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रिटायरमेंट के पहले भी और उसके बाद भी

अब कोई रिटायर नहीं होता। पहले ट्रक के टायर रिटायर होते थे और उन पर दोबारा रबर चढ़ाकर रोड पर उतार दिया जाता था। [envoke_twitter_link]बीमा कम्‍पनियों की तरह हो गयी है नौकरी, रिटायरमेंट के पहले भी और रिटायरमेंट के बाद भी।[/envoke_twitter_link] जिनको कर्मचारियों का खून पीने का अधिकार रिटायरमेंट के पहले था, उनको रिटायरमेंट के बाद भी मिलता जा रहा है। नई भर्तियां बंद हो गई हैं, पुरानी भर्तियों को रिचार्ज किया जा रहा है।

दादाजी 60 साल के दस पहले ही हो चुके हैं। वे अभी तक रिटायर नहीं हुए हैं। अभी तो उनके रिटायरमेंट की तारीख भी तय नहीं है। जिस कार्यालय में कार्य करते थे, कार्यालय के अधिकारियों और कर्मचारियों का कहना है-आपसे योग्‍य व्‍यक्ति कहां मि‍लेगा। नये बच्‍चों में इतनी अकल कहां? आप जैसा अनुभव कहां, उनका तो अभी आपके जितना अध्‍ययन भी नहीं है। जब से दादाजी 60 साल के हुए हैं, उन्‍होंने जिम जाना शुरू कर दिया है। सुबह उठकर जागिंग के लिए भी जाते हैं। [envoke_twitter_link]सुबह जूस और शाम को दूध और दिन में कर्मचारियों का खून अवश्‍य पीते हैं।[/envoke_twitter_link] तली-गली चीजें और मिठाई छोड़ रखी है। उनका मानना है कि इससे चर्बी बढ़ती है। सरकारी आदमी की चर्बी रिटायरमेंट के बाद कम हो जाती है, लेकिन उसके लिए रिटायर होना ज़रूरी है।

सरकारी बसों में सरकारी बुड्ढे नजर आते हैं। युवा बसों में नहीं दिखाई देते। वे कॉम्‍पटीशन की तैयारी में जुटे हैं। परीक्षा पास करते हैं, उनका नम्‍बर नहीं आता। जब सरकारी बुड्ढे जीवन से रिटायर हो जाएंगे तब उनका नम्‍बर आएगा। ऐसा सभी युवाओं को ज्‍योतिष झम्‍मन ने बताया है। देश प्रगति पर है, युवा भी प्रगतिशील हो बुढ़ापे की ओर बढ़ रहे हैं। ज्‍योतिष झम्‍मन का कहना है-युवाओं की साढ़े साती अब साढ़े सात साल की नहीं होती, यह साढ़े साती अब 20-25 साल की होती है और उसके बाद वे युवा नहीं रहते।

[envoke_twitter_link]राजनीति में न तो कोई बुड्ढा होता है न कोई रिटायर होता है।[/envoke_twitter_link] युवाओं को ज्‍योतिष झम्‍मन ने नि:शुल्‍क सलाह दी है कि राजनीति में प्रवेश कर जाओ, जवानी लौट आएगी। 40 तक सभी नौकरियों के लिए आदमी डीबार हो जाता है। राजनीतिक जीवन 40 के बाद शुरू होता है। [envoke_twitter_link]युवा ब्रिगेड का नेतृत्‍व भी 60 साल के नेताजी करते हैं।[/envoke_twitter_link] ना तो शिक्षा का कोई बंधन, ना उम्र की कोई सीमा। वरिष्‍ठ अधिकारी होते हैं, वरिष्‍ठ नागरिक होते हैं, लेकिन वरिष्‍ठ नेता नहीं होते। वरिष्‍ठ होना निकम्‍मेपन की निशानी मानी जाती है। वरिष्‍ठ लोगों का सम्‍मान बढ़ जाता है, उन्‍हें अलग से सीट पर बिठा दिया जाता है, उनके लिए कुर्सी छोड़ दी जाती है, उनको कोई काम नहीं दिया जाता। परिवार संगठन की दृष्टि से उन्‍हें रायचंद बना दिया जाता है। जरूरी नहीं कि रायचंद की राय पर अमल किया जाए।

पूरा देश इंतजार कर रहा है, रिटायरमेंट की उम्र बढ़ा दी जाए। लेकिन देश की बात कोई मानने को तैयार ही नहीं है, इसीलिए अब रिटायरमेंट के बाद भी उन्‍हीं युवाओं को बुलाया जाता है, जिन्‍होंने रिटायरमेंट के पहले शोषण किया और अब बाद में भी उन्‍हें ही प्राथमिकता दी जा रही है। रिटायर आदमी संस्‍था और देश के लिए नहीं बल्कि अपने इगो और टाइम पास के लिए आता है और युवा टाइप पास करने के लिए रोज़गार कार्यालय के चक्‍कर लगाता है।

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