उसका हाथ अपने हाथों में लेकर मैंने पूछा – तुम क्यों अबतक बेमतलब की शादी को बचाने की कोशिश कर रही थी?
और उसका जवाब सुनकर मैं हैरान रह गई, उसने कहा कि – यार! जो भी है आज भी एक लड़की “तलाक के लिए पहल” तब तक नहीं ले सकती जबतक की वो हर तरह से अपनी शादी को बचाने की कोशिश में हार ना जाए।
सच हम कितने ही आधुनिक क्यों ना हो जाएं पर कुछ बातें हमें आज भी हजम नहीं होती है और उनमें से एक है लड़कियों का ” पहल करना “। इसे हमारे समाज में गलत माना जाता रहा है। चाहे ये ” पहल ” उनका हक क्यों ना हो, उनकी बेहतरी के लिए क्यों ना हो, उनकी इच्छा क्यों ना हो। पर उन्हें इसका हक नहीं।
एक लड़की की ज़िन्दगी में यूं तो अनगिनत पल आते हैं जब उसे यह एहसास दिलाया जाता है कि “पहल करना” उसकी ज़िदगी की सबसे बड़ी गलती है, पर यकीनन कुछ ऐसे पल भी होते हैं जब वो इसे खुद भी अपनी सबसे बड़ी गलती मान लेती है।
ग्रामीण इलाकों की बात रहने देते हैं शहरों में रहने वाले आप और मुझ जैसे पढे़-लिखे परिवार से ताल्लुक रखने वाली लड़कियों की बात करते हैं। आज भी लड़कियों के लिए करियर की बेस्ट च्वाइस बैंकिंग, टीचिंग या किसी 10-5 के फिक्स टाइम वाले जाॅब को माना जाता है और बार-बार यह ” सलाह” दी जाती है की हमें वही “करना है।” अगर हम “पहल” करते हैं अपनी मर्ज़ी का करियर चुनने के लिए तो हमें उसके बाद पूरी जिंदगी खुद को तैयार रखना होता है ताने सुनने के लिए दूसरी सेफ करियर चुनने वाली जान पहचान वाली लड़कियों से तुलना के लिए। अगर हम अपने करियर में अच्छा प्रदर्शन कर रहे तब तो फिर भी कुछ हद तक हम बच सकते हैं लेकिन अगर कुछ खास नहीं कर पाए तो फिर कई पल ऐसे आएंगे जब लगेगा कि ” पहल” नहीं करनी चाहिए थी।
इसी तरह जब बात ” तलाक” की आती है तो इसकी “पहल” हम लड़कियां कभी नहीं कर सकतीं चाहे हम अपनी शादी में खुश हों या ना हों। पर भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अनुसार शादी संभालने की ज़िम्मेदारी लड़कियों की ज़्यादा होती है। पति की खुशी, दोनों परिवारों की खुशी, सब लड़कियों को ही देखनी होती है उनकी अपनी खुशी बाद में ही आती है। और ये “अच्छी सीख” पीढ़ी दर पीढ़ी औरतें ही औरतों को देती आ रही हैं।
अगर किसी शादीशुदा लड़की ने हिम्मत कर के अपनी खुशियों की खा़तिर “तलाक की पहल” कर भी दी तो ना सिर्फ उसकी परवरिश बल्कि उसकी पढ़ाई और चरित्र तक पर सवाल उठाए जाते हैं और बात यहीं खत्म नहीं होती बार-बार उस लड़की को “एक बार फिर सोच ले” जैसी बातें कही जाती हैं या फिर “समझौता” करने को मजबूर किया जाता है। शायद इसीलिए आज भी हमारे समाज में महिलाएं “तलाक के लिए पहल” बहुत कम संख्या में करती हैं ताकि उन्हें अपनी “पहल” का अफसोस करने को मजबूर ना होना पड़े।
यह एक कड़वी सच्चाई है कि भारत में आज भी पढ़ाई, करियर, शादी, सेक्स, लाइफ स्टाइल, लड़कों से दोस्ती या मनी इंवेस्टमेंट और ऐसी ना जाने कितनी ही बातों के लिए लड़कियों को “पहल” की इजाज़त नहीं है। इसलिए हम में से कई “पहल” करतीं नहीं और जो करतीं हैं उन्हें ना सिर्फ समाज से बल्कि कई बार अपने परिवार से भी लड़ना पड़ता है। यूं कहें बगावत करनी पड़ती है।
अगर हमारा समाज अपनी संकीर्ण मानसिकता में परिवर्तन ला सके तो शायद ही समाज के इस तबके को खुद के सामान्य जीवन के लिए इतनी जद्दोज़हद का सामना करना पड़े। आज हम ज़ोर शोर से जेन्डर इक्वालिटी की बातें करते हैं, महिला सशक्तिकरण की बातें करते हैं पर यकीनन आज भी सिर्फ बातों में ही हम बहुत आगे निकले हैं ज़मीनी स्तर पर आज भी बहुत कुछ करना बाकी है।
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