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मोदी के मौके पर नीतीश के चौके से सीखे विपक्ष

एक तरफ जहां ठंड ने सबके हाथ पैर जमा दिये हैं, तो वही दूसरी तरफ संसद में विपक्ष ने ऐसे माहौल में आग लगाई है, कि जिससे सरकार पर तो कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है। इसके विपरीत विपक्ष अपने ही लगाई इस आग में अब जनता की नजरों में मोम की तरह पिघलने लगा है। शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले यह तय था कि विपक्ष, सरकार पर तीख़े हमले ज़रूर करेगा। पर अभी जो संसद में चल रहा है वो विपक्ष को देश के सामने इधर उधर दौड़ते बिना लगाम के घोड़े की तरह पेश कर रहा है।

सत्र शुरू होने से पहले विपक्ष के कुछ मुद्दे तय भी थे और अनुमान था कि वो सर्जिकल स्ट्राइक, भोपाल जेल ब्रेक और एनकाउंटर तथा विमुद्रिकरण पर सरकार को बहस के लिए आमंत्रित करेगी। पर नोटबंदी की आग ने बाकी सारे मुद्दे को जलाकर राख में बदल दिया और विपक्ष बिना किसी सेनापति की सेना की तरह इधर उधर हमले करने लगा, पर सटीक नहीं! बाकी भोपाल कांड से लेकर पाकिस्तान काण्ड तक के मामलों को माचिस जैसा जला कर छोड़ दिया गया।

ज़ाहिर है कि दिक्कतों और परेशानियों से जनता जूझ रही है, पर काले धन के खिलाफ डट के खड़ी है और ये सबके लिये चुनौती है। पर चुनौती हमेशा अपने साथ एक अवसर भी लेकर आती है और समझदार वो होता जो चुनौती के साथ अवसर को भी तुरंत भाप ले और उसका लाभ उठाये। पूरे एक महीने हो गये विमुद्रिकरण यानि नोटबंदी को, स्तिथि जरूर कुछ हद तक काबू में आई है, पर प्रधानमंत्री जी के अनुमान के मुताबिक तो बिलकुल भी नहीं।

मोदी जी ने भ्रष्टाचार, काला धन, और आतंकी हमलों से बचने के लिए जो नोटबंदी का फैसला लिया था वो अब कैशलेस की ओर अग्रसर हो गया है। मोदी जी कह रहे हैं कि देश अब कैशलेश होगा, यानी सभी लोग अब प्लास्टिक के पैसों का इस्तेमाल करेंगे। पर ये मोदी जी के भाषण जितना आसान काम नहीं है। अब जनता के पास कोई विकल्प नहीं है या तो लाइन में खड़े रहे या फिर प्लास्टिक के पैसे का इस्तेमाल करे जो कि एक आम आदमी (मज़दूर) के लिये कहीं से भी आसान नहीं है। ये कैशलेस देश की अर्थव्यवस्था को कितने ऊपर ले जायेगा ये तो नहीं पता, पर सरकार ज़रूर इससे नोटबंदी की (लोगो को जल्द सुविधा मुहैया कराने की) नाकामी को इस कैशलेश की आड़ में छुपा रही है।

विमुद्रिकरण सिर्फ सरकार के लिए ही एक बड़ा अवसर नहीं है, बल्कि विपक्ष के लिए भी एक बार फिर से जीवंत होने का मौका है। यह मौका एक सकारात्मक राजनीती का है। यह मौका सरकार के विरोध करने के बजाय उसका एक हद तक समर्थन करके उसका श्रेय लेने का है। यह समय कतार में खड़ी जनता के लिए कुछ करने का है, और उसकी सहानुभूति बटोरने का है। यह समय है राजनीतिक इनोवेशन का… और अगर इस बात को किसी विपक्षी नेता ने बखूबी समझा है, तो वो है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। लेकिन जो पार्टी इसका भरपूर लाभ उठा सकती थी, वो संसद के भीतर कबड्डी खेलने में व्यस्त है, पर एक भी पॉइंट नहीं जुटा पा रही है।

एक महीना पहले प्रधानमंत्री ने नोटबंदी को देश की जनता का भरपूर समर्थन मिला है और गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान के निकाय चुनाव में जनता के मूड का भी पता लग गया है। लेकिन विपक्ष मतदाता के इस रुख को समझने में लगातार असफल हो रहा है, कैशलेस की ओर देश को ले जाने की नींव कांग्रेस के शासन में ही रखी गई थी। नैशनल पेमेंट कॉरपरेशन ऑफ इण्डिया 2008 में बना और 2009 में काम करना शुरू कर दिया था। जिस कैशलेश इण्डिया का आधार विपक्ष के कार्यकाल में हुआ था, जिसका इंफ्रास्ट्रक्चर उसने मजबूत किया था। वो चाहती तो इस चीज को देश को समझा के इसका इन्फ्रास्टक्चर तैयार करने का श्रेय तो सरकार से ले ही सकती थी, पर अफ़सोस जो बात युवा कहे जाने वाले राहुल गांधी को समझना चाहिए था उसे नीतीश कुमार ने समझा।

ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार जितना समय से सीख रहे हैं और बदल रहे हैं, राहुल गांधी उससे काफी पीछे हैं। कुल मिलाकर यह समय बिलकुल अलग और साहसिक राजनीति करने का है जो कि बस नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार और कुछ हद तक नवीन पटनायक करने में सफल रहे हैं।

अब विपक्ष शायद इस सोच में है कि संसद में हल्ला हंगामा मचाने से सरकार को दबाव में ले आएगी, तो वो मुमकिन दिख नहीं रहा है। कांग्रेस पहली बार इतनी बैकफुट पर है कि शायद अपने किये कार्यो का श्रेय लेने में भी तेल निकाल रही है। अब एक बात विपक्ष सहित सबको समझ लेना चाहिए कि नोटबंदी का फैसला बदल नहीं सकता, तो जितनी जल्दी हो अपना विकल्प ढूढ़ने में ही भलाई है, और जितनी जल्दी हो इस वास्तविकता को स्वीकार कर ले, क्योकि देश इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट की मोड में आगे बढ़ चूका है। शायद यह अब मज़बूरी ही हो, पर यही सच है।

सरकार अब जितनी जल्दी से उन लोगो को बैंकिंग सेवाएं से जोड़े जो अभी तक इस दायरे से बाहर हैं, उन्हें शामिल करना सरकार पहली प्राथमिक ज़िमेदारी होगी। युवाओं से अपील है कि वो रोज दस लोगो को ऑनलाइन पेमेंट करना सिखाये, तमाम सियासी दलों के पास मौका हैं कि वो आम लोगों के लिए काम करे और इसका पूरा फायदा उठाये तथा जनहित में काम करे।

अब देखना ये है कि कौन कितना लाभ उठता है??!!!

 

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