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158वीं जयंती पर जगदीश चंद्र बोस से जुड़ी 5 दिलचस्प बातें

आचार्य जगदीश चंद्र बोस, वही वैज्ञानिक जिन्होंने आज से 115 साल पहले ये साबित कर दिया कि पौधों में भी जान होती है, आज उनका जन्मदिन है। गूगल ने भी डूडल बना कर बोस को याद किया है। 30 नवंबर 1858 को बंगाल प्रेसिडेंसी के मुंशीगंज (अब बांग्लादेश में) में जन्मे बोस का नाम विश्व के महानतम खोज करने वाले वैज्ञानिकों में शुमार है। कुछ दिलचस्प बातें हैं जगदीश चंद्र बोस के बारे में जो आज जाननी चाहिए।

1) बंगाली साइंस फिक्शन के जनक-

बोस सिर्फ वैज्ञानिक ही नहीं थे बल्कि लिट्रेचर में भी काफी रुचि थी। खासकर बंगाली साइंस फिक्शन में बोस ने काफी काम किया। उनकी कहानी पोलाटक तूफान बहुत प्रसिद्ध हुई। 1986 में बोस ने पहली किताब लिखी जिसका नाम था निरुद्देशेर काहिनी। ऐसा कहा जाता है कि जगदीश चंद्र बोस की सोच अपने समय से कम से कम 50 साल आगे की थी।

2) वायरलेस कम्यूनिकेशन के जनक-

यूं तो रेडियो के आविष्कारक के तौर पर दुनिया मार्कोनी को जानती है लेकिन विज्ञान की दुनिया वायरलेस कम्यूनिकेशन के जनक के तौर पर जगदीश चंद्र बोस को ही जानती है। 1895 में बोस ने बंगाल के लेफ्टिनेन्ट गवर्नर के सामने वायरलेस रेडियो का पहला डेमन्सट्रेशन किया था। बोस ने मरकरी कोहेरर (Mercury Coherer) भी बनाया था जिसे उस दौर में रेडियो वेव्स पहचानने और रिसीव करने में इस्तेमाल किया जाता था। 1897 में मार्कोनी ने इसी तकनीक की मदद से टू वे रेडियो की खोज की।

क्रिस्कोग्राफ

3) पौधों के जीवन पर रिसर्च-

पौधों में भी जान होती है और एक जीवन संचार का सिस्टम भी होता है, ये पहली बार दुनिया को जगदीश चंद्र बोस ने ही बताया था। ये बात साबित करने के लिए बोस ने पहले एक यंत्र की खोज की जिसे नाम दिया गया क्रिस्कोग्राफ। क्रिस्कोग्राफ की मदद से बोस ने अलग स्थितियों और उत्तेजनाओं में पौधों की प्रतिक्रिया को दुनिया के सामने रखा और सिद्ध किया कि पौधों में भी जीवन की प्रक्रिया होती है।

4) बोस भी हुए थे रेसिज़्म के शिकार-

वायसराय लॉर्ड रिपन की सिफारिश के बाद बोस लंडन से कलकत्ता लौटें और प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता में उन्हें प्रोफेसर नियुक्त किया गया। बोस का सामना यहां रेसिज़्म और भेदभाव से हुआ। अपने ब्रिटिश कलीग के मुकाबले बोस को मासिक वेतन 100 रुपये कम मिलता था। हालांकि इसे बाद में सुलझाया गया। बोस को लैब्स जाने से भी रोक दिया गया था, जिसके बाद मजबूरन उन्हें अपने तमाम वैज्ञानिक शोध एक 24 स्क्वायर फीट के कमरे में करने पड़ते थे।

5) चांद के क्रेटर(गढ्ढे) का नाम है बोस-

चांद पर भी दाग है का डायलॉग तो शायद बॉलीवुड ने अमर ही कर दिया है। और ये बात कि दरअसल वो दाग गढ्ढे हैं ये भी सब जानते हैं। लेकिन उन गढ्ढों का अपना नाम भी है, और उन्हीं गढ्ढों में से एक क्रेटर का नाम जगदीश चंद्र बोस के सम्मान में बोस रखा गया है। इस क्रेटर का डायामीटर 91 किलोमीटर है।

 

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