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मैनपुरी घटना पर एक पुलिसवाले का अखिलेश यादव को खुला खत

“वाया हम भारत के लोग”
आज कल बहुत चिट्ठीयां लिखी जा रही हैं इस देश में। मैं नहीं जानता कि उनका क्या हश्र होता होगा, कितनी जवाबी कारवाई होती होगी। लेकिन आज चुप रहना अच्छा नहीं लगा तो अपनी खाकी वर्दी थोड़े समय के लिए उतारकर एक ‘बेचारे नागरिक’ की हैसियत से आपको अपनी व्यथा लिख रहा हूं।

आपके ही क्षेत्र की घटना है। दो दिन हुए एक स्त्री को सरेआम कुछ लुच्चों के द्वारा छेड़ा गया और जब उसने इसका विरोध किया तो लाठियों से उसको मारा गया, साथ में उसका पति और उसकी एक बच्ची भी थी। उस महिला के सिर से खून निकले ही जा रहे थे और उसको बचाने वाला कोई नहीं था। कुछ देर बाद मुझे अपनी वर्दी दिखाई दी बेबस, लाचार! मानो उसके खून के छींटे मेरे ही वर्दी के ऊपर पड़ रहे हों और मैं आत्मग्लानि से काला पड़ता जा रहा था।

मै सोचता हूं कि अगर मेरे पास इस वर्दी की ताकत ना होती और मै भी देश की बहुसंख्यक आबादी की तरह उस भीड़ में होता और कहीं कुछ ऐसा मेरे ही साथ घटित हो जाता तो! कैसे! कैसे मै करता अपनी भावनाओ पर काबू! क्या इस घटना के बाद मेरी ज़िन्दगी इतनी ही सामान्य रह पाती? क्या मै इस देश के कानून और संस्थाओं और उसमें बैठे लोगों पर भरोसा कर पाता? जब मेरी बीवी को सरेआम पीटते हुए और बेइज़्ज़त करता वीडियो वायरल हो जाता, तो क्या मैं अपनी पत्नी और बच्चे से नज़र मिला पाता? जानते हैं तब मै सबसे नामर्द पति और कमज़ोर पिता साबित हो जाता, इसी समाज में मैं उपहास का पात्र होता और लोग मेरी भावनाओं का मज़ाक उड़ाते। इसके बाद की रात में क्या कभी हम एक दूसरे के सामने की करवटों में हो पाते। नहीं शायद नहीं, सहजता, शांति, स्वाभिमान, आत्मसम्मान सब खत्म हो जाता।

उस छोटी बच्ची का विश्वास कितना टूटा होगा न, जिसके लिए उसके पापा ही ग्रेट खली रहे होंगे। जिसको लगता होगा पापा तो सब बदमाशों को एक बार में ही मार भगायेंगे। आज पिता के रूप में वह कायर, कमज़ोर व मजबूर साबित हुआ न! और वह स्त्री केवल स्त्री होने का दंश कब तक झेलेगी।

माननीय मुख्यमंत्री जी शायद आपने वो वीडियो नहीं देखा होगा पर मैंने देखा है, जब वह शटर पर अपना सिर मार रही थी और चिल्ला-चिल्ला कर अपने इंसाफ का गुहार लगा रही थी। वह कहती जा रही थी कि अगर उसे इंसाफ नहीं मिला तो आत्मदाह कर लेगी! तब लग रहा था कि मानो वह शटर नहीं हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की चौखट है, जहां लोग अगर आत्मदाह नहीं कर पाते तो व्यवस्था खुद ही उसकी जान ले लेती है।

आप हमारे लिए उम्मीद है मुख्यमंत्री महोदय। ये जो युवा जोश है न! आपसे है। आपने बहुत सी सकारात्मक पहल की हैं, अब यहाँ भी आपको अपनी भूमिका तय करनी होगी। वह लोग जहां भी छिपे हैं, उनको दंड दिलाना होगा। ताकि लोगों को सड़कों पर चलने में डर ना लगे। यहाँ तो बुलंदशहर की तरह रात भी न थी और न ही दिल्ली की तरह सुनसान रोड! भरा- पूरा बाजार था और चलती फिरती मुर्दा आबादी। यहाँ तो सब अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं, लेकिन आप इनकी तरह लाश मत बनिए।

आप जानते हैं ये लाशें आजकल तैमूर पर बहस कर रही है और बैंको के सामने खड़ी है, देश को कैशलेस बनाने में लेकिन हमको करैक्टरलेस मत बनने दीजिए आप। यहां मैं करैक्टर को सामान्यतः प्रयोग किए जाने वाले स्त्री चरित्रहीनता के पितृसत्तात्मक खोज से अलग लेकर चल रहा हूं।

कुछ लोग चुप है शायद उनके लिए यह मसालेदार विषय नहीं है। कुछ शायद इसमें मुस्लिम-दलित जैसी उत्प्रेरक चीज़ भी नहीं पा रहे। खैर सबका अपना कंसर्न है। मुझे भी अपनी वर्दी से दाग हटाना है, इन छीटों का। कृपया आप उस महिला की चीख़ सुनिए, नहीं तो ऐसी चीखों से ही हमारी संस्कृति ढह जाएगी एक दिन। इसको बचाइए नहीं तो किस बात की भारत माता की जय और कैसा वन्देमातरम।

जय हिन्द !
एक नागरिक की भूमिका में-
एक इंसान जो पुलिस के नाम से जाना जाता है।

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