जयललिता का जन्म 24 फरवरी 1948 को हुआ था, तब उनका नाम रखा गया ‘कोमलावल्ली’। एक साल की होने पर उन्हें उनका वर्तमान नाम मिला। [envoke_twitter_link]जयललिता एक प्रतिभाशाली भरतनाट्यम डांसर थी[/envoke_twitter_link] और केवल 3 साल की उम्र से ही उन्होंने भरतनाट्यम सीखना शुरू कर दिया था। अपनी माँ के दबाव डालने पर केवल 15 साल की उम्र में जयललिता ने अपनी पहली कन्नड़ फिल्म ‘चिन्नडा गोम्बे’ की। इस फिल्म के बाद जयललिता दक्षिण भारतीय सिनेमा का एक जाना-पहचाना चेहरा बन चुकी थी। [envoke_twitter_link]जयललिता ने अपनी पहली तमिल फिल्म ‘वेन्निरा अदाई’ 16 साल की उम्र में की थी।[/envoke_twitter_link] इस फिल्म को एडल्ट फिल्म का सर्टिफिकेट दिया गया, जिस कारण वो खुद इसे थिएटर में जाकर नहीं देख पाई थी।
जयललिता के क्लासिकल डांसर से फिल्म स्टार बनने और फिल्मों से राजनीति में आने का सफ़र अपने आप में एक फिल्म की कहानी से कम नहीं है। जयललिता ने अपने फ़िल्मी करियर में 100 से भी ज़्यादा फ़िल्में की और तमिल, तेलगु और कन्नड़ सिनेमा में एक सशक्त अभिनेत्री की पहचान बनाई। 1977 से 1987 के बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे प्रसिद्ध तमिल एक्टर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर एम.जी. रामचंद्रन जिन्हें एम.जी.आर. के नाम से भी जाता है, के साथ जयललिता ने 28 फिल्मों में काम किया। यह जयललिता के जीवन में एक बड़े बदलाव की शुरुवात थी, 1981 में एम.जी.आर. ने जयललिता को उनकी पार्टी AIADMK का सदस्य बनाने का न्योता दिया। यही जयललिता के राजनीतिक जीवन की शुरुआत थी, 1982 में AIADMK की सदस्य बनी और फिर उन्होंने यहाँ से पीछे मुड़कर नहीं देखा।
जयललिता के पार्टी में बढ़ते औहदे और एम.जी.आर. से उनकी नजदीकी, पार्टी के अन्य सीनियर सदस्यों को रास नहीं आ रही थी और उनको रोकने के लिए कई प्रयास भी किये गए। इसके बावजूद जयललिता 1984 में राज्यसभा की सदस्य बनी। इसी साल एम.जी.आर. के किडनी खराब हो जाने के बाद जयललिता ने AIADMK को 1984 के विधानसभा चुनावों में जीत दिलवाने में अहम भूमिका निभाई, जिसके बाद एम.जी.आर. ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी बार शपथ ली। 1987 में एम.जी.आर. की मृत्यु के बाद उनके राजनीतिक उत्तराधिकार के मुद्दे पर AIADMK दो हिस्सों में विभाजित हो गयी। इसका एक हिस्सा एम.जी.आर. की पत्नी जानकी रामचंद्रन संभाल रही थी और दूसरे की नेता बनी जयललिता। एम.जी.आर. की मृत्यु के बाद जानकी रामचंद्रन तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी, लेकिन वो सत्ता में एक महीने तक भी नहीं रह पाई जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने आर्टिकल 356 का इस्तेमाल कर सरकार को बर्खास्त कर दिया।
इसके बाद के विधानसभा चुनावों में जानकी रामचंद्रन के नेतृत्व वाली AIADMK की हार हुई, जानकी ने राजनीती से संन्यास ले लिया और AIADMK के दो विभाजित हिस्से वापस एक हो गए और जयललिता तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष की नेता बनी। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद AIADMK ने कांग्रेस के साथ मिलकर विधान सभा चुनावों में हिस्सा लिया, जिसमे AIADMK को भारी सफलता मिली और जयललिता ने पहली बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की।
जयललिता अपने पहले कार्यकाल में अपनी धुर विरोधी पार्टी DMK के खिलाफ कड़े क़दमों और आय से अधिक संपत्ति और भ्रष्टाचार जैसे आरोपों से घिरी रही। 1995 में अपने दत्तक पुत्र की आलिशान शादी में हुए खर्च और इस शादी के गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल होने को लेकर भी जयललिता पर गंभीर आरोप लगे। श्रीलंका में अलग तमिल राज्य की मांग कर रहे LTTE के विरोधी रुख और लगातार भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते 1996 के विधानसभा चुनावों में जयललिता को हार का सामना करना पड़ा। DMK और AIADMK के बीच अगले तीन विधानसभा चुनावो में सत्ता के बदलने का ये खेल जारी रहा और मई 2016 में जयललिता छठी बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनी।
[envoke_twitter_link]भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर जयललिता को एक लम्बी क़ानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी थी।[/envoke_twitter_link] 1996 में DMK के सत्ता में आते ही दिसंबर में भ्रष्टाचार के एक मामले में उन्हें 30 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में ले लिया गया था, इस मामले में सन 2000 में हाई कोर्ट ने निचली अदालत के इस फैसले पर रोक लगा दी थी। 1996 में ही जनता दल के नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा मुख्यमंत्री कार्यकाल में करीब 66 करोड़ की संपत्ति जमा करने के उन पर आरोप लगे जिसके चलते 2014 में बैंगलोर की विशेष अदालत ने उन्हें 4 साल की सजा सुनाई। 2015 में इस मामले पर भी बैंगलोर हाई कोर्ट की एक विशेष बेंच ने उन पर से आरोप वापस ले लिए।
[envoke_twitter_link]जयललिता के व्यक्तित्व के आम जनता पर प्रभाव को नाकारा नहीं जा सकता।[/envoke_twitter_link] अगर कहा जाए कि वो वर्तमान राजनीति के उन चुनिन्दा नेताओं में से थी जिन्हें जनता प्रेम करती थी तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा। चाहे उनका फ़िल्मी जीवन हो या राजनीतिक, उन्होंने कड़े फैसले लेने से कभी गुरेज नहीं किया। [envoke_twitter_link]दक्षिण भारतीय सिनेमा की यह आयरन लेडी राजनीति में भी एक मजबूत व्यक्तित्व बन कर उभरी।[/envoke_twitter_link] उन्हें राजनीति में लाने का और उनकी सफलता का क्रेडिट आमतौर पर एम.जी.आर. को दिया जाता है, लेकिन बिना मानसिक मजबूती और राजनीतिक सूझ-बुझ के इतना लम्बा और सफल राजनीतिक करियर संभव नहीं है।