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“अब पॉर्न कोई नहीं देखता रेप वीडियोज़ ही रियल फन है”

क्या आपको लगता है कि पॉर्न बलात्कार के लिए उकसाता है? यदि हां, तो अपनी राय बदल लें क्योंकि जिस समाज में हम रह रहे हैं वहां बलात्कार के लिए पॉर्न नहीं बल्कि “फन यानी मज़ा” जैसे काॅंसेप्ट ज़िम्मेदार हैं!

पिछले दिनों कई बड़े अख़बारों में रियल फन और रियल मज़ा के नाम से उत्तर प्रदेश के आगरा शहर के बाजारों से रेप वीडियो/क्लिप्स मिलने की खबर मीडिया में आई लेकिन ताज्जुब इस बात का है कि यह खबर चर्चा का विषय नहीं बन सकीं क्योंकि यह शायद उस तबके की बात थी ही नहीं जहां इसे चर्चा मिलती।

आगरा में रेप के दौरान बनाये गए वीडियोज़ और क्लिपिंग्स का बड़े पैमाने पर कारोबार चल रहा है, जिसके लिए मोबाइल रिचार्ज और रिपेयरिंग की दुकानें इस्तेमाल की जा रही हैं। यह चौंकाने वाली बात है कि कानून की नाक के नीचे ही इस गैरक़ानूनी काम को अंजाम दिया जा रहा है और कानून को इसकी खबर ही नहीं। इन दुकानों पर रिचार्ज/रिपेयरींग तो एक बहाना मात्र है असल में यहां पॉर्न का खुला बाज़ार है। यह दुकानदार 15000, 10000 और 5000 दे कर रियल रेप वीडियो खरीदते हैं जिसे प्रत्येक ग्राहक को 150, 100 और 50 रूपये में व्हाट्सएप, ट्विटर, फेसबुक, पेनड्राइव के ज़रिये मुहैया कराते हैं।

अल जज़ीरा की एक रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस अधिकारी से जब इस बारे में पूछा गया तो उसने बड़ी ही मासूमियत से उल्टा सवाल करते हुए कहा, “रेप वीडियो”, यह क्या होता है? वहीं, दुकान से वीडियो खरीदते एक लड़के ने कहा, “ यह रियल फन है, इसको देख के सचमुच का मज़ा आता है, ये पीस ऑफ माइंड है।”

इस पर दुकानदार का कहना है, “आज कल यही डिमांड में हैं, लोगों को इससे मज़ा आता है और अब तो रियलटी का ज़माना है, पॉर्न अब कोई नहीं देखता”।

रिपोर्ट यह भी कहती है कि पुलिस इस मामले में सुस्त है और वह यह मानने को तैयार ही नहीं कि रेप वीडियो जैसा कुछ होता भी है। इस गैर-क़ानूनी धंधे की पहुँच केवल आगरा तक ही नहीं रही बल्कि अब यह वीडियोज़ और क्लिपिंग्स बरेली, अलीगढ़, कानपुर, नोएडा, मुरादाबाद आदि शहरों में भी धड़ल्ले से बेची जा रही हैं। इसके लिए बाकायदा पूरी प्लानिंग के साथ बलात्कार और गैंगरेप को अंजाम दिया जाता है।

बाज़ार का यह नियम तो सभी जानते हैं कि जिस चीज़ पर रोक लगाई जाती है, उसकी डिमांड और बढ़ जाती है। यही बात यहाँ भी लागू हो रही है। सरकार ने पॉर्न पर बैन लगाया और उसके बदले में यह रियलटी का गंदा खेल खेला जाने लगा। यह खेल अब इंटरनेट तक पहुँच गया है और यह बात किसी से छुपी नहीं है कि इंटरनेट ऐसी चीजों का गढ़ है।

जिस देश में इंटरनेट की पहुंच मात्र 22% लोगों तक है वहां इस रियल फन का मज़ा लेने वाले कितने हैं और किस आबादी के हैं यह पता लगाना शायद ज़्यादा मुश्किल नहीं है! लेकिन फिर भी हमारी पुलिस हर बार “कार्यवाही हो रही है” कह कर बच निकलती है।

एक उदहारण लेते हैं, देश के बाहर अगर पॉर्न बाज़ार की बात करें तो कोरियाई बाज़ार पॉर्न और सेक्स खरीदने-बेचने में सबसे आगे है। कोरिया में पॉर्न साइट गैरकानूनी है लेकिन फिर भी यहाँ के पुरुष अपनी कुंठा को शांत करने के लिए महिलाओं की छिप कर तस्वीरें लेते हैं। जिसके लिए वह लेडीज़ पब्लिक टॉयलेट, ट्रायल रूम और ट्रेन आदि की सीढियाँ चढ़ते हुए महिलाओं की तस्वीरें और वीडियो ले कर उन्हें ऑनलाइन कर देते हैं। इन हालातों के बाद कोरियन सरकार ने एक टीम तैयार कर छिपे कैमरों को ढूंढने का काम किया और बढ़ते पॉर्नोग्राफी मटेरियल पर अंकुश लगाया। अब ज़रा सोचें, कि क्या ऐसा होना नामुमकिन है! या दोष हमारी सरकार का नहीं है!

उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था वैसे भी राम भरोसे चल रही है और उस पर इन घटनाओं का होना निश्चित रूप से चिंता का विषय है। गौरतलब है कि देशभर में होने वाली रेप की वारदातों की तुलना में अकेले यूपी में दोगुनी रेप की घटनाएं होती हैं। राज्य सरकार का क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो भी इस बात को मनाता है जिसने हाल ही में बताया कि एक साल के भीतर राज्य में रेप की घटनाएं 161 फीसदी बढ़ी हैं। साल 2014 में राज्यभर में 3467 रेप के मामले सामने आए थे वहीं 2015 में 9075 रेप के मामले सामने आए। यह आंकड़े तब है जब मामले पुलिस और कानून के समकक्ष आते हैं यानी मान कर चले कि असल आंकड़े इसके दोगुने या तिगुने होंगे!

2013 में पॉर्न बैन के लिए एक याचिका दायर की गई। तब भी यही कहा गया था कि महिलाओं के साथ हो रहे अपराध का बड़ा कारण पॉर्न है। लेकिन यदि ऐसा है तो आज के हालात को क्या कहेंगे जब रियल रेप के वीडियो देख कर बलात्कार को अंजाम दिया जा रहा है!

यदि यह माने भी कि पॉर्न बलात्कार के लिए उकसाता है और सिर्फ पॉर्न देखने वाले ही रेप करते हैं तो उस आबादी का क्या जो इंटरनेट के 22% से अलग है? सरकार का कहना है कि पॉर्न बैन से बलात्कार कम होंगे लेकिन क्या सच में?

सरकार के पास प्रयासों की भारी कमी है। रियल रेप वीडियो को कानून नहीं मनाता जबकि पॉर्न को बलात्कार का असली दोषी मानता है।

पॉर्न बैन को लेकर जिन आशंकाओं से डरा जाता था आखिर वही अब रेप वीडियो के रूप में हमारे सामने हैं। हमारा कानून हमेशा से हर अपराध पर प्रश्नचिन्ह लगाता आया है और अब इन अपराधियों के आगे मौन खड़ा हो कर तमाशा देख रहा है।

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