हमारा देश भारत एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक देश है। यहां के हर नागरिक को अपने धर्म को मानने और उसके प्रचार-प्रसार का पूरा हक है बिना किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाए हुए। ये हर भारतीय का जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इससे बखूबी वाकिफ़ भी हैं।
हम अक्सर ही ऐसी घटनाओं के बारे में पढ़ते रहते हैं कि कुछ धर्मों के तथाकथित रखवाले कभी किसी जरूरतमंद को पैसों का लालच देकर तो कभी बल या छल का प्रयोग कर उनका धर्म परिवर्तन करवाते हैं। ये परंपरा पता नहीं कब से चली आ रही है।
मैं बचपन से ही बहुत धार्मिक नहीं रही हूं। पूजा-पाठ, व्रत-उपवास कभी मन किया तो कर लिया। कभी-कभी तो बस रोली का टीका लगाने के लिए नहा-धोकर घर में स्थापित किए मंदिर में प्रणाम कर लेती हूँ। मुझे हमेशा से ही मंदिर, ईदगाह, गुरुद्वारे, चर्च हर जगह जाना अच्छा लगता है। और खुशनसीबी से मुझे दोस्त भी ऐसी सोच वाले ही मिले हैं।
कभी धर्मपरिवर्तन जैसी बातों को इतनी गंभीरता से नहीं लिया था। पर हाल ही में मुझे इस तरह की परिस्थिति से दो चार होना पड़ा और यकीनन यह बहुत ही अजीब सी बात थी मेरे लिए।
मैं अपने परिवार के साथ बिहार की राजधानी पटना में एक अपार्टमेंट में रहती हूँ। हमारे इस अपार्टमेंट में सिर्फ तीन परिवार ही हिंदू धर्म के अनुयायी हैं बाकी सारे के सारे ईसाई।मैं बड़ी खुश हुई थी यह बात जान कर क्योंकि मुझे लगा कि अब जाकर मैं क्रिसमस का भरपूर आनंद ले पाऊंगी अपने ईसाई पड़ोसियों के साथ। पर धीरे-धीरे मुझे पता चला कि ये सब हिंदू धर्म में तथाकथित ‘छोटी जात’ माने जाने वाले वो लोग हैं जो हर रोज़ की जात-पात को लेकर होने वाले भेदभाव से तंग आकर या यूं कहें कि बचने के लिए धर्मपरिवर्तन कर चुके हैं।
आज की तारीख में ईसाई धर्म के अनुयायियों की तरह बाइबल पाठ करना, प्रार्थना सभाओं में भाग लेना इनकी दिनचर्या में शामिल है। साथ ही इनके बच्चे मिशनरी की स्कूलों में अच्छी शिक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं।
मुझे इन बातों से कोई परेशानी नहीं हुई बस उनके धर्मपरिवर्तन करने की वजह परेशान कर गई। क्या ये वजह जायज़ है? और इसमें अच्छा क्या है? क्या किसी ने उन्हें ये तो नहीं कहा कि ऐसा करने पर उनके बच्चों को ज्यादा अच्छी शिक्षा मिलेगी? या फिर उन्हें कोई और वजह या लालच दी गयी हो? क्या ये धर्मपरिवर्तन अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय के लोगों के लिए अच्छी खबर है कि उनके समुदाय के लोगों की संख्या में इज़ाफा हो रहा है या फिर बहुसंख्यक हिंदू समाज के रक्षकों के मुंह पर धर्म के नाम पर किए जाने वाले भेद भाव की वजह से पड़ रहा एक करारा तमाचा!
ईक्कीसवीं सदी में होकर भी अगर हमारे देश में धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर भेदभाव हो सकता है तो फिर शायद यह धर्मपरिवर्तन की वजह भी काफी ठोस और जायज ही है।
वजह और तरीका निःसंदेह गलत है। पर हम किसी की भी निजी पसंद, निर्णय और जिन्दगी में दखल नहीं दे सकते। पर एक कदम बढ़ा सकते हैं परिवर्तन की ओर ताकि फिर कोई धर्म और जाति के नाम पर होने वाले भेदभाव से बचने के लिए ये तरीका ना निकाले।