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सिसकती झुर्रियाँ

किसी ने सच कहा है कि कुछ बच्चों के लिए माँ-बाप भगवान के भेजे हुए ऐसे नौकर होते हैं जो उन्हें तोहफ़े में मुफ़्त में मिल जाते हैं ?

वक़्त के जिस पहर में आप भरपूर नींद के बाद अपने 12/16 के आलीशान कमरे में चाय की महक के साथ अख़बार की चुस्कियां ले रहे होते हैं उसी वक़्त शायद आपके आस पास कोई बूढ़ी माँ किसी वृद्धाश्रम के 5/7 के खंडहर नुमा कमरे में बार बार दरवाज़े पर कभी ना होने वाली किसी अपने की दस्तक की पहरेदार बनी हुई उनींदी सी सिसक रही होती है…
जिस रोज़ आपका बेटा आपके जूतों में अपना पैर डालकर अपने बड़े होने के घमंड से आपकी छाती को चौड़ा कर रहा होता है, उसी रोज़ कहीं वैसे ही वृद्धाश्रम में एक लाचार बेचारा बाप अपने चेहरे की झुर्रियों में ढूंढ रहा होता है अपनी औलाद को दी हुई हर ख़ुशी, नाप रहा होता है उम्र की सिसकती हुई लंबी थकान को उन नंगे पैरों से कि जिनके जूते आज भी बेटे के पाँव के नाप के लिए सहेज के रख दिए हैं उसी बूढ़े बाप ने कि जिसको बेदखल कर दिया गया…
और जिस वक्त मेरे दोस्तों आपके गिरने से, लड़खड़ाने से पहले आपकी पत्नी, आपका बेटा-बेटी, दोस्त या हमसफ़र थाम लेता है आपको,
उसी वक्त कहीं कोई बूढ़ा बाप, कोई बूढ़ी मां सालों से आँखों में पाले हुए किसी अपने के आने के इंतज़ार में आख़िरकार दम तोड़ देती है ?

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