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‘स्त्री की योनि पर नियंत्रण को राइट विंग मानता है अपना अधिकार’

दक्षिणपंथी विचारधारा स्त्री को वस्तु ही समझती है। इसके उदाहरण हिटलर की आत्मकथा में भी मिलते हैं और वर्तमान समय में भी। घृणा के साथ हिटलर ने अश्वेतों के बारे में लिखा है कि “काले केशों वाले यहूदी दूसरी जाति की युवतियों को फुसलाने, उनके रक्त को दूषित करने तथा दासों की जातीय स्वाभिमान की भावना को क्षीण करने के लिए सदैव यत्नशील रहते हैं।” (हिटलर की आत्मकथा। मेरा संधर्ष।न्यू साधना पॉकेट बुक्स: 239)। हालाँकि रक्त का दूषित हो जाना एक जीववैज्ञानिक संकल्पना एवं तथ्य है लेकिन दक्षिणपंथ इसे सांस्कृतिक और धार्मिक संकल्पना बना देता है। जो भी समुदाय या व्यक्ति स्त्री-पुरुष समानता की बात करता था हिटलर उसे यह कहकर बदनाम करता था कि ऐसे लोग स्त्री का शील भंग करने के लिए जाति-पाति को व्यर्थ बताने का ढोंग करते हैं। [envoke_twitter_link]स्त्री की यौनिकता को नियंत्रित करना दक्षिणपंथी (राइट विंग) विचारधारा की पहली शर्त होती है।[/envoke_twitter_link]
 
ऐसे लोग और संगठन हर देश, जाति, समुदाय, धर्म में अपनी जड़ें जमाये होते हैं। इनको किसी स्त्री की समझदारी पर भरोसा नहीं होता। उस वक्त तो स्त्री और भी भरोसे के लायक नहीं रह जाती, जब वह अपनी पसंद और सुविधा से पति या पहनावे का चुनाव कर लेती है। दक्षिणपंथ में पके लोग और संगठन बार-बार इस बात का सबूत देते रहते हैं कि उनकी जड़ें स्त्री की योनि में गहरी धसीं हुई हैं। कई बार तो उन्हें योनि बाँहों, माथे, और सर पर दिखने लगती है। इसलिए [envoke_twitter_link]वे हाथ या माथा ढकने के लिए धर्म तक का जोर लगा लेते हैं।[/envoke_twitter_link] जैसा कि मोहम्मद शमी की पत्नी हसीन जहाँ के मामले में देखा जा रहा है।
 
लेकिन वर्तमान में भारत के दक्षिणपंथी संगठन एक कदम आगे निकल गए हैं। वे अपने समुदाय की स्त्रियों की यौनिकता पर तो अपना नियंत्रण चाहते ही हैं, साथ ही दूसरे समुदाय की स्त्रियों की यौनिकता को भी भोगना चाहते हैं। इस तरह वे अपने तथा दूसरे दोनों समुदायों की स्त्रियों को भोग की वस्तु से ज्यादा नहीं समझ रहे।
 
[envoke_twitter_link]बजरंग दल एक नया आंदोलन चला रहा है। ‘बहू लाओ, बेटी बचाओ’।[/envoke_twitter_link] 28.12.14 को बीबीसी हिन्दी डॉटकॉम के लिए अतुल चंद्रा की रिपोर्ट के अनुसार बजरंग दल दूसरे धर्मो की उन लड़कियों को इज़्ज़त के साथ-साथ सुरक्षा भी देगा जो लड़कियाँ हिन्दू लड़कों के साथ शादी करेंगी। यहाँ बजरंग दल का मकसद साफ है – अपने समुदाय की बेटियों की यौनिकता को अपने ही समुदाय के लड़कों के लिए नियंत्रित करना तथा दूसरे समुदाय की बेटियों की यौनिकता को भी विभिन्न तरीकों से अपने समुदाय के लड़कों के नियंत्रण में लाना।
 
