।

वहीं प्राथमिक विद्यालय में मिड डे मील पकाने वाली विमला की कहानी भी कुछ ज्यादा अलग नहीं है। मिड डे मील बनाने के लिए विमला को राज्य सरकार द्वारा प्रतिमाह हज़ार रुपये मिलते हैं। अब चूँकि उसका पति एक नंबर का शराबी है और सारे पैसे शराब में खर्च कर देता है, इसलिए विमला अपने मेहनत की कमाई को अपने खाते से निकाल अपने बैंक जैसे संदूक में छिपा कर रखती है। ताकि वो अपने परिवार के लिए हर शाम को चूल्हे में आग जला सके। लेकिन नोटबंदी के बाद विमला भी परेशान है। वह अपने रुपयों को बैंक में नहीं डालना चाहती, क्योंकि खाते में डालते ही सारा रुपया उसके पति के मदिराकोष में चला जायेगा। वह कई निजी कारणों से रुपयों को बदलने जाने में भी असमर्थ है। यह सब बयान करते करते विमला के आँखों में आंसू थे और उन आंसुओं में मदद की पुकार।

सुशीला और विमला दोनों के संदूक ने आज उसका साथ छोड़ दिया है। दोनों माताओं की ममता और इसके छांव में छिपे पैसे आज उनकी परेशानी का सबब बन चुकी है। अब इस स्थिति में सुशीला और विमला कहां जाए और क्या करें? ना जाने और भी कितनी सुशीला और विमला जैसी महिलाएं इस दौर से गुजर रही होंगी।

(नोट: लेख में इस्तेमाल की गई फोटो केवल प्रतीकात्मक है।)

 

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