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क्या संसद का ये सत्र दे पाएगा ट्रांसजेंडर समुदाय को उनका हक?

This image is of transgender women that are a part of the census.

The Census of 2014 placed the official count of the transgender community in India at 4.9 lakh, though activists and experts have claimed the actual number is six to seven times higher. (Photo: Sonu Mehta via Getty Images)

सिद्धार्थ भट्ट:

किन्नर, हिजड़ा या ट्रांसजेंडर जितना असहज ये शब्द आमतौर पर लोगों को करते हैं, उससे कहीं ज़्यादा तकलीफ, भेदभाव और उत्पीड़न का सामना उन्हें करना पड़ता है, जिनकी पहचान इन शब्दों से जुड़ी हुई है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में ट्रांसजेंडर लोगों की संख्या करीब 5 लाख है, लेकिन कई ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट्स असल संख्या को सरकारी आंकड़े से कहीं ज़्यादा बताते हैं। भारत में जेंडर इक्वलिटी (लैंगिक समानता) और मानव अधिकारों पर काम कर रहे कई संगठन ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों, उनके साथ होने वाले भेदभाव और पूर्वाग्रहों के खिलाफ एक लम्बे समय से संघर्ष कर रहे हैं। यह संघर्ष क़ानूनी, मानवीय और सामाजिक जागरूकता जैसे कई मोर्चों पर किया जा रहा है।

इस संघर्ष में एक बड़ी सफलता तब मिली जब सन [envoke_twitter_link]2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर (तीसरा लिंग) की मान्यता दी।[/envoke_twitter_link] 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ट्रांसजेंडर लोगों को अपनी इच्छा से अपनी पहचान पुरुष, स्त्री या थर्ड जेंडर के रूप में ज़ाहिर करने का अधिकार दिया।

फरवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, दिसंबर 2014 में राज्यसभा में प्राइवेट मेम्बर्स बिल के रूप में “द राइट्स ऑफ़ ट्रांसजेंडर पर्सन्स बिल-2014” पास किया गया था। इस बिल में ट्रांसजेंडर व्यक्ति की परिभाषा, ऐसे व्यक्ति के रूप में दी गयी जो जन्म के समय उसे दी गयी जेंडर आधारित पहचान को स्वीकार न करता हो। यह अधिकार पूरी तरह से उक्त व्यक्ति के लिए सुरक्षित रखा गया है, जिसमें किसी भी प्रकार के शारीरिक निरिक्षण की बात नहीं कही गयी है। [envoke_twitter_link]ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों की लड़ाई में इस बिल को काफी महत्वपूर्ण माना गया[/envoke_twitter_link], लेकिन राज्यसभा से लोकसभा तक का सफर 1 साल में तय करते-करते इस बिल का स्वरूप काफी हद तक बदल चुका था।       

संसद के इस सत्र में 2014 के बिल के नए प्रारूप  “ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स) बिल-2016” पर चर्चा होनी है लेकिन फिलहाल नोटबंदी पर संसद में जारी गतिरोध को देखते हुए लगता है कि बिल का पेंडिंग स्टेटस और लंबा खिच सकता है। पढ़िए बिल से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां-

1)- इस बिल के अनुसार ट्रांसजेंडर वो व्यक्ति है जो आंशिक रूप से पुरुष या स्त्री (पार्टली मेल या फीमेल) हो या मेल और फीमेल का कॉम्बिनेशन हो या न तो स्त्री हो और न ही पुरुष हो। साथ ही उक्त व्यक्ति की लैंगिक पहचान (जेंडर आइडेंटिटी) उसके जन्म के समय की जेंडर आइडेंटिटी से मेल न खाती हो, इनमें ट्रांस-मैन, ट्रांस-वुमन, पर्सन विद इंटरसेक्स वेरिएशंस (जिनमें स्त्री और पुरुष दोनों के ही जननांग होते हैं) और जेंडर क्वेर्स (जो किसी भी जेंडर आधारित पहचान से खुद को जोड़ कर नहीं देखते) आते हैं।

2)- एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति (ट्रांसपर्सन), बिल में वर्णित अधिकारों के योग्य तभी होगा जब उसके पास उसकी ट्रांसजेंडर पहचान को साबित करने वाला आइडेंटिटी प्रूफ (पहचान पत्र) हो।

3)- इस तरह का पहचान पत्र या सर्टिफिकेट डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट द्वारा एक विशेष कमेटी की सिफारिश पर ज़ारी किया जाएगा। इस कमेटी में एक मेडिकल ऑफिसर, एक सायकोलोजिस्ट या सायकायट्रिस्ट, एक डिस्ट्रिक्ट वेलफेयर ऑफिसर, एक सरकारी ऑफिसर, और एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति शामिल होगा।

4)- यह बिल एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ शिक्षा, रोज़गार, और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं और ज़रूरतों में होने वाले किसी भी तरह के भेदभाव को गैरकानूनी करार देता है।

5)- कुछ ख़ास तरह के अपराध जैसे किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को भीख मांगने पर मजबूर करना, सार्वजनिक जगहों पर उन्हें जगह ना देना, शारीरिक और यौन हिंसा के लिए सजा के तौर पर 2 साल तक का कारावास और जुर्माना तय किया गया है।

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