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बिहार के एक छोटे से गाँव का एक रोचक किस्सा, भाग-3

अब तक हमने जाना कि दिना भदरी इसलिए मशहूर हुए क्यूंकि गरीब इनको मसीहा के रूप में देखते थे और ये जमींदार से उन्हें बचाते और उनके अत्याचारों के खिलाफ लड़ते थे। इनकी पूजा खास तौर से इस गाँव के ऋषिदेव करते हैं और यहाँ बिताये समय में मैंने किसी और को उनकी पूजा करते हुए नहीं देखा।

अगर आपने दूसरे भाग को पढ़ा है तो मैंने उसमें एक साहब का वर्णन किया था, जिन्होंने दिना भदरी के सम्मलेन में आने को कहा था ताकि उनके बारे में मैं ज़्यादा जान सकूँ। कुछ दिन बीतने के बाद मैं उनके पास गया और वचन को निभाते हुए वो मुझे  एक और टोला में ले गए जिसमे ऋषिदेव भाइयों की संख्या आधिक थी या ये कहूँ कि उस टोले में सिर्फ ऋषिदेव भाई ही थे तो गलत न होगा। शाम के 6 बज रहे थे और उस वक़्त ये तय हुआ कि हम दिना भदरी के दर्शन के लिए जायेंगे।

शाम 6 बजे जब हम दिना भदरी के दर्शन के रास्ते में थे, तो मेरे दोस्त ने बताना शुरू किया कि दिना भदरी सम्मलेन में होता क्या है। दिना भदरी का सम्मलेन तीन महीने चलता है और कलाकारों का एक समूह गाँव के हर टोले में घूम-घूम कर सम्मलेन में नाटक, भजन और तरह-तरह के कहानी पाठ करता है। ये समूह गाने, नाटक के द्वारा लोगों को दिना भदरी के बारे में बताता है।

ये बात ख़तम हुई तो हम उस घर के करीब पहुंचे जो दिना भदरी के स्थान के पास है। धीरे-धीरे मुझे समझ में आया कि उन्होंनेआखिर शाम का समय ही क्यूँ तय किया, खैर वो बात यहाँ बताना ज़रूरी नहीं। जिनके घर गए वो अपने दरवाजे से टॉर्च लेकर आए और एक फूस से बने हुए घर में हमे दिना और भदरी बाबा का दर्शन प्राप्त हुआ।

तीसरा बांस!

सबसे पहले मैंने दिना और भदरी को ठीक से देखा, जिसे लोग दिना कहते हैं वो कद में भदरी से बड़े है और दिना अपना दायाँ हाथ ऐसे कर के खड़े हैं जैसे वो अपने भक्त को कुछ दे रहे हों। इसके पीछे हमारे दोस्त ने कारण बताया, “अगर आप कुछ मांगेंगे तो वो ज़रूर पूरा होगा, इसलिए ये हमेशा इसी मुद्रा में रहते है देने के स्तिथि में।”

मेरी नज़र बाएँ ओर जैसे ही गयी, मुझे ऐसा लगा ये माँ दुर्गा दिना भदरी के स्थल पर? थोड़ी देर सोचने के बाद मैंने अपने साथी से पूछा कि ये कौन तो इन्होने बताया की ये दिना भदरी की माँ हैं, ‘निरसो’! अच्छा तो यह निरसो हैं, जैसा कि आप तस्वीर में देख सकते हैं, इनके चरण के नीचे एक शेर जैसा जानवर है जिसके बदन में कुछ ऐसी चीज़ है जिससे उसका वध किया गया हो, लेकिन माँ निरसो के हाथ में लाठी नहीं है। उनका दायाँ हाथ तो आशीर्वाद के लिए उठा हुआ है। वो आगे बताते हैं कि दिना भदरी के स्थल पर तीसरा बांस जो हमारे टोला में देखा था, यही तो हैं, माँ निरसो।

अब मैं आपको थोड़ा सा याद दिला दूं कि पहले भाग में जब मेरे सीनियर ने मुझे बताया था कि वो यहाँ आए थे तब केवल दो बांस थे और ये बात उस समय मैंने नहीं बताई थी कि उन्होंने सम्मलेन भी देखा था। गौर करने की बात ये है कि वो 2012 में यहाँ आये थे और मैं 2015 में गया। ये बदलाव सिर्फ दो साल पुराना है।

दिना भदरी से सम्बंधित कुछ मतभेद

इस दौरान मैं कई टोला घूमा और हर टोला में कुछ कहानियां, दिना और भदरी के बारे में अलग-अलग हैं। उनके प्रचलन से लेकर उनकी पूजा तक सब में कुछ न कुछ अंतर है।

एक मित्र कहते हैं कि दिना और भदरी 100 से 200 साल पुराने हैं, जिसका वर्णन मैंने दुसरे भाग में किया था। एक मित्र जिन्होंने मुझे दर्शन कराया, उनका कहना है की वो 50 से 100 साल पुराने है और कुछ लोग कहते हैं कि वो 20 से 30 साल पुराने हैं। जिस तरह आपको आश्चर्य हो रहा है, उसी तरह मुझे भी हुआ। खैर आदमी आपने हिसाब से तय करे कि उसे क्या सही लगता है तो वो बेहतर होता है, मैं अपनी कोई राय यहाँ नहीं रखूँगा, मेरी निजी राय मेरे साथ है।

एक मित्र बताते हैं कि दूसरा मतभेद ऋषिदेव साथियों में ये है कि, कहा जाता है कि इनका विवाह तो हुआ था लेकिन ये ब्रह्मचार्य का पालन करते थे और कोई महिला इनके चेहरे के समक्ष खड़ी नही हो सकती। उनकी पूजा सिर्फ पुरुष कर सकते हैं, जबकि एक अन्य मित्र कहते हैं कि नहीं ऐसा कुछ नहीं है, दिना भदरी की पूजा महिला-पुरुष सब कर सकते हैं। यहाँ तक कि हर धर्म के लोग कर सकते हैं।

ज़ाहिर है ये कहानी यहीं ख़त्म नहीं की जा सकती, अभी भी बहुत कुछ जानना बाकी है और दिना और भदरी के बारे और जानकारी मिलते ही आपसे ज़रूर साझा करूँगा।

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