16 दिसम्बर 2012, यही वो तारीख थी जिसने सबको हिला कर रख दिया था। दामिनी ने साहस के साथ जिदंगी की जंग लड़ी और हमेशा के लिए सोने से पहले सबको जगा कर चली गई। 4 साल हो गए फिर भी लगता है,अभी कल की ही तो बात है। मेरे लिए महिला सशक्तिकरण, लिंग समानता, घरेलू हिंसा जैसे शब्द समझ से परे थे, ये सब महज किताबी बातें लगती थी। मैं ज़िंदगी वैसे ही जीती थी जैसे हर एक लड़की जीती है। लड़को से ज़्यादा बात नही करो नही तो लोग तुम्हे चरित्रहीन मान लेंगे, हमेशा सलीके से बैठो, ज्यादा ऊँची आवाज में बात न करो और न जाने क्या क्या… सभी तो सही लगता था।
दामिनी रेप केस से मुझे इन बेमतलब के शब्दों का मतलब समझ में आने लगा था वो शब्द आज मेरे लिए महज शब्द नही, मेरे अधिकार बन गए हैं। निर्भया या दामिनी कोई भी नाम दो, वो रहेगी तो लड़की ही ना जो हर जगह अपने अधिकारों के लिए इसलिए नही लड़ती है क्योंकि वो सोचने लगती है कि समाज क्या कहेगा? पर कब तक? मुझे आज 4 सालों में कोई परिवर्तन दिखा ही नही। बस आया है तो हम जैसी घर से बाहर रहने वाली लड़कियों में, जिनके परिवार निर्भया कांड से और ज्यादा डर गए हैं। जब लड़की 7 बजे भी बाहर होती हैं, तो पापा का फोन आना शुरू हो जाता है, बेटा देर हो गयी हॉस्टल जाओ। बेटा हर लड़के से सोच विचार कर बात करना, वरना एसिड अटैक, रेप जैसी दुर्घटनाएं हो सकती हैं और मैं हमेशा यही सोचती हूँ कि अगर भारत में लड़कों की परवरिश लड़कियों की तरह की जाती तो कभी ये कहने की जरूरत ही न पड़ती, उनके अंदर भी सवेंदनशीलता होती।
मैं हमेशा गलतफहमी में रहती थी कि अगर देश के युवा शिक्षित हो जायेंगे तो इस देश की “आधी आबादी” की सुरक्षा के लिए उनसे लड़ना नही पड़ेगा, पर मैं गलत थी। शिक्षा से उनका नैतिक और चारित्रिक विकास हुआ ही नही। आज भी रोज एक दामिनी अपने आप से लड़ती है, हर चौराहे, नुक्कड़, बस स्टैंड, स्कूल, कॉलेज, गाली के कोने में खड़े उन आवारा आशिकों से जो रोज किसी दामिनी को देखकर भद्दी टिप्पणी करते हैं। जो पास से गुजरते ही ऐसे देखते है… जैसे कि आँखों से ही रेप कर देंगे।
आज भी रोज एक दामिनी की शादी इसलिए नही होती क्योंकि वो सुन्दर नही है या उसके घर में इतना दहेज़ नही है कि उसके माँ-बाप उसकी शादी कर सकें। आज भी रोज एक दामिनी जलती है घरेलू उत्पीड़न से,आज भी रोज एक दामिनी आत्महत्या कर लेती है महज इसलिए क्योंकि उसके बॉयफ्रेंड को टाइमपास करने के लिए उससे अच्छी लड़की मिल जाती है। आज भी एक दामिनी पेट में आते ही मर जाती है, आज भी एक दामिनी यदि किसी लड़के का प्रस्ताव ठुकरा देती है तो वो एसिड फेक देता है। आज भी एक दामिनी को ये सिखाया जाता है कि तुम चुप रहो, क्योंकि लड़कियों की इज्जत होती है और लड़कों की नहीं! एक दामिनी मुझ में भी है जो रोज मुझसे कहती है तुम लड़ो… दामिनी मैं तुम्हारा आभार प्रकट करती हूँ… मुझे मुझसे मिलाने के लिए…