स्वदेश फिल्म में जब मोहन बाबू के बदौलत गांव में पहली बार बूढ़ी अम्मा के चेहरे पर बल्ब की रौशनी चमकती है, तो उन झुर्रियों से झांकती खुशी सिहरन दे जाती है। लेकिन असल ज़िंदगी में मोहन बाबू बिरले हुआ करते हैं लेकिन रौशनी के इंतज़ार में झुर्रियों में तब्दील होती उम्रें बहुत हुआ करती हैं। बिहार के जहानाबाद ज़िले के एक गांव की रिपोर्ट है, बिजली नहीं पहुंची है। हम कैशलेस होने की बाते कर रहे हैं, ऑनलाइन ट्रांजैक्शन कर रहे हैं, हम डिजिटल इंडिया बन रहे हैं, लेकिन यहां जद्दोजहद रौशनी आए तो लाईट जलाएं के स्तर पर ही है। हम-आप और मोबाइल, लैपटॉप पर ये पढ़ रहा कोई भी इंसान,हम सबके लिए बिजली एक बेसिक नेसिसिटी है लेकिन इस गांव के लिए सूरज की रौशनी ही अभी तक लग्ज़री है। वीडियो वॉलेन्टियर्स की रिपोर्ट है, देखिए।
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