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अबे तुमको तो मज़ा ही आया होगा, भला लड़कों का सेक्शुअल हरासमेंट होता है

जब मैं छोटा था तब मुझे भी यही अहसास कराया गया कि “मैं एक लड़का हूं, मेरा कोई क्या कुछ करेगा, मैं थोड़ी न लड़की हूं”। पर यही सोच ना जाने कितने लड़कों के दिमाग में बैठ कर उनकी सोच और व्यक्तित्व का शोषण आजीवन करती रहती है। मुझे कभी नहीं बताया गया, ‘गुड टच या बैड टच’ क्या होता है।

मोलेस्टेशन क्या है? क्या यह एक आदमी है? मोलेस्टेशन एक सोच है, जो खुदकी वासना की पूर्ति के लिए कभी डर, हक, या लालच दिखाकर खुद को ही संतुष्ट करती है। ये सोच कोई भी रख सकता है आदमी, पिता, भाई, जीजा, बहनोई, बॉस, टीचर या कोई भी और!

सवाल अब ये है कि क्या कोई औरत मोलेस्टेशन कर सकती है? मैं इस लेख को लिखने के पहले कहता, ‘ऐसा इक्का-दुक्का ही होता होगा, ज़्यादातर तो आदमी ही ज़िम्मेदार हैं।’  यौन हिंसा का शिकार हर कोई कहीं न कहीं होता है, ये सिर्फ यौन आक्रमण तक ही सीमित नहीं है। अगर किसी लड़की की ज़बरदस्ती किसी से शादी करवाई जाये तो ये भी यौन हिंसा ही है, यदि किसी लड़की को उसके कपड़ों या रंग रूप को देखकर कोई भद्दी बात कही जाये तो ये भी यौन हिंसा ही है, यदि कोई गाली दे तो ये भी यौन हिंसा ही है। इस मानसिकता का पालन-पोषण घर पर ही होता है। जैसे लड़के को बताया जाता है कि वो लड़कियों के साथ ना खेलें, वो खुद को मज़बूत बनाये, वो एक ख़ास तरह से व्यवहार करें आदि।

ऐसा भी हुआ है कि कई बार आप किसी से हाथ मिलाते हो तो वो आपका हाथ बहुत ज़ोर से मसल देता है। ये बात सिर्फ लड़कियों के साथ ही नहीं होती, लड़कों के साथ भी होती है। लड़कों का लुक यदि थोड़ा सा कोमल है तो उन्हें ताने सहन पड़ते हैं कि देखो साला चिकना, लड़की दिखता है आदि।

बात आज कार्यस्थल पर यौन हिंसा की करूंगा। मैं साफ कर दूं कि मैं मोलेस्टेशन को एक सोच  मानता हूं, हालांकि इससे ही मिलता-जुलता एक मनोरोग भी है, जिसे ‘पीडोफिलिया’ (Pedophilia ) कहते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति, छोटे बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं और ये नहीं चाहते हुए भी ऐसा कर सकते हैं। पर हर मोलेस्टर इस बीमारी का शिकार नहीं होता। ये ज़िक्र इसलिए भी करना ज़रूरी है कि ये बीमारी यौन कुंठा, अविश्वास, तनाव से पैदा होती है। ये भी दावा किया जाता है कि दिमाग की एक खास बनावट भी इस बीमारी के लिए जिम्मेवार हो सकती है और अभी तक इसका सही इलाज़ नहीं खोजा गया है।

कुछ दिन पहले मेरे एक बहुत अच्छे दोस्त जो काफी परेशान थे, ने मुझे जो बताया उसे सुनकर मैं स्तब्ध रह गया। एक आत्मविश्वासी, हंसमुख, तेज़तर्रार लड़का जिसकी उम्र 25 -26 के आस-पास है। वो एक बच्चों की शिक्षा पर काम करने वाली एक संस्था में काम करता था। अचानक उसे हेड ऑफिस बुलाया जाता है फिर उसे एक मैसेज व्हाट्सएप्प पर आता है जो उस संस्था की सर्वोच्च का था। उम्र करीब 50 साल। उन्होंने मेरे मित्र से दोस्ती करने की इच्छा रखी फिर वो आगे बढ़ने लगी उन्होंने उसे इमोशनली ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। जब वो बुरी तरह से परेशान हो गया तो आखिरकार उसे जॉब से जाना पड़ा। संस्था की मालिक, नामी धनवान औरत से वो नहीं लड़ सकता क्योंकि शायद देश में कोई ठोस कानून नहीं है।

कहना आसान होगा कि उसे लड़ना चाहिए पर क्या ये इतना आसान होता? जहां एक युवा उम्र के इस दौर में खुद के भविष्य के बारे में सोचता है और उसे ये सब ही झेलना पड़ता है। कोई कहेगा लड़के की ही कोई गलती होगी? कई सवाल हैं, कोई कहेगा ये तो विरले ही मामले हैं पर संभव है कि कई लड़के भी इस तरह के मोलेस्टेशन का शिकार होते हो पर वो शायद कुछ नहीं कह पाते? पर ऐसा होता है, ये आंकड़ो में नहीं हैं क्योंकि ये मामले भी दब जाते हैं।

इसी कारण मेरा दोस्त भारी डिप्रेशन में चला गया और उसे नींद की दवाई के सहारे ही अब नींद आती है। उसकी पल्स रेट असामान्य हो जाती है पर इसके बावजूद वो अब फिर से इन मुद्दों पर ज्ञान हासिल कर रहा है। वो पढ़ता है, दुनिया भर के लोगों से बातचीत कर वो कानून, मनोविज्ञान पर जानकारियां इकठ्ठा कर रहा है।

सेक्स एजुकेशन भारत में होनी चाहिए। जब देश में बलात्कार, यौन हिंसा और उत्पीड़न खुल के हो रहा है तो सेक्स एजुकेशन से कौन सी संस्कृति पर शामत आ जाएगी? क्या युवाओं के इस देश में युवाओं की सुरक्षा के लिए कोई योजना है? क्या हम हमेशा इन्टरनेट को जिम्मेदार मान कर युवाओं की समस्याओ से मुंह मोड़ते रहेंगे?

मैं एक बात और साफ़ कर दूं कि ‘मोलेस्टेशन’ किसी लिंग से सम्बन्ध नहीं रखता बल्कि ये एक घिनौनी सोच है, जो मासूमों को शिकार बनाती है। ये ज़रूरी नहीं कि ‘मोलेस्टर’ कोई आदमी ही हो या औरत ही हो। ये कोई भी हो सकता है बस! ज़रूरत है युवाओं को इसके विरुद्ध खड़े होने की। बिना किसी डर के ऐसे लोगों को समाज के सामने लाने की। पर क्या हम, हमारा समाज, हमारी सोच, हमारी व्यवस्था और कानून इसके लिए तैयार हैं?

 

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