जब तुम पढ़ाई में अव्वल आयी तो सबने कहा वाह! तुमने अपने पापा का नाम रौशन किया है। जब तुम खेल के मैदान में जीती तो सबने कहा कि तुम बहुत लकी हो, तुम्हारे पापा ने तुम्हें अपनी पसंद का काम करने की आज़ादी दी है। जब तुम्हें एक अच्छी जॉब मिली तो सबने कहा कि आज तुम्हारे पापा की मेहनत सफल हुई। जब तुम अच्छा खाना बनाती हो, सारे रीति-रिवाजों को निभाती हो, बड़ों की इज्ज़त करती हो, छोटों को प्यार करती हो तो सब कहते हैं वाह! माँ ने कितने अच्छे संस्कार दिए हैं।
तुम खुश होती हो ये सोच कर कि तुमने अपने माँ पापा को कितना गर्व महसूस कराया है। और तुम्हारे माँ पापा हर बार आकर तुम्हें ना सिर्फ शाबाशी देते हैं बल्कि सब को गर्व से तुम्हारी सफलता, तुम्हारी मेहनत की बातें बताते हैं और उनके चेहरे की वो खुशी की वजह तुम हो ये जानकर तुम फूली नहीं समाती और खुद से वादा करती हो कि उनकी खुशी को बढ़ाने के लिए तुम और मेहनत करोगी। क्योंकि उनकी खुशी तुम्हारी हिम्मत है और उनकी शाबाशी ही तुम्हारा मेडल।
माँ पापा समझते हैं तुम्हारी ख्वाबों को आखिर उन्होंने ही तो तुम्हारे पंखों को आसमान दिया ताकि तुम ऊंची उड़ानें भर सको। पर माँ पापा की और भी जिम्मेदारिया हैं, कुछ फर्ज़ हैं, कुछ ख़्वाहिशें हैं तुम्हें लेकर जिन्हें पूरा करना है। तुम्हारी जिंदगी के कुछ अहम फैसले, तुम्हारे अच्छे भविष्य के लिए, तुम्हारे सुखी जीवन के लिए। तुम्हारी शादी का फैसला। जिसके सपने ना जाने कब से देखें हैं उन्होंने। कन्यादान का सौभाग्य तुम्हीं तो दोगी उन्हें। एक और खास खुशी जो सिर्फ तुम ही दे सकती हो उन्हें और कोई नहीं।
मांँ पापा ने बचपन से इतनी आजादी दी तुम्हें, सही गलत का फर्क समझने में मदद भी की कई बार, भरोसा किया तुम पर और आज तुम्हारी ज़िदगी का इतना अहम फैसला तुम्हारी शादी का फैसला भी तुम्हारी मर्जी जानकर ही करेंगे ये भरोसा है तुम्हें उनपर। और तुम्हारा भरोसा सच्चा था मांँ पापा ने तुम्हारी पसंद को महत्व दिया और जांच परख कर तुम्हारी शादी एक अच्छे, सभ्य, शिक्षित परिवार में तय कर दी। एक लड़के पर भरोसा किया क्योंकि उसने विश्वास दिलाया कि वो तुम्हें तुम्हारे माँ पापा से ज्यादा प्यार, आजादी, साथ और इज्ज़त भी देगा। और तुम नए रिश्तों के साथ एक नए परिवार का हिस्सा बन गई। इस उम्मीद के साथ कि नयी ज़िम्मेदारियों के साथ ढेर सारी खुशियां तुम्हारे जीवन में आने वाली हैं।
सब ठीक ठाक था तुम खुश थी अपनी शादी में, अपने करियर में, अपने नए घर में। पर कुछ बदला था कुछ ऐसा जो तुम्हें खटका भी था। अब जब तुम करियर में अच्छा करती हो तो लोग कहते हैं तुम कितनी लकी हो इतना सपोर्टिंग पति मिला है। जब तुम अपने इन्क्रीमेंन्ट के लिए ओवर टाइम करती हो तो सब कहते हैं कि तुम्हारा पति कितना अंडरस्टैंडिंग और ओपेन मांइन्डेड है।
यानि तुम्हारी सारी मेहनत की शाबाशी तुम्हारे पति की हो गई। और उसे कोई ऐतराज़ भी नहीं हुआ। करियर में अच्छा करने से लेकर नए घर, गाड़ी, देश-विदेश छुट्टियों में घूमने जाना, बच्चों के कपड़े, पढ़ाई, उनकी परवरिश सब कुछ अच्छा हुआ तो सब तुम्हारे पति की पीठ थपथपाते हैं और अगर कुछ गलत हुआ तो जिम्मेदार तुम। ऐसा क्यों? तुम्हें तो माँ पापा ने बताया था कि तुम्हारा पति और तुम एक गाड़ी के दो पहिए हो और तुम दोनों की जिम्मेदारियां भी बराबर हैं। तो जब जिम्मेदारियों में कोई समझौता नहीं किया गया तो फिर अब ये भेदभाव क्यों?
तुम समझने की कोशिश करती हो और कई बार पूछा भी कभी धीमे से, कभी चीखकर, कभी संयम से कभी रोकर, पर हर बार एक ही जवाब पुरुष के बिना नारी का क्या अस्तित्व? तुम अर्धांगिनी हो, माँ हो, अन्नपूर्णा हो तुम में तो देने का गुण है। तुम क्यों बेमतलब मांग रही हो और वैसे भी ये सब है तो तुम्हारा ही। तुम वाहवाही लूट कर क्या पा लोगी?
पर तब तुमने सिर्फ़ एक सवाल किया ये सारे सवाल सिर्फ मेरे लिए क्यों? क्यों पुरुषों को वाहवाही चाहिए और उन्हें मिलती भी है पर ना ही मुझे मिलती है और ना मैं नहीं चाह सकती। क्यों मेरी सफलता का श्रेय मेरे पति को दिया जाता है और उसकी सफलता का श्रेय उसकी मेहनत को। समाज का ये दोहरापन ये दोगलापन क्यों?
सच ही तो है तुम्हारे और तुम जैसी ना जाने कितनी ही सेल्फ इंडिपेंडेंट लड़कियों को ज़िंदगी में कितनी बार अपनों ने ही हराया है। जिनके लिए वो निःस्वार्थ भाव से पूरी जिंदगी सबकुछ करती है, पर उन्हें वो आकर थैंक्यू भी नहीं बोलते।
पर अब तुमने आवाज़ उठाई है सवाल उठाए हैं तो चुप मत होना। इस बार किसी और के लिए नहीं खुद के लिए लड़ना और जीतना। अगर जीत ना भी पाओ तो हारना मत। बस डटे रहना। क्योंकि तुम्हारी सफलता से आज भी कोई है जो खुश होगा बिना उसमें अपना हक जताए। तुम अपने मांँ पापा की खातिर हिम्मत मत हारना।
नोट : भारत में हर साल 20-49 साल तक की कई महिलाएं आत्महत्या करती हैं। उनमें से कुछ हम और आप जैसी आधुनिक, शिक्षित और काम काजी महिलाएं भी हैं। और यह आंकड़ा 56% तक है और बढ़ता ही जा रहा है। और इन आत्महत्याओं की वजह मानसिक तनाव पाया गया है।
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