आज बाबा साहेब अम्बेडकर का परिनिर्वाण दिवस है। भारत में किसी व्यक्ति के महत्व का अंदाज़ा लगाना एकदम आसान है, थोड़ा सा अलग हटकर सोचना होगा और आप समझ सकेंगे कि भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण लोग कौन हुए हैं।
एक छुपा हुआ सूत्र है भारत के महापुरुषों को पहचानने का, जिस किसी व्यक्ति के जन्मदिवस, पुण्यतिथि, या कोई अन्य दिवस को किसी अन्य त्यौहार, उत्सव या दंगा फसाद में छुपा दिया या बदल दिया गया है उस दिवस या उस महापुरुष को आप भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण मान सकते हैं।
उदाहरण के लिए बुद्ध को लेते हैं, उनके द्वारा पांच शिष्यों को शिक्षा देने की शुरुआत जिस दिन को हुई उसे वेदान्तियों ने गुरुपूर्णिमा की तरह चुरा लिया, अशोक द्वारा स्थापित धम्म विजया दशमी को वेदान्तियों ने दशहरा बना दिया, महावीर जैन श्रमण की ज्ञान प्राप्ति के दिवस को दिवाली बना दिया गया। बुद्ध का महत्व तो इस बात से भी समझिये कि उन्हें स्वयं ही विष्णु का अवतार बना दिया गया।
आगे यही खेल कबीर और रविदास के साथ चल रहा है, रविदास को पिछले जन्म का ब्राह्मण बताया जा रहा है। कहानी है कि रविदास ने सीना चीरकर जनेऊ दिखाई थी, ये कहानी बताती है कि पोंगा पंडितों को उन्हें रिजेक्ट करना मुश्किल हो रहा था, इसलिए उन्हें ब्राह्मण बनाकर अपने पाले में घसीट रहे हैं। कबीर को भी विधवा ब्राह्मणी का पुत्र बताया गया है और उन्हें मोर मुकुट कंठी माला पहनाकर वैष्णव बताया गया है। जबकि स्वयं कबीर की शिक्षाएं विष्णु वैष्णव इत्यादि को कोई मूल्य नहीं देती।
इस दृष्टि से अब अम्बेडकर के साथ हो रहे खेल को देखिये। उनके परिनिर्वाण दिवस को ओझल बनाने के लिए आज 6 दिसंबर के दिन उन्हीं सनातन षड्यंत्र के वाहकों ने बाबरी मस्जिद गिराकर देश में सबसे बड़ा दंगा फैलाया। ये तय करने का प्रयास हुआ कि दलित और मुसलमान दोनों ही अन्य पिछड़ों और गरीबों के साथ भाईचारा न बना लें। दलित और मुस्लिम मिलकर इस देश को बदल सकते हैं इसलिए शोषक धर्मों के ठेकेदारों के लिए इन्हें आपस में लड़ाये रखना जरूरी है। इसीलिये हिन्दू मुस्लिम के बीच लड़ाई पैदा करने के लिए आज 6 दिसम्बर के दिन बाबरी मस्जिद काण्ड किया गया।
इससे ज़ाहिर होता है कि न सिर्फ अम्बेडकर बल्कि दलित-मुस्लिम या हिन्दू-मुस्लिम एकता कितनी महत्वपूर्ण चीज है। हिन्दू-मुस्लिम और दलित-मुस्लिम एक साथ आ जाएं तो ये देश बदल सकता है। लेकिन धार्मिक दंगाई गुंडे ये नहीं होने देना चाहते। आज के दिन इन बातों पर विचार कीजिये और मित्रों परिवार आदि से चर्चा कीजिये। अम्बेडकर जैसे प्रज्ञा पुरुषों को इसी तरह आदरांजलि दी जा सकती है।