विकास की ओर तेज़ी से अग्रसर भारत को चाहिए तेज़ रफ्तार और साथ ही काले धन से निजात, जो कि अर्थव्यवस्था के समानांतर पूरे देश में फैला हुआ है। विमुद्रीकरण के तहत 500 और 1000 के नोट बाज़ार से वापस लेते हुए सरकार ने कालाधन, आतंकवाद व जाली नोटों जैसी इकाइयों से ही छुटकारा दिलाने की बात कही। इसके बाद रातों-रात पूरे देश की अर्थव्यवस्था से करीब 86 प्रतिशत कैश एक झटके में वापस ले लिया गया और साथ में कुछ नियमों के तहत पुराने नोट बदलने के उपाय सुझाए गए। यकायक लिए गए इस फैसले से एक तरफ तो कालाधन रखने वाले उन तमाम लोगों पर पहाड़ सा गिर गया मगर वहीं आम जनता भी सदमे में आ गई।
नोटबंदी के कुछ एक दिन बाद एक तरफ पूरे भारत में बैंकों के बाहर आम लोगों की मानो रैली सी लग गई तो वहीं दूसरी तरफ दिल्ली जैसे कई बड़े शहरों में सोना व्यापारियों की दुकानों पर धन्ना सेठों ने पुराने नोटों से सोना खरीदा। फिर जैसे-जैसे दिन बीतते रहें अफवाहों का बाजार और तेजी से गर्म होता गया। कभी सुनने में आया कि 2000 के नए नोटों में चिप लगा है, तो कभी नोटों के रंग उड़ने की अफवाह भी उड़ाई गयी।
अब हम बात थोड़ा भूतकाल की कर ले भारत में यह पहली दफा नहीं है जब नोटों का विमुद्रीकरण किया गया हो। इससे पहले सन 1946 में 500 ,1000, 10,000 के नोटों को वापस लिया गया था और दूसरी बार जनता सरकार द्वारा 16 जनवरी 1978 में 1000, 5000, और 10000 के नोटों का एक बार फिर से विमुद्रीकरण किया गया।
आज इस फैसले को एक महीने से ज़्यादा समय होने के बावजूद अधिकांश जगहों पर लंबी-लंबी कतारें देखी जा सकती हैं। बावजूद इसके जनता, सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रही है और प्रधानमंत्री के बयान के अनुसार 50 दिन पूरे होने तक स्थिति में सुधार होने का इंतज़ार कर रही है। हालात को देखते हुए आरबीआई ने गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता मे एक मीटिंग बुलाई जिसमें स्थिति को देखते हुए ब्याज दरों पर चर्चा की गई। आरबीआइ गवर्नर के अनुसार विमुद्रीकरण के बाद हालात कुछ चुनौतीपूर्ण होते दिखे, जिसकी वजह से उन्होंने रेपो रेट में कोई कमी तो नहीं की, हां विकास दर के पूर्वानुमान को 7.6 से घटाकर 7.1 कर दिया जिससे स्थिति और भयावह हो गई।
नोटबंदी के बाद एक बड़ा ज्वलनशील मुद्दा तलाश रही उन तमाम विपक्षी पार्टियों को एकजुट होने का फिर से मौका मिल गया। संसद से सड़क तक हर जगह कुछ विपक्षी दलों ने सरकार के फैसले का विरोध किया तो कुछ ने इनके लागू करने के तरीके पर सवाल उठाया। इस तमाम उठा-पटक के बीच सभी सरकारी एजेंसियां पूरे जोर-शोर से छापे मार रही हैं। इन छापों में करोड़ों के अवैध सोना और कैश जब्त किया जा रहा है, जिसका एक बड़ा हिस्सा मार्केट में आए नए नोटों का है, जो कि एक बार फिर से विपक्ष की बातों पर सोचने को मजबूर करता है कि आखिर बैंकों से नियमानुसार पैसे निकलवाने के बावजूद इतनी बड़ी रकम में नए नोट आए कहां से ?
बहरहाल, एक तरीके से आर्थिक मंदी से जूझ रहे देश को इंतजार है कि कब नोट बंदी के 50 दिन पूरे होंगे और कब लोग अपनी पुरानी ज़िंदगी की तरह अपने ही पैसे को आसानी से हासिल कर सकेंगे।