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“बचपन में फूफाजी ने मेरा यौन शोषण किया लेकिन माँ ने मुझे डांटकर चुप करा दिया”

मैं और मेरी कुछ फ्रेंड्स अक्सर कॉलेज में बचे खाली समय में गप्पे लड़ाने बैठ जाते। कई तरह की बातें होती। कभी हम पुराने गाने और नये गाने पर बहस छेड़ देते तो कभी राजनीतिक मुद्दा केन्द्र में होता। लेकिन उस दिन हमारी सभा बड़ी ही संवेदनशील मुद्दे पर आकर ठहर गई।

अकांक्षा बताने लगी कि कुछ ही दिन पहले कॉलेज से घर जाते वक्त एक साईकिल सवार आदमी ने उसके सीने पर जोर से चोट किया, जब तक उसे कुछ समझ आता तब तक वह बहुत दूर जा चुका था। हम सब ने उसके स्थिति पर संवेदना व्यक्त की और उसे अपनी ओर से कई सारे सलाह देने लगे। फिर क्या था, उसके बाद एक एक कर सबने अपने साथ हुए कई घटनाओं के बारे में बताया। जब सबके किस्से खत्म हो गये तब सबकी निगाहें मेरी तरफ आकर थम गई। मैं सहम गई, मैं चुप थी। याद कर रही थी कौन सी घटना पहले बताऊ? उस अंकल के बारे में बताऊ जिसने चॉकलेट का लालच देकर मेरे गुप्तांगो को छुआ था। या उसके बारे में बताऊ जिसने कमरे में बंद कर अपने गुप्तांगो का प्रदर्शन किया था मेरे सामने। या उस बड़े भईया के बारे में बताऊ जिसने भाई होने की लक्ष्मण रेखा लांघ दी थी। या उस दुकान वाले चाचा की कारनामों का चिट्ठा खोलू जिसने कपड़े का साईज देखने के बहाने मेरे ऊपरी हिस्सों को छूने की कोशिश की पर मैं झटके से पीछे हट गई थी। या उस टीचर का किस्सा सुनाउ जो रोज़ पीठ थपथपाने के बहाने कपड़े में हाथ डालने की कोशिश करता था। आखिर कितनों का चित्रण करूं? जहां गई एक कड़वी याद साथ जुड़ गई लेकिन उनसे पीछा नहीं छूठा।

कुछ ने तो बेटी की उम्र का भी लिहाज नहीं किया। एक घटना जिसने मेरी आत्मा को झकझोर दिया था। जिसके कारण मैं कुछ दिनों तक पत्थर की तरह स्थिर हो गई थी। इन सब हादसों ने उतना चोट नहीं पहुंचाया जितना इस अकेली घटना ने चोटिल किया। मेरे फूफा जी, उम्र में मेरे पापा से भी बड़े हैं। उनकी अपनी संतान नहीं थी, शायद इसीलिए वो जब भी पटना आते तो मुझे और भईया को बहुत पुचकारते। मैं भी सोचने लगी कि फूफा जी मुझे बहुत दुलार करते हैं। मैंने अपना चौदहवां जन्मदिन मनाया ही था। मेरे जन्मदिन के कुछ ही दिन बाद वो डॉक्टर के सिलसिले में पटना आनेवाले थे। मैं उनके आने की खबर सुन कर उछल पड़ी। उस दिन पापा और भईया किसी दूसरे काम में व्यस्त थे तो पापा ने कहा कि मैं तो आपके साथ नहीं जा पाऊंगा। तभी मैं खुशी से कूद पड़ी और सोचने लगी कि “मैं चली जाती हूं और रास्ते में फूफा जी से आइसक्रीम खिलाने के लिए कहूंगी।” पापा से कहा तो उन्होनें भी मना नहीं किया।

शाम का समय था हम रिक्शे पर बैठे थे, और मगन में उनसे बातें कर रही थी। वो देखिए फूफा जी, कभी कहती ये देखिए फूफा जी। जब हम डॉक्टर की क्लिनिक से निकले तब हमने रिक्शा लिया और हम वापस घर आ रहे थे। जब हम सचिवालय वाले रास्ते में अन्दर आये तब वहां अंधेरा था। अंधेरे का फायदा उठाकर उन्होंने मुझे गन्दें तरीके से पकड़ लिया, मुझे बहुत ही अजीब तरीके से चुमने लगे और छूने की कोशिश करने लगे। मेरा शरीर बिल्कुल स्थिर पर गया। मैं पत्थर सी हो गई थी, मेरे मुंह से आवाज़ तक नहीं निकल रही थी। जब हम थोड़ा आगे बढ़े तब स्ट्रीट लाईट की रौशनी मेरे सिर पर पड़ी तब वह इंसान दूर हट गया। मैं घुटने लगी, मैं जब घर पहुंची तब दौड़कर बाथरूम में घुस गई और खूब रोने लगी। उसके बाद मम्मी के पास आकर बैठ गई। उस दिन ऐसा लगा कि सिर्फ वही है जो मुझे इस गंदी दुनिया से बचा सकती है। मुझे महसूस हो रहा था कि मैं उसके पीछे छुप जाऊंगी तो कोई भी गंदी परछाई मेरा पीछा नहीं कर पाएगी।

मैं अगले दिन उस इंसान के जाने के बाद मम्मी के पास गई और उसे सब बता दिया। थोड़ी देर के लिए मम्मी अचंभित रही लेकिन उसके बाद मुझे हीं डांट मिली। कहने लगी बड़ी हो रही हो सबके पास उछल-कूद करना बंद करो। थोड़ी देर बाद वापस आकर बोली अच्छा अब जो हुआ भूल जाओ और आगे से उनके पास मत जाना।

मैंने तो उसे अपना रक्षा कवच समझा था पर उसने तो मिनटों में मुझे गलत साबित कर दिया। मुझे मेरी गलती सुनाकर फरमान जारी कर दिया। मैं आज के मांओं से कहना चाहती हूं- प्लीज़ यदि आपका बच्चा आपके पास किसी भी तरह की शिकायत लेकर आता है तो उसकी स्थिति बिना समझे, उसे कोई फरमान मत सुनाईयेगा और उस इंसान को भी मत छोड़ियेगा जिसने उसे ऐसी कड़वी यादें लेकर जीने पर मजबूर कर दिया। उसका दिल टूट जायेगा और शायद आगे से वो आपको अपने किसी भी बात का साझेदार ना बनाए, क्योंकि जिस वक्त उसे आपकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी तब आपने उसे उसकी नज़रों में गलत साबित कर दिया।

यह घटना मेरे जीवन का सबसे शर्मनाक अनुभव था। क्योंकि इस बार किसी गैर ने नहीं बल्कि अपने ने घिनौनी यादें दी थी। उस दिन अपने और गैर दोनों की परिभाषा मुझे एक ही लग रही थी, दोनों एक ही कठघरे में खड़े दिखाई पड़ रहे थे। उस दिन किशोर कुमार के उस गाने के बोल सही लग रहे थे। ( हमसे मत पूछो कैसे मंदिर टूटा सपनों का औरों की बात नहीं है, ये किस्सा है अपनो का।)

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