सभी को, लेकिन विशेषकर लड़कियों को, यह बात समझनी होगी कि क्या वे अपने जीवन पर किसी और का नियंत्रण चाहती हैं? यदि नहीं तो उन्हें अपने-अपने तरीकों से दक्षिणपंथ द्वारा उनकी आज़ादी पर किए जा रहे हमलों का सामना करना होगा। हम सभी को याद रखना होगा कि यौनिक हिंसा का मतलब होता है, इच्छा के विरुद्ध यौनिकता पर नियंत्रण करना या ऐसा करने की कोशिश करना। इस दृष्टि से बजरंग दल के ऐसे प्रयासों को यौनिक हिंसा की कोटि में रखकर ही विचार किया जा सकता है.
 
बजरंग दल जैसा संगठन तब क्या करेगा जब बड़ी संख्या में दूसरे समुदाय की बेटियां हिन्दू लड़कों के साथ शादी करने लग जाएँ? क्या तब हिन्दू लड़के एक से ज्यादा विवाह करेंगे या हिन्दू लडकियों को अविवाहित रहने को बाध्य किया जाएगा? यदि हिन्दू लडकियाँ ऐसे संगठनों के प्रति नरम हें तो उन्हें यह भी तय करना होगा कि क्या वे ‘पांचाली’ बनने या अविवाहित रहने के लिए तैयार हैं?
इस प्रकरण को दो और नज़रियों से समझा जा सकता है। एक है कानून और दूसरा है आधुनिकता।
 
[envoke_twitter_link]भारत में सुरक्षा और सम्मान पाने का हक़ धर्म के आधार पर तय होगा?[/envoke_twitter_link] क्या यह इस बात से तय होगा कि किसी व्यक्ति ने किस धर्म के पक्ष में काम किया है? क्या भारत की कानून और व्यवस्था इतनी कमज़ोर है कि किसी भी जगह खड़ा होकर कोई भी संगठन इसे चुनौती दे दे और उस पर कोई कार्रवाई न हो? क्या अब बजरंग दल जैसे संगठन तय करेंगे कि इस देश में कौन घर में और बाहर सुरक्षित रह सकता/सकती है? मान लीजिए कोई गैर-हिन्दू लड़की किसी हिन्दू लड़के से शादी करती है तब वह तो सुरक्षित रहेगी। लेकिन यदि कोई हिन्दू लड़की किसी गैर-हिन्दू लड़के के साथ शादी कर लेती है तो ऐसे संगठन उसके साथ क्या करने की मंशा रखे हुए हैं?
 
आज औपचारिक रूप से देश में कोई प्रजा नहीं है। राज्य की नयी अवधारणा में नागरिक होता है। लेकिन [envoke_twitter_link]बजरंग दल जैसे संगठन राजा और प्रजा वाले काल खण्ड में ही टिके हुए हैं।[/envoke_twitter_link] उनके लिए हिन्दू लड़कियाँ उनकी प्रजा हैं, जिन्हें उनके रहमो-करम पर जीना होगा। वे उनके लिए जैसा जीवन सोचेंगे उनको वैसा ही जीवन स्वीकार करना होगा। क्या हिन्दू लड़कियाँ अपने को नागरिक की जगह प्रजा मानने के लिए तैयार हैं? यदि नहीं तो उन्हें इन जैसे संगठनों का प्रतिकार करना चाहिए।
 
आधुनिकता की अनेक निशानियों में से एक निशानी है – वैयक्तिकता। आधुनिकता के अंतर्गत ,समूह से हटकर अपनी तरह का जीवन जीने के विचार को सर्वोपरि माना जाता है। हमारा संविधान भी आधुनिक होने के नाते वैयक्तिकता का अधिकार तथा उसकी रक्षा की गारंटी देता है। एक आधुनिक शासन व्यवस्था को वैयक्तिकता की रक्षा के पक्ष में सक्रिय होकर काम करना चाहिए।
 
क्या हम विभिन्न सरकारों से वैयक्तिकता तथा नागरिकता के पक्ष में सक्रियता की उम्मीद कर सकते हैं।
 
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