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नोटबंदी के 40 दिन और 30 % डिजिटल इंडिया

नोटबंदी हुए आज 40 दिन हो गये हैं, लेकिन अगर हालातों की बात करे तो वो ज़रूर बदले हैं, हां वो कुछ समाचारों में, कुछ टीवी चैनलों में तो कहीं भाषणों में बदले हैं। गाँव का एक आम आदमी, जो सुबह कमा कर शाम को रोटी की उम्मीद रखता है, उसके लिए भी हालत बदले हैं क्योंकि वो अब उतने ही पैसो में काम करने के लिए तैयार है जितना मालिक ने बोला है,  एक किसान अपने बीज खरीदने के लिए बैंक की लाइनो में लगा हुआ है , तो देश में हालात तो बदले हैं।

कालेधन के खिलाफ उठाया गया भारत सरकार का ये कदम क्या वाकई में सही समय और पूरी तैयारी के साथ था, इस पर सवाल उठाना लाजिम है। आज एक ओर सरकार डिजिटल इंडिया की बात तो कर रही है लेकिन क्या भारत की  लगभग 70 प्रतिशत जनता  जो इंटरनेट इस्तेमाल नहीं करती है इसके लिए तैयार है,  शायद नहीं। और यही कारण है कि नोटबंदी के बाद सबसे ज्यादा परेशानी इसी 70 प्रतिशत जनता को उठानी पड़ी जिनका हवाला दे दे कर पार्टियां अपने चुनावी जुमले बनाती है। ये वही आम आदमियों का समूह है जिनको अपना बता कर राजनेता अपनी सरकारे बनाने के दावे करते है।

नोटबंदी के बाद भारत सरकार ने कई ऑनलाइन सेवाएँ शुरू की, लेकिन जिन्होंने हाल ही में बैंक की पासबुक लेकर बैंक जाना सीखा है उनसे हम ऑनलाइन ट्रान्सफर की उम्मीद नहीं कर सकते जिनकी एक बड़ी संख्या है। आज जिओ 4G भले ही गाँव में प्रचलित हो गया हो लेकिन उसका उपयोग किस रूप में हो रहा है ये एक सवाल है।

इन तर्कों का कतई ये मतलब नहीं है कि हम  डिजिटल इंडिया के खिलाफ हैं लेकिन उसके लिए अभी जनता पूरी तरह तैयार नहीं है। और सरकार की ये ज़िम्मेदारी बनती है कि अगर वो इतना कठोर फैसला लेती है तो उसके लिए जनता को पूरी तैयार करे। परन्तु नोटबंदी में ना तो सरकार की तैयारी थी ना ही जनता को उस काबिल बनाया गया कि वो इस बदलाव का स्वागत कर सके।

आज जिस तरह से सरकार ऑनलाइन शॉपिंग और कैशलेस पर इतना जोर दे रही है क्या ये सब भारत के उन सुदूर इलाकों में संभव है जहां बिजली तक ठीक से नही पहुंची है , मोबाइल नेटवर्क तो दूर की बात है। चाहे बिजली की कमी हो या मोबाईल नेटवर्क की बड़े शहरों  को छोड़ दें तो कमोबेश हालात एक जैसे ही हैं, जो की अच्छे नहीं हैं। ये हालत हमे वास्तविकता से अवगत कराते हैं कि हम डिजिटल इंडिया के लिए कितने तैयार हैं। वर्तमान में क्या 70% जनता को अनदेखा कर सिर्फ 30% भारत को डिजिटल इंडिया बनाना ही सरकार का उदेश्य है , ये साफ़ होना ज़रुरी है।

अपने देश को एक भ्रष्टाचार मुक्त विकसित देश बनते हुए देखना हर नागरिक का सपना होता है लेकिन इसके साथ उसकी कुछ उम्मीदे भी होती है। और भारत का मतदात आज ऐसे ही एक दोराहे पर खड़ा है जहां एक ओर वो सरकार के फैसले का साथ तो दे रहा है लेकिन इसके परिणामों और वर्तमान हालत को देखकर उसे अपने वोट की ताक़त पर संशय सा हो रहा है जो एक लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इसलिए बहुत ज़रुरी है कि सरकार फ़िल्मी जुमलो को त्याग कर इस मुद्दे को गंभीरता से ले ताकि जनता का विश्वास और सपना दोनों बना रहे और सही मायने में भारत डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़े।

 

 

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