Site icon Youth Ki Awaaz

सोनपुर मेला: कोई डॉक्टर तो कोई टीचर बनने के लिए मेले में नाचती है

पशु मेले के नाम से मशहूर बिहार के सोनपुर मेले में अब जानवरों का बाज़ार तो सिमट चुका है, मगर थिएटर की रौनक अभी भी बरकरार है। शाम होते ही पूरा मेला थिएटर की रौनक में डूब जाता है। यहाँ का हर थिएटर भड़कीले, उत्तेजक गानों और रंगबिरंगे लाइटों के बीच जगमगाने लगता है। उसके बाद स्टेज पर चमचमाते कपड़ों के साथ थिएटर के कलाकारों का जमावड़ा शुरू हो जाता है। दर्शक तो इस पूरे माहौल का खूब आनंद उठाते हैं, मगर इन जगमगाहटों के बीच ये कलाकार कहीं ना कहीं अपने जीवन के रंग और रास्ते तलाशते रहते हैं।

इन्हीं में से एक कलाकार रूपा मुस्कुराते हुए बोलती है, ‘मैं तो फैशन डिज़ाइनर बनना चाहती थी, मगर घर की परिस्थिति के कारण इस फील्ड को चुनना पड़ा।’ रूपा पिछले 4 सालों से सोनपुर मेले में परफॉर्म करने आ रही है।कलकत्ता की रूपा के घर में कोई नहीं जानता कि वह यहाँ सोनपुर मेले में परफॉर्म करने आती है। रूपा बताती है कि उन्हें बचपन से ही डांस का बहुत शौक है। कलकत्ता में वह एक डांस ग्रुप के साथ जुड़ी भी हुई है। उसके घर वाले यही समझते हैं कि वह पटना में कोई डांस शो करने आई है।

इन कलाकारों ने नहीं छोड़ा है सपने देखना

यहाँ के अधिकांश कलाकारों के जीवन में कोई ना कोई परेशानी और पीड़ा है, बावजूद इसके ये लोग इस जिंदगी को खूब मज़े में जीते भी हैं। यहां कोई डॉक्टर बनने की बात करती है, तो कोई टीचर बनना चाहती है। थीएटर में परफॉम करने वाली 20 वर्षीय एक युवती का कहना है ‘हमलोग यहाँ एक दूसरे के साथ बहुत हंसी मज़ाक करते हैं, मगर वह इस स्याह सफेद जिंदगी को जीना नहीं चाहती। वह कहती है कि एक ही महीने तो यहाँ आना पड़ता हैं बाकि समय तो मैं आराम से पढ़ाई कर सकती हूँ।

शाम छह बजे से सुबह चार बजे तक करना पड़ता है परफॉर्म

शाम पांच, छह बजे से ये सभी कलाकार सामूहिक रूप से स्टेज पर खड़ी हो जाती हैं। अगले 5 घंटे तक मुख्य रूप से गानों में झूमते हुए दर्शकों को बुलाने और रिझाने का काम करती हैं। रूपा बताती है कि वैसे तो हमारा सोलो परफॉरमेंस दो या तीन ही होता है, मगर लगातार इतने घंटे स्टेज पर समूह में खड़े रहने में ही हालात ख़राब हो जाती है। यह सारा कार्यक्रम सुबह 4,5 बजे तक चलता है।

सोनपुर मेले का ऐक थिएटर

नोट का हल्का सा छोड़ पकड़ कर खिंच लेते हैं

परफॉर्मेन्स के दौरान दर्शकों के बर्ताव पर बात करते हुए इन कलाकारों का कहना हैं कि प्रशासन की सतर्कता के कारण हमें उतनी असहजता महसूस नहीं होती। ‘द ग्रेट शोभा थिएटर’ के संचालक विनय कुमार का कहना है कि चाहे वह परफॉर्मेंस का समय हो या बाकी समय हमलोग कलाकारों का पूरा ध्यान रखते हैं। इनकी पूरी जिम्मेदारी हमारी होती है।

रूपा भी इस बात पर हामी भरते हुई कहती हैं कि दर्शकों के बीच से कोई खास गंदे मज़ाक या कमेंट नहीं करता। हमलोग खुद भी पूरी सावधानी बरतते हैं। जब भी कोई दर्शक हमें पैसे देता है तो हम नोट का हल्का सा एक छोर पकड़कर उसे खिंच लेते हैं।

किसी दूसरे को यहाँ आने का नहीं दूंगी सुझाव

बावजूद इसके रूपा का कहना है कि वह अपनी छोटी बहन या किसी दूसरी दोस्त को इस फील्ड में कभी आने का सुझाव नहीं देंगी। उनका कहना है कि आज थिएटर के बदले माहौल को हम लोग जान रहे हैं क्योंकि हम लोग इस बदले माहौल को जी रहे हैं, मगर आज भी ज्यादातर लोग इसे अश्लीलता का पर्याय ही समझते हैं।

रूपा के लिए भी यहाँ आना आसान नहीं था। रूपा बताती है ‘मुझे भी थोड़ा अजीब लगा था। घर में पापा को शराब की लत है, माँ बीमार रहती है। ऊपर से चार पांच बहनें। घर की माली हालत देखकर मुझे यह रास्ता चुनना पड़ा।’

हर कलाकार की होती है अलग-अलग कमाई-

इन कलाकारों को उनके परफॉर्मेंस और उनके नाम पर पैसा मिलता है। ज्यादा पुराने और अच्छे कलाकारों को एक दिन का 1200 रूपए तक मिल जाता है, जबकि कुछ कलाकारों को 300, 400 रुपए रोज़ाना के हिसाब से ही कमाई होती है। इसके अलावा दर्शकों से मिली बख्शीश से भी इनकी अच्छी कमाई हो जाती है।

रूपा का कहना है कि आज मुझे इस काम में बिलकुल भी असहजता महसूस नहीं होती, लेकिन मेरे घर की हालत ठीक होने पर मैं दोबारा कभी इस ओर रुख नहीं करुँगी।

Exit mobile version