आए दिन मीडिया चैनलों द्वारा किसी एक राजनीतिक पार्टी की तरफदारी और चापलूसी करते हुए देखा जा सकता है। ये मीडिया चैनल, राजनीतिक पार्टियों के एजेंट के रूप में कुछ इस तरह काम करते दिख सकते हैं कि आपको ऐसा एहसास होगा कि हिंदुस्तान में आम आदमी की कोई मूलभूत समस्या है ही नहीं।
आज-कल चैनलों में पूरे समय आर्मी का बखान किया जा रहा है और हर समय बस ये बताया जाता है कि वो देश के लिए “लड़ रहे हैं, मर रहे हैं” और हम लोग अपने घर में बैठ कर “चैन की सांस” ले रहे हैं। दिवाली जैसा त्यौहार मना रहे हैं और सैनिक अपने घर से दूर, देश के सरहद की रक्षा कर रहा है। मैं इस देश के वीर सिपाहियों की कद्र करता हूं, इनका सम्मान भी करता हूं और उस दर्द और करुणा को समझ सकता हूं लेकिन मुझे लगता है हर वो सिपाही जो बॉर्डर में खड़ा है वो अपनी ड्यूटी निभा रहा है और वो उसका फ़र्ज़ है।
सिर्फ सीमा में तैनात सिपाही ही नहीं, विभिन्न राज्यों में तैनात तमाम पुलिस फ़ोर्स और केंद्रीय पुलिस भी अपने घरों से दूर, दूसरे जिलों में रात-दिन ड्यूटी कर रही हैं। लेकिन मीडिया कभी इस चीज़ को नहीं देख पाती या यूं कहें कि ये बिकाऊ मीडिया ये सब देखना ही नहीं चाहती।
इस देश का किसान , जो इस देश के लिए अनाज पैदा करता है, चाहे कैसा भी मौसम हो वो खेती करता है और ज़्यादा से ज़्यादा अनाज पैदा करने के बारे में सोचता है। वो किसान भी अपनी ड्यूटी निभा रहा है, लेकिन हमारी मीडिया को किसानो का त्याग, परिश्रम और उनकी क़र्ज़ से होने वाली मौत कभी मुश्किल ही दिखाई देती है। बुंदेलखंड, मराठवाड़ा और विदर्भ में ना जाने कितने हज़ार किसानों ने क़र्ज़ और फसल ना होने की वजह से खुद को मौत के गले लगा लिया। उन किसानों और उनके परिवार के बारे में ये बिकाऊ मीडिया शायद ही कभी बात करती दिखेगी।
बात सबकी होनी चाहिए, सम्मान सबको मिलना चाहिए। चाहे वो सीमा में तैनात सिपाही हो, खेत में मरता किसान हो या फिर शहरों और राज्यों की देखभाल करती पुलिस हो। सम्मान का जितना हक़ सीमा पर तैनात फ़ौज को है उतना ही किसानों और बाकि सबको भी है, जो अपनी-अपनी ड्यूटी तथा फ़र्ज़ सच्चे दिल से निभा रहे हैं। जो नहीं होना चाहिए वो है मीडिया का बिकाऊ होना तथा किसी राजनीतिक पार्टी के स्वार्थ के लिए उसका बेजा इस्तेमाल किया जाना। मीडिया को उन सभी मूलभूत मुद्दों और सुविधाओं को प्रमुखता देना चाहिए, जिससे देश की आम जनता अभी भी वंचित है।