8 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री ने यह ऐलान किया कि उस रात 12:00 बजे से 1000 और 500 के नोट कानूनी तौर पर अमान्य होगें। इस फैसले ने देश 86% करेंसी को रद्दी कर दिया और इसे बैंक में जमा करने को कहकर उतनी ही मुद्रा की नयी करेंसी पाने का आह्वान किया। यह फैसला देश के नागरिकों पर बिजली की तरह गिरा और इस फैसले की आलोचना से बचने के लिए सरकार ने इसे कालेधन और भ्रष्टाचार पर कार्यवाही से जोड़ दिया या जोड़ रही है।
प्रधानमंत्री जी ने देश की 125 करोड़ जनता से 50 दिन मांगे है और कहा है कि देश 50 दिन बाद सोने जैसा चमकेगा। हां सोने से ध्यान आया की भारत की जनता के पास इतना सोना, चांदी, हीरा, जवाहरात है कि यदि सरकार के पास आ जाये तो अर्थव्यस्था जरूर सोने की तरह चमकेगी और देश की अर्थव्यवस्था दुनिया की नंबर-1 अर्थव्यवस्था बन जाएगी।
ध्यान में आता है कि वर्तमान सरकार ने 100 दिन के अंदर विदेशों में जमा 80 लाख करोड़ रुपये का कालाधन वापस लाने को कहा था, लेकिन वह तो आया नही और न ही आ पायेगा। क्यूंकि उस कालेधन को लाने के लिए सन 1976 से प्रयास हो रहा है, सत्ता बदलती गयी लेकिन कालाधन नही आया। ध्यान में आता है कि नोटबंदी से पहले सरकार तमाम मुद्दों पर घिरी थी, चाहें वो मीडिया बैन हो, शहीदों की शहादत हो, OROP (वैन रैंक वैन पेंशन) हो या सर्जिकल स्ट्राइक हो! खैर इसे भी छोड़िये।
अब देश की व्यवस्था समझिये कि यह देश कैसे रोज़ जीता है और रोज़ मरता है-
देश में लगभग 40% आबादी के पास कोई बैंक खाता नहीं है इसलिए वे लोग अपनी गाढ़ी खून-पसीने की कमाई को 500 और 1000 के बड़े नोटों में जमा करके रखते हैं ताकि ज़रूरत के समय उसका इस्तेमाल किया जा सके और हो सकता है वो रकम 2.5 लाख से ऊपर की हो।
देश में नकदी का GDP में हिस्सा 12% है। देश के ज़्यादातर गांव ऐसे है जहां बैंक की एक शाखा भी नहीं है इसलिए उन्हें बैंक सम्बन्धी कार्य के लिए 10-15 km दूर शहर आना पड़ता है तो ऐसे में लोग नकदी घर में ही रखना उचित समझते हैं। देश में शादियां नकदी पर होती हैं, तो फिर काला धन किसके पास है? देश के 1% सबसे अमीर लोगों के पास 50% से भी अधिक की संपत्ति है और सबसे अमीर 10% लोगों के पास करीब 75% संपत्ति है। देश के 50% गरीब लोगों के पास करीब 4% ही संपत्ति है, तो फिर काला धन किसके पास है? देश के वर्तमान सांसदों (केवल लोकसभा) के पास औसतन 14.61 करोड़ रुपये की संपत्ति है यानि कुल 65 अरब रुपये और यह सम्पति बढ़ती ही जा रही है, कैसे? यह संपत्ति सफ़ेद है और आम जनता नही जानती!! तो फिर काला धन कितना है?
काला धन में भी फर्क होता है, एक काला धन मतलब ब्लैक वेल्थ और काला पैसा मतलब ब्लैक मनी यानि 1000, 500 के नोट जो 100-100 के नोट भी हो सकते हैं। तो 1000-500 के जो नोट जनता के पास हैं तो क्या वो काला धन है? काला धन किसके पास है? वो राजनेता और पूंजीपति जिनके पास अरबो-खरबों की सफ़ेद सम्पति है या वे जिनके पास 1000-500 के नोट है? खैर छोड़िये सरकार इसे परिभाषित नही करेगी, ना मानो तो पूछ लेना, पूछोगे? क्या नोटबंदी से काला धन समाप्त हो जायेगा? कालेधन को काले पैसे से जोड़कर सरकार जनता को वेवकूफ बना रही है या नही बना रही है? देश में काला धन (संपत्ति, सोना, चांदी, बेनामी संपत्ति, जमीन-जायदाद, FD, घर-बंगला) कितना है किसी को नही पता और जितना पता है वह सब सफ़ेद है।
मान लो एक आम आदमी जिसके पास 2.5 लाख से ऊपर की नकदी है वहीं दूसरा व्यक्ति जिसके पास करोड़ों की संपत्ति है लेकिन नकदी कम है तो काले धन की गुंजाइश कहां है? खैर छोड़िये क्यूंकि आम आदमी जो ज़िन्दगी भर की कमाई नकदी में इकठ्ठा कर रहा था उसके पास कोई मज़दूरी का हलफनामा नही है। साथ ही कॉर्पोरेट जगत का लाखो-करोड़ों का टैक्स माफ़ कर दिया जाता है, क्यूँ?
देश के जाने-माने अर्थशास्त्री और रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने ही सरकार को यह हिदायत दी थी कि नोटबंदी अर्थव्यवस्था की जड़ो को हिला देगी लेकिन सरकार ने गवर्नर को ही बदल दिया और प्रधानमंत्री मोदी जी ने (जो आजकल संसदीय व्यवस्था भुलाकर, लोकतान्त्रिक देश में राष्टपति शासन प्रणाली के समरूप, डोनाल्ड ट्रम्प या व्लादिमीर पुतिन बनने की कोशिश कर रहे है) यह कदम उठाया और बताया तैयारी पूरी है और 10 महीने से चल रही थी पर 3 महीने पहले तो गवर्नर रघुराम थे जिन्होंने नोटबंदी और विमुद्रीकरण की खिलाफत की थी।
तो सवाल यह है क्या अब सरकार ने RBI जैसे संवैधानिक संस्थान को हड़पना चाहती है? और RBI को भी समझ नही आ रहा कि करना क्या है? कई बार बदले गए नियम से साफ़ पता चलता है कि तैयारी कितनी थी और सलाहकार कौन रहे होंगे। अब जब कतारों में खड़ी जनता यह सवाल करती है कि फैसला सही है लेकिन इम्प्लीमेंट गलत है तो उससे कहा जाता है कि खड़े रहें कतार में देशभक्ति के नाम पर। यानी जनता को चाबुक भी मारो और धमकाओ भी कि चिल्लाना मत और यदि चिल्लाये तो देशद्रोही? सवाल बहुतेरे हैं लेकिन इसके परिणाम खतनाक होने वाले है।
विश्व के चर्चित अर्थशास्त्रियों और संस्थानों ने भारत को चेताया है की देश मंदी की तरफ बढ़ रहा है, जिससे GDP विकास दर गिर सकती है और यदि गिरती है तो परिणाम भीषण होगें। इंफ्रास्ट्रक्चर कम हो सकता है, रोज़गार कम हो सकता है, अपराध बढ़ सकते हैं, गरीबी बढ़ेगी, विदेशी निवेश कम होगा, उत्पादन कम होगा। वहीं सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अराजकता भी बढ़ सकती है। लेकिन सरकार देशभक्ति के नाम पर देश की भोली-भाली, ईमानदार जनता को बेवकूफ बनाये जा रही है।
सरकार जनता के पास यह संदेश पहुंचाने की कोशिश कर रही है कि इस फैसले से काला धन और भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा पर कैसे? सरकार और खुद प्रधानमंत्री जानते है कि इस विमुद्रीकरण से यदि किसी प्रकार से लाभ देश का हो सकता है तो वह तभी संभव है जब देश की जनता कैशलेस इकॉनमी को अपनाले (नहीं तो स्तिथि जस की तस रह जाएगी)। यह असंभव सा प्रतीत होता है, क्यूंकि केवल 40 करोड़ लोग ही इन्टरनेट से जुड़े है। केवल 17 करोड़ लोगों के पास ही स्मार्टफ़ोन है, 74% ही जनता केवल साक्षर है। केवल 2.1 करोड़ क्रेडिट कार्ड और 57 करोड़ डेबिट कार्ड का इस्तेमाल किया जाता है।
इसका मतलब ये है कि देश की अधिकांश जनता (जो कतारों में खड़ी होकर अपने ही पैसे के लिए जान दे रही, इलाज़ नही करवा पा रही है, लाठी खा रही है, बेरोज़गार हो रही है) को इसका कोई सीधा लाभ मिलता नही दिख रहा। सरकार के ऊपर इल्ज़ाम तो अपना पैसा पहले ही सफ़ेद करने का है और चुनाव जीतने के लिए जो भी हो पूरा देश, देशभक्ति और ईमानदारी की खातिर कतारों में यह आस लगाये खड़ा है कि अच्छे दिन आएंगे। फिलहाल तो मंदी को बर्दाश्त करें 6 महीने… देशप्रेम के नाम पर